आम आदमी के लिए निराशाजनक रहा बजट


देश में जब - जब भी बजट आता है तब - तब आम जन में बजट को लेकर नई उम्मीदें जाग उठती हैं। सबसे ज्यादा उम्मीदें वेतन भोगियों की होती हैं जिसकी सकल आय सबसे ज्यादा कर के दायरे में आती है। देश का वेतन भोगी ही अन्य वर्गों की अपेक्षा सर्वाधिक रूप से कर चुकाता है। वह कर बचाने के लिये अपनी सकल आय का अधिकांश हिस्सा बचत कोष में डाल देता है जो रकम देश के काम आती है तथा संकट में उसे भी राहत दिलाती है। इस प्रक्रि या में उसे अपनी बहुत जरूरत की चीजें लेने में मन मसोसकर रह जाना पड़ता है। 
वर्ष के अंतिम दो -तीन महीने वेतनभोगियों के लिये बड़े कष्ट कारक होते हैं जिन दिनों उसका वेतन कर कटौती के बाद हाथ में बहुत ही कम आता है। वह समाज के अन्य वर्गों की तरह अपनी सकल आय को छिपा नहीं पाता जिसके कारण देश को सबसे ज्यादा कर  वह देता है और सबसे ज्यादा इस प्रक्रि या से दु:खी भी वही रहता है। जब भी बजट आता है, उसे राहत मिलने की बड़ी उम्मीदें सरकार से रहती हैं पर फिलहाल नई सरकार का जो भी बजट आया है, वास्तविक रूप से सर्वाधिक कर चुकाने वाले वर्ग को कोई राहत नहीं दे रहा है। पिछले बजट में सरकार ने आय कर की छूट की सीमा तो 5 लाख तो कर दी पर  शर्त यह लगा दी कि यदि आय 5 लाख से एक रूपया भी ज्यादा हो गई तो आय कर में छूट की सीमा 5 लाख के बजाय पुरानी दर 2.5 लाख ही रह जायेगी। 
इस बार के बजट में कर राहत में कुछ छूट तो दी गई पर यह शर्त लगा दी गई कि पूर्व की भांति बचत एवं आवश्यक सेवाओं के खर्चों के मार्फत व्यय की गई राशि पर मिलने वाली छूट नहीं मिलेगी। सरकार ने बजट में प्रावधान दिया कि उपभोक्ता चाहे तो पुरानी दर से आयकर रिटर्न दाखिल कर सकता है। इस प्रकार सरकार ने बजट में कर राहत में छूट देकर भी छूट वापिस लेने का नया मार्ग ढ़ूंढ़ लिया। कर के मामले में इस तरह का प्रयोग पहली बार देखा जा रहा है जहां सरकार ने बड़ी चतुराई से करदाताओं को कर के भ्रम जाल में डाल दिया। सही मायने में बजट तो आया पर करदाताओं के हाथ कुछ नहीं आया। सरकार ने बजट में किसानों को राहत देने के लिये 2.83 करोड़ की योजना तो रखी है पर इस योजना से देश के किसान कर्ज लेकर कर्ज बोझ के तले दबे रहेंगे। सरकार ने बजट में किसानों को फसल का उचित मूल्य मिल सके, ऐसा कोई प्रावधान नहीं रखा है। जब तक देश के किसानों को उनकी फसल का वास्तविक मूल्य नहीं मिल पायेगा, तब तक देश के किसान कर्ज के बोझ तले दबे ही रहेंगे। बजट में  कर्ज देने के साथ - साथ सरकार की ओर से केन्द्रीय बाजार की व्यवस्था का प्रावधान होत़ा तो बजट किसानों के लिये ज्यादा उपयोगी हो सकता था पर ऐसा कुछ बजट में नजर नहीं आया। 
रक्षा बजट में सर्वाधिक राशि का प्रावधान कर देश को मजबूत बनाने का इरादा नेक है पर देश के युवा बेरोजगारों को रोजगार देने के  लिये उद्योग लगाने का कहीं बजट में प्रावधान नहीं है। सरकार सार्वजनिक प्रतिष्ठानों को बचाने के प्रयास में बजट में कोई प्रावधान नहीं लाई है पर एलआईसी एवं आडीबीआई में अपनी हिस्सेदारी बेचने का प्रावधान जरूर बजट में रखा है। शिक्षा में एफडीआई को इजाजत देकर महंगी शिक्षा का प्रावधान बजट में जरूर देखने को मिल रहा है। सरकार ने पर्यटन विकास में 2500 करोड़, स्वास्थ्य में 70 हजार करोड़, वरिष्ठ नागरिकों के लिये 9500 करोड़ का बजट रखा है पर वर्षों से परिवार पेंशन योजना ईपीए 95 की पीड़ा को झेल रहे सेवा निवृत्ति के उपरान्त देश के करोड़ों वरिष्ठ नागरिकों के जीवन यापन के लिये उपयुक्त धनराशि देने का कहीं भी प्रावधान बजट में नहीं शामिल है। 
इस तरह यह बजट भी पूर्व की भांति देश के आमजनों को कोई विशेष राहत नहीं है। सरकार आने वाले समय में आम वर्ग की छोटी - छोटी होने वाली बचत जो देश अर्थ व्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के साथ - साथ संकटकालीन समय में काम आती है, उसे बंद करने का कार्यक्र म बना रही है।