बेहद ज़रूरी है पंजाब और पंजाबियों की पहचान को सुरक्षित बनाना


यह एक अच्छी ़खबर है कि पंजाब मंत्रिमंडल ने 20 फरवरी से शुरू हो रहे पंजाब विधानसभा के सत्र के पहले दिन विधानसभा में पंजाबी को शिक्षा, प्रशासन और अन्य क्षेत्रों में प्रभावशाली ढंग से लागू करने के लिए एक प्रस्ताव लाने का ़फैसला किया है। ऐसा पंजाब सरकार द्वारा 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाये जा रहे मां-बोली दिवस के संदर्भ में किया जा रहा है। इसी संदर्भ में ही गत दिनों से पंजाब सरकार द्वारा ‘भाषा सप्ताह’ मनाया जा रहा है। इस संबंधी पटियाला, चंडीगढ़, अमृतसर और कई अन्य स्थानों पर विशेष समारोह करवाए गए हैं। इन समारोहों में जहां पंजाबी लेखकों, कवियों और कलाकारों को सम्मानित किया गया है, वहीं समारोह में शिरकत करने वाले पंजाबी प्रेमियों ने पंजाब सरकार से ज़ोरदार ढंग से यह भी मांग की है कि शिक्षा, प्रशासन और न्याय के क्षेत्र में राज्य के लोगों की मातृ भाषा पंजाबी को उसका बनता स्थान दिया जाए। पंजाब के उच्च शिक्षा संबंधी मंत्री तृप्त राजिन्दर सिंह बाजवा और सांस्कृतिक मंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने पंजाबी प्रेमियों को यह विश्वास दिलाया है कि पंजाब सरकार शीघ्र ही इस संदर्भ में ठोस कदम उठाएगी। शायद इस प्रसंग में ही पंजाब विधानसभा में पंजाबी को अलग-अलग क्षेत्रों में लागू करने के लिए प्रस्ताव लाने का ़फैसला किया गया। गत दिनों श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव के संदर्भ में भी यह मांग उठी थी।
यह भी उल्लेखनीय है कि पिछले लम्बे समय से पंजाब जागृति मंच, दोनों केन्द्रीय लेखक सभाएं, पंजाबी साहित्य अकादमी लुधियाना और अन्य अनेक संगठन पंजाब सरकार से मांग करते आ रहे हैं कि राज्य में पंजाबी को उचित स्थान देने के लिए सरकार ठोस पग उठाए। परन्तु यह बड़े दुख की बात है कि पंजाब में बनने वाली सभी सरकारों ने इस संबंधी वायदे और दावे तो बहुत किए परन्तु ठोस रूप में कुछ भी सामने न आने के कारण पंजाबी प्रेमियों में निराशा ही फैलती रही है। अब अगर कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के नेत्तव वाली मौजूदा सरकार गम्भीरता से कुछ करना चाहती है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए।
हम समझते हैं कि भारत एक बहु-राष्ट्रीय देश है। इसके अलग-अलग भाषाओं पर आधारित राज्य और अलग-अलग राष्ट्रीयता के घर हैं। इस कारण अलग-अलग राज्यों में शिक्षा, प्रशासन और न्याय के क्षेत्र में लोगों की भाषाओं को उचित स्थान मिलना चाहिए। देश की आज़ादी से पूर्व आज़ादी के संघर्ष का नेतृत्व कर रही बड़ी पार्टी कांग्रेस के नेताओं ने देश के लोगों से यह वायदा किया था कि आज़ादी के बाद राज्यों का भाषा के आधार पर पुनर्गठन किया जाएगा और लोगों की भाषाओं को शिक्षा, प्रशासन और न्याय के क्षेत्र में योग्य स्थान दिया जाएगा। परन्तु आज़ादी के बाद लोगों को अपनी भाषाओं के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करवाने के लिए आन्दोलन करने पड़े। उन आन्दलोनों के परिणामस्वरूप ही राज्यों का पुनर्गठन हुआ, परन्तु पुनर्गठन के इस अमल के बावजूद पूरे देश में लोगों की भाषाओं को सभी बनते क्षेत्रों में वह स्थान आज तक नहीं मिला, जो उनको मिलना चाहिए था, बल्कि इस समय केन्द्र में शासन कर रही भारतीय जनता पार्टी द्वारा यह प्रयास किए जा रहे हैं कि पूरी देश में एक भाषा और एक धर्म को ठोस किया जाए। केन्द्र सरकार द्वारा प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष ढंग से अपनाई जा रही इस तरह की नीतियों के कारण ही इस समय देश में बड़े स्तर पर सार्वजनिक विरोध देखने को मिल रहे हैं। लोगों के दिलों में अपनी नागरिकता और पहचान को लेकर कई तरह के गम्भीर सन्देह पैदा हो रहे हैं। देश की ऐसी स्थितियों में यह और भी ज़रूरी हो जाता है कि राज्य स्तर पर लोगों की भाषाओं और उनकी क्षेत्रीय भाषाओं को सुरक्षित बनाया जाए।
अगर पंजाब की बात करें तो यहां पंजाबी शिक्षा, प्रशासन और न्याय के क्षेत्र में लागू करना और भी ज़रूरी है क्योंकि राज्य के विशेष हालात के कारण ही यहां बड़े स्तर पर पंजाबी खास तौर पर नौजवान विदेशों का रुख कर रहे हैं और इस कमी को पूरा करने के लिए देश के अलग-अलग भागों से तेज़ी से ़गैर-पंजाबी लोग आकर पंजाब में बस रहे हैं। मनुष्य हज़ारों वर्षों से सुरक्षित जीवन और आरामदायक भोजन की तलाश में प्रवास करता आ रहा है इसलिए पंजाब में भी इस अमल को रोका नहीं जा सकता परन्तु पंजाब सरकार शिक्षा, प्रशासन और न्याय के क्षेत्र में प्रभावी ढंग से पंजाबी को लागू करके पंजाब की पहचान को सुरक्षित बना सकती है और इस तरह पंजाब के लोगों और खास तौर पर यहां आकर रहने वाले नए लोगों को पंजाबी भाषा के साथ भी जोड़ कर रख सकती है क्योंकि हम सभी जानते हैं कि हमारा इतिहास, साहित्य, पत्रकारिता, सभ्याचार और गीत-संगीत आदि सभी हमारी भाषा के रथ पर सवार हैं। अगर यह रथ आगामी पीढ़ियों तक पहुंचेगा, तभी ये सभी बातें आगामी पीढ़ी तक पहुंचेंगी। इस संदर्भ में हमारे विचार अनुसार पंजाब सरकार को पंजाब और पंजाबियों की पहचान को सुरक्षित करने के लिए निम्नलिखित पग उठाने चाहिएं—
* राज्य के सभी स्कूलों में प्रथम कक्षा से दसवीं कक्षा तक पंजाबी की पढ़ाई एक विषय के रूप में लाज़िमी बनाई जाए और राज्य के किसी भी स्कूल में विद्यार्थियों पर पंजाबी बोलने पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए। चाहे 2008 के पंजाबी और अन्य भाषाओं की पढ़ाई संबंधी कानून के अनुसार सभी स्कूलों में 10वीं तक पंजाबी पढ़ाने की लाज़िमी व्यवस्था की गई है परन्तु अभी भी बहुत सारे स्कूल 8वीं के बाद पंजाबी का विषय नहीं पढ़ा रहे और ज्यादातर स्कूलों ने विद्यार्थियों पर पंजाबी बोलने पर पाबंदी लगा रखी है। पंजाबियों ने बेहद कठिन संघर्ष करके पंजाबी राज्य हासिल किया है, परन्तु इस धरती पर पंजाबी बोलने पर पाबंदियों का सिलसिला बेहद शर्मनाक है। इसको तुरंत रोका जाना चाहिए।
* पंजाब के सभी सरकारी और ़गैर-सरकारी बोर्डों पर सबसे ऊपर पंजाबी में जानकारी लिखी जाए। अन्य भाषाओं में इसके नीचे ज़रूरत अनुसार जानकारी लिखी जा सकती है। तमिलनाडू, केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में ऐसी ही नीति लागू है। पंजाब में भी ऐसी ही नीति लागू की जानी चाहिए। चाहे इसके लिए पंजाब सरकार को कोई नया कानून क्यों न बनाना पड़े।
* पंजाबी गीत-संगीत ने देश-विदेशों में पंजाब और पंजाबियों की एक अलग पहचान बनाई है, परन्तु यह दुख की बात है कि इस समय ज्यादातर पंजाबी गीतकार नशों, हथियारों और अश्लीलता को उत्साहित करने वाले गीत लिख रहे हैं और प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा ऐसे गीत गाये जा रहे हैं, जिससे हमारी नई पीढ़ी गलत रास्ते पर पड़ती जा रही है। ऐसे गीत-संगीत पर शीघ्र पाबंदी लगाई जानी चाहिए। ज़रूरत इस बात की भी है कि फिल्मों और गीत-संगीत के संबंध में एक सांस्कृतिक नीति बना कर उसको प्रभावशाली ढंग से लागू किया जाए। यह संतुष्टि वाली बात है कि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने भी इस मामले को गम्भीरता से लेना शुरू कर दिया है।
* हम सभी जानते हैं कि चंडीगढ़ शहर पंजाबी बोलते गांव उजाड़ कर पंजाब की राजधानी के रूप में बनाया गया था, परन्तु कई दशकों के बाद भी यह आज केन्द्र प्रशासित क्षेत्र बना हुआ है और इस शहर में केन्द्रीय अफसरशाही पंजाबियों का और पंजाबी भाषा और संस्कृति का सफाया करती जा रही है। यह स्थिति पंजाब के हितों के लिए घातक है। पंजाब सरकार और राज्य की राजनीतिक पार्टियों को मिल कर इस शहर को पंजाब में शामिल करवाने के लिए ज़ोरदार समर्थन करना चाहिए, क्योंकि चंडीगढ़ पंजाबी भाषायी क्षेत्र है। वैसे भी हर राज्य के पुनर्गठन के समय पुरानी राजधानी पहले राज्य के पास रही है और नए राज्य द्वारा अपनी नई राजधानी बनाई गई है। अगर यह शहर लगातार केन्द्र शासित क्षेत्र बना रहता है तो आने वाले समय में पंजाब को यहां कुछ भी हासिल नहीं होगा। चंडीगढ़ प्रशासन में पंजाबी को प्रथम भाषा के रूप में लागू करवाने के लिए भी पंजाब सरकार को ज़ोरदार प्रयास करने चाहिए।
* राज्य में शिक्षा, प्रशासन और न्याय के क्षेत्र में पंजाबी को लागू करवाने के लिए एक शक्तिशाली राज्य भाषा आयोग बनाने की ज़रूरत है, जो अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों के भाषायी अधिकारों को विश्वसनीय बनाए और भाषायी अधिकारों का उल्लंघन करने वालों के विरुद्ध प्रभावी कार्रवाई करने का भी उसके पास अधिकार होना चाहिए और उसके ़फैसलों के खिल़ाफ सिर्फ हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ही अपील होनी चाहिए।
* दक्षिणी राज्यों में वहां के केबल आप्रेटर स्थानीय भाषाओं के टी.वी. चैनलों को प्राथमिकता के आधार पर दिखाते हैं, परन्तु पंजाब के केबल आप्रेटर पंजाबी टी.वी. चैनलों से काम के लिए बड़ी राशि मांगते हैं, जबकि दूसरी भाषाओं के चैनलों को ये स्वयं पैसे भी देते हैं और प्राथमिकता के आधार पर दिखाते भी हैं। पंजाब के केबल आप्रेटरों के लिए पंजाबी चैनलों का, विशेष तौर पर पंजाबी ़खबर चैनलों का प्रसारण करना ज़रूरी बनाया जाए और इस संबंधी स्पष्ट रूप में नियम भी बनाए जाएं।
हम समझते हैं कि अगर आज (20 फरवरी) को होने वाला पंजाब विधानसभा का अधिवेशन इस संदर्भ में ठोस ़फैसले लेता है और फिर उन ़फैसलों पर अमल करवाने को विश्वसनीय बनाता है तो पंजाब की पहचान और पंजाबी लोगों के भाषायी अधिकारों की सुरक्षा विश्वसनीय बनाई जा सकती है। इस उद्देश्य के लिए पंजाब विधानसभा में राज्य के लोगों का प्रतिनिधित्व कर रही सभी राजनीतिक पार्टियां कांग्रेस, अकाली दल, आम आदमी पार्टी, भाजपा को आम सहमति से ़फैसले लेने चाहिएं।