ट्रम्प की भारत यात्रा का मकसद क्या है ?

ऐसा क्या था कि ट्रम्प का भारत आना आवश्यक हो गया? क्या हाउडी मोदी वाली मेहमाननवाजी का उधार उतारना था? या उसके पीछे भारतीय बाजार के एक हिस्से को अमरीका के हवाले करना है ताकि चुनाव में सत्तारूढ़ रिपब्लिकन पार्टी यह कहने की स्थिति में रहे कि देखिये अमरीकियों के लिए राष्ट्रपति ट्रम्प ने रोजगार और व्यापार का कितना बेहतर इंतजाम किया है। महाभियोग प्रस्ताव से मुक्ति के बाद ट्रम्प की यह पहली विदेश यात्रा है। सीनेट में सत्ता दुरुपयोग का महाभियोग प्रस्ताव हो जाता, तो संभवत: ट्रंप की मेहमानवाजी धरी की धरी रह जाती। ट्रम्प 24-25 फ रवरी 2020 को भारत यात्रा पर आ रहे हैं। राष्ट्रपति ट्रम्प और फर्स्ट लेडी मलानिया के स्वागत के लिए अहमदाबाद सजने लगा है। ‘नमस्ते ट्रम्प’ के महा-इवेंट में टैक्स पेयर्स के कितने पैसे स्वाहा होंगे? यह सवाल संभवत: विपक्ष बाद में पूछेगा?
आर्थिक-कूटनीतिक विश्लेषक ट्रम्प की इस यात्रा को ‘मिनी ट्रेड डील’ के नुक्ते नजर से देख रहे हैं। भारतीय नौसेना के लिए मार्टिन लॉकहीड को 24 अदद मल्टीरोल एमएच सीहॉक मेरीटाइम हेलीकॉप्टर सप्लाई करनी है। 2.6 अरब डॉलर की डील इस यात्रा में हो जानी है। बात यहीं तक सीमित नहीं है ट्रम्प-मेलानिया की मेजबानी में इंडियन एयरफोर्स के लिए 18 अरब डॉलर की 114 अदद एफ-15 ईएक्स ईगल फाइटर जेट के प्रस्ताव पर भी पीएम मोदी को विचार करना है। इसके साथ ऊर्जा, ऑन लाइन, क्रेडिट कार्ड व्यापार को आगे बढ़ाना इस यात्रा का बड़ा मकसद है। भारत-अमरीका के बीच स्ट्रैटेजिक एनर्जी पार्टनरशिप (एसईपी) में तेल-प्राकृतिक गैस, विद्युत ऊर्जा क्षमता, अक्षय ऊर्जा और कोयला जैसे चार आयामों को शामिल किया गया है। इस वास्ते ऊर्जा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और उनके अमरीकी समकक्ष रिक पेरी ने 17 अप्रैल 2018 को नई दिल्ली में बैठक की थी। इस दिशा में अग्रसर होने के लिए दोनों पक्षों ने ब्लू प्रिंट तैयार किया था। राष्ट्रपति ट्रम्प की इस यात्रा से पहले यूएस-इंडिया बिजनेस कौंसिल की एक बैठक में वाशिंगटन में तैनात भारतीय राजदूत तरणजीत सिंह संधु ने जानकारी दी कि 2020 में अमरीका से ऊर्जा आयात को 10 अरब डॉलर तक पहुंचना है।
यह मामला केवल तेल तक सीमित नहीं है। नाभिकीय ऊर्जा के क्षेत्र में अमरीका तेजी से भारतीय बाजार में पैठ बनाने लगा है। आंध्र के कोवदा में वेस्टिंग हाउस सिविल न्यूक्लियर प्रोजेक्ट को कैसे अंजाम तक पहुंचाना है, वह भी इस यात्रा का उद्देश्य है। पिछले साल अमरीकी ऊर्जा निर्यात आठ अरब डॉलर के आसपास था। दरअसल, यूएस हाउस एनर्जी एंड कामर्स कमेटी 2013 से लगातार प्रयास में रही है कि भारत जैसे बाजार में अमरीकी ऊर्जा निर्यात के वास्ते अनुकूल परिस्थितियां बननी चाहिए। यह प्रयास बराक ओबामा के राष्ट्रपति बनने पर शुरू हो गया था। मगर, इसमें आक्रामकता राष्ट्रपति ट्रम्प के कार्यकाल में बढ़ी है।
