परख की कसौटी पर

अरविंद केजरीवाल ने तीसरी बार दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ग्रहण कर ली है, परन्तु इसके साथ ही उनके अंदाज़ और कार्य करने के ढंग बदलने के संकेत मिल गए हैं। उन्होंने अपनी पहले वाली शख्सीयत में बड़ा बदलाव किया है। वह पहले जैसी झगड़ालू और टकराव की नीति वाले नहीं रहे। जब वह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे, तो उनको चुनावों में बहुमत प्राप्त नहीं हुआ था। कांग्रेस की सहायता से उन्होंने सत्ता संभाली थी, परन्तु कुछ दिनों में ही कांग्रेस के साथ उनका टकराव हो गया था और यह सत्ता सिर्फ 49 दिनों तक ही टिकी रह सकी थी। दूसरी बार केजरीवाल को भारी बहुमत प्राप्त हुआ था, उस समय भी उन्होंने अपनी लड़ाकू नीति जारी रखी थी, परन्तु शीघ्र ही उनको यह एहसास हो गया था कि ऐसी नीति किसी भी तरह कारगर साबित नहीं हो सकती। इससे टकराव पैदा होगा और उनकी कार्य करने की शक्ति कम होगी। पहले दिल्ली राज्य की तथा केन्द्र सरकार की शक्तियों पर ही वह लड़ते रहे थे। दिल्ली के लैफ्टीनेंट गवर्नर के साथ भी उनका तनाव बना रहा था। यहां तक कि बड़े अधिकारियों के साथ उनके साथियों ने धक्का-मुक्की भी की थी। दिल्ली देश की राजधानी है, इसलिए यहां चुनी हुई सरकार की शक्तियां सीमित हैं। इस बात को लेकर भी केजरीवाल की सरकार उच्च न्यायालय तक गई थी, जिसने देश की राजधानी में दिल्ली सरकार की शक्तियों को अन्य राज्यों की तरह नहीं अपितु सीमित होने के बारे में फैसला दिया था। उच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार कानून व्यवस्था, पुलिस और भूमि जैसे विषय पूरी तरह केन्द्र के अधीन ही रखे गए हैं। इस फैसले के बाद उन्होंने अपनी कार्यशैली का रूप बदल दिया था। टकराव की राजनीति को अलविदा कह दिया था। यहां तक कि समय-समय पर सार्वजनिक रूप में जो आरोप उन्होंने अपने विरोधी बड़े नेताओं पर लगाए थे, उनके बारे में भी उन्होंने सार्वजनिक तौर पर माफी मांग ली थी, जिस कारण पंजाब में आम आदमी पार्टी बुरी तरह बिखर गई थी। विधानसभा में इसके नेता सुखपाल सिंह खैहरा और उनके साथियों ने प्रत्यक्ष रूप में केजरीवाल की आलोचना की थी। तीसरी बार शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने दिल्ली वासियों को बढ़िया प्रशासन देने का वायदा किया है। यह भी कहा है कि वह आम लोगों के लिए बिना किसी पक्षपात के कार्य करेंगे। चुनावों में उनको बड़ा समर्थन दिल्ली वासियों के लिए मोहल्ला क्लीनिकों द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार करने और शिक्षा सुविधाओं की हालत सुधारने के कारण मिला है। इसके अलावा उन्होंने एक सीमा तक बिजली और पानी मुफ्त देने का ऐलान किया है। कुछ महीने पूर्व महिलाओं को बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा भी दी गई है, जिसका मतदाताओं पर असर होना स्वाभाविक था। एक अनुमान के अनुसार यहां महिलाएं बड़ी संख्या में आम आदमी पार्टी के पक्ष में भुगती हैं। शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने नई राजनीतिक शुरूआत करने के ऐलान के साथ-साथ अपनी मुफ्त की योजनाओं को भी जायज़ ठहराने का प्रयास किया है और इस संबंध में कहा कि प्रकृति द्वारा दी अनमोल वस्तुएं मुफ्त ही होती हैं, उसी तरह जैसे मां का प्यार मुफ्त मिलता है। इसके साथ उन्होंने बेरोज़गारों को रोज़गार देने का भी वायदा किया है और दिल्ली को दुनिया का सबसे बेहतरीन शहर बनाने का संकल्प भी दोहराया है। इन बातों के आधार पर आने वाले समय में मुख्यमंत्री तथा उनकी पार्टी को एक बड़ी परीक्षा से गुजरना पड़ सकता है। अपने साधनों को बेहतर ढंग से इस्तेमाल कर सकना भी बड़ी समझदारी होती है। यदि इनका प्रयोग सही न हो, तो इसका बोझ अन्य वर्गों पर पड़ता है, इस स्थिति में अपने साधनों को आधार बनाकर वह कैसे आगे बढ़ते हैं, यह देखने वाली बात होगी। हमारी सरकारें लोगों को बहलाने के लिए मुफ्त की सुविधाएं देने के वायदे करती हैं, परन्तु बाद में वह अपनी ऐसी नीतियों से संतुलन गंवा लेती हैं। केजरीवाल दिल्ली के विकास के लिए इस संतुलन को कैसे कायम रख सकेंगे, यह देखने वाली बात होगी। बड़ी जीत के बाद उनकी अब इस कसौटी पर परख होगी। हम उम्मीद करते हैं, वह इस परख में खरे उतर सकेंगे।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द