प्लास्टिक के लिए प्रतिक्रांति

निसंदेह आज हम प्लास्टिक उपयोग का संकट झेल रहे हैं। राजनीतिक स्तर पर यह संकट तभी लगता है जब कोई नेता इस पर बयान जारी करता है और मीडिया का हिस्सा बनता है। तभी शहरी स्तर पर कार्यपालिका भी इसके विरोध में सक्रिय नज़र आती है और बड़े स्टोर करने वालों के स्टोर में छापा मार कर कुछ मात्रा में प्लास्टिक के लिफाफे जब्त कर लिये जाते हैं, परन्तु उपयोग और उपयोग से संकट अपनी जगह ज्यों का त्यों रहता है। 5-6 दशक पूर्व जिस प्लास्टिक के आगमन को क्रांतिकारी विकास का कदम समझा जा रहा था आज उसके घातक परिणाम परेशानी का सबब क्यों बनता जा रहा है, जो अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं भी इसकी चिंता पर गम्भीरता से चिंतित है और एक स्वर होकर पाबंदी लगाने की मांग कर रही है।
प्लास्टिक को अजर-अमर कहा जा रहा है, जो टूट कर भी खत्म नहीं होता। यह भयानकता की हद तक टिकाऊ है, समय गुज़रता चला जाता है, परन्तु यह खत्म नहीं होता, न घुलता है और न ही गलता है। वैज्ञानिक बताते हैं कि प्लास्टिक के एक भौतिक रासायनिक गुण ने आफत खड़ी कर दी है। इस पदार्थ का अणु इस किस्म का है कि इसकी चाहे कितनी पतली झिल्ली या पन्नी बनाई जा सकती है। बहुत कम वज़न की थैलियां बनाई जा सकती हैं जिस कारण बाज़ार में सस्ते बारदाने की बोरियां, थैले, बरसाती, बगैरह उपलब्ध होने लगे हैं, इसीलिए सम्भव है कि इसके विकल्प के बारे में सोचना कठिन हो गया। विक्रेता और खरीददार दोनों को इसका चलन लाभप्रद लगता है तो हटाना कठिन लगता है। जब तक कानून का सख्ता डंडा सामने न हो।
इस बीच सिंगल यूज प्लास्टिक का व्यापक स्तर पर विरोध शुरू हुआ है। भारत में कई प्रांतों में सिंगल यूज प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध लगता रहा है, परन्तु व्यवहार के स्तर पर यह प्रतिