जीत के बाद केजरीवाल की ज़िम्मेदारी और बढ़ी

दिल्ली चुनाव के नतीजे बहुत कुछ नया कहने की एक कोशिश है, एक बदलाव और एक नैरेटिव को बदलने की पुरजोर कोशिश है। चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह भाजपा द्वारा प्रचार किया गया उससे पार्टी का बहुत नुकसान हुआ या फायदा ये तो भाजपा को मूल्यांकन करना चाहिए। प्रवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर की हेट स्पीच के चलते भी केजरीवाल सिर्फ  और सिर्फ  शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी और सकारात्मक राजनीति करते रहे, इसी का परिणाम नतीजों के रूप में मिला। देश के एक राज्य के चुनाव को भारत और पाक के बीच का मुकाबला बताना वास्तव में निंदनीय है , लेकिन केजरीवाल के पांच साल के काम को जनता ने सर माथे रखकर आम आदमी पार्टी को विजयी बनाया। ‘आप’ मूलत: एक जनांदोलन से निकली हुई पार्टी है जिसे आमतौर से मतदाता जल्दी से रिजेक्ट नहीं करता क्योंकि जनता का सरोकार बुनियादी मुद्दों से ही है रोटी पानी की जद्दोजहद के बीच राष्ट्रवाद, धार्मिक मान्यताएं कहीं न कहीं पीछे रह जाती हैं। क्योंकि जनता भी जानती है कि हर मनुष्य जो भारत में पैदा हुआ है वो देश भक्त है, किसी के कहने या मानने से कोई देशद्रोही नहीं हो जाता परंतु एक आज़ाद मुल्क में उग्र राष्ट्रवाद की जरूरत नहीं होनी चाहिए क्योंकि देशभक्ति काफी है और उसे हर वक्त दिखाने की जरुरत नहीं होती वो समय-समय पर परिलक्षित होती रहती है। आम आदमी पार्टी को हालांकि भाजपा ने बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा के मुद्दों से हटकर अन्य मुद्दों पर घेरना चाहा पर केजरीवाल इन बुनियादी मुददों से एक इंच भी पीछे नहीं हटे और इन्हीं मुद्दों पर डटे रहे जिसका फायदा चुनाव नतीजों में स्पष्ट दिख भी रहा है। इसके अलावा एक चुने हुए मुख्यमंत्री को आतंकवादी कह देना मतदाताओं का भी अपमान है। इस चुनाव में केजरीवाल ने मजबूती से अपने आपको एक विकल्प के रूप में रखा। जिस प्रकार राष्ट्रीय चुनाव के वक्त भाजपा पूछती थी कि नरेंद्र मोदी वर्सेज कौन? ठीक इसी रणनीति के तहत ‘आप’ ने दिल्ली केजरीवाल वर्सेस कौन? पूछा जिसका जवाब भाजपा के पास नहीं था। दरअसल केजरीवाल के कद के समक्ष अन्य पार्टियों में कोई नेता था ही नहीं। केजरीवाल ने उस खालीपन को भरने की शुरुआत की है जिसमें विकल्प कौन पूछा जाता था। धीरे-धीरे केजरीवाल को एक मजबूत विकल्प के रूप में देखा जाने लगा तो इसमें हैरानी नहीं होनी  चहिए क्योंकि कई राज्य दिल्ली के कार्यक्रमों की तारीफ  करने लगे हैं और ये भारत के लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत भी है। परंतु इन सबके बीच कांग्रेस की हालत पहले जैसी ही बनी हुई है हालांकि ये दिख रहा है कि कांग्रेस ने ‘आप’ के सामने मानो समझौता किया हुआ था। दिल्ली से भाजपा को दूर रखने की कांग्रेस की ये रणनीति क्या अन्य राज्यों में भी असर डालेगी। पंजाब समेत अन्य राज्यों में इसका नुकसान भी हो सकता है, यह देखना दिलचस्प होगा। इस सबके बीच अब ‘आप’ धीरे-धीरे राष्ट्र की नब्ज को भी समझने लगी है। देशभक्ति जो अब तक बिल्कुल भाजपा के खेमे में थी परंतु अब ‘आप’ भी इस राष्ट्रभक्ति वाले मुद्दे पर अपनी नई परिभाषा गढ़ने की तरफ कदम उठा रही है। शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़कें, महिलाओं को सुरक्षा देने को ही असल राष्ट्रवाद बताने की उनकी ये पहल कितना रंग लाती है ये देखना होगा। इस जीत के बाद अरविन्द केजरीवाल की जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है और जो वादे किए हैं उनको पूरा करने के साथ-साथ दिल्ली की शिक्षा और स्वास्थ्य और भी बेहतर हो। यही उम्मीद अब मतदाताओं की रहेगी।