अमरीका ने वेनेजुएला और ईरान पर बारी-बारी से जिस तरह से प्रतिबंध लगाये, उसका सीधा असर हमारे कच्चे तेल के आयात पर पड़ा है। अमरीकी नूरा कुश्ती में वो देश प्रभावित हुए जो वेनेजुएला से कच्चे तेल का आयात करते हैं। इराक, सऊदी अरब, ईरान के बाद, वेनेजुएला चौथा देश है, जहां से भारत कच्चे तेल का आयात करता है। 
2012 में वेनेजुएला से कच्चे तेल के आयात के मामले में भारत ने चीन को पीछे छोड़ दिया था। उसे हमें भुगतान भी भारतीय रूपये में करना होता था। जामनगर, गुजरात में रिलायंस इंडिया लिमिटेड की दो रिफाइनरियां हैं। आईओसी, ओआईएल और एस्सार जैसी तीन और कंपनियां वहां से कच्चे तेल का आयात करती हैं। ओएनजीसी (विदेश) की भागीदारी वेनेजुएला के तेल और गैस की खोज में काफी बढ़ी है।
यों, विदेश मंत्री रहते सुषमा स्वराज ने मई 2018 में बयान दिया था कि ईरान और वेनेजुएला पर अमरीका ने जो प्रतिबंध लगाये हैं, भारत को स्वीकार्य नहीं है। मगर, 5 फरवरी 2019 को नई दिल्ली में वेनेजुएला के राजदूत अगस्तो मोंटियल ने जानकारी दी कि भारत के लिए पांच लाख बैरल प्रतिदिन कच्चे तेल की सप्लाई घटकर चार लाख बैरल पर आ गई है। राजदूत अगस्तो मोंटियल ने भारतीय विदेश मंत्री के बयान को उद्घृत करते हुए कहा कि वास्तविक तस्वीर प्रतिबंध की ओर अग्रसर है, जिसके लिए भारत को अब सचेत हो जाना चाहिए। वेनेजुएला के राजदूत के तब के बयान पर भारतीय विदेश मंत्रालय ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी। मगर, वास्तव में वेनेजुएला से एक लाख बैरल प्रतिदिन की दर से तेल आयात में कमी आ गई थी। यह स्थिति धीरे-धीरे सुधर रही है। 2019 की पहली छमाही में वेनेजुएला से भारत ने 3 लाख 57 हजार बीपीडी तेल आयात किया था।
तेल आयात की वैसी ही विकट स्थिति ईरान के साथ बन गई। 24 मई 2019 को हर्षवर्द्धन सिंगला जब अमरीका में भारतीय राजदूत थे, तभी उन्होंने बयान दिया था कि हमने ईरान पर अमरीकी प्रतिबंध का पूर्णत: पालन कर लिया है। बाद में चलकर यह स्पष्ट हुआ कि भारत, चीन समेत आठ देशों को आयात में आंशिक छूट दी गई है। उससे पहले तक ईरान भारत के कच्चे तेल के कुल आयात का दस फीसद (23.5 मिलियन टन) सप्लाई किया करता था। इस उठापटक में 2020 आते-आते ईरान से तेल आयात 1.7 मिलियन टन रह गया है। उसके पेमेंट भी हम रूपये में किया करते थे। अब धीरे-धीरे अमरीका ने भारत को तेल सप्लाई का जिम्मा ले लिया। इसे चौधराहट और घूर्तता क्यों नहीं कहें? अमरीकी बाजार से तेल निर्यात की विवशता से एक तो भारत की विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आ रही है, दूसरा डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर होने के कई कारणों में एक यह भी हो चुका है।
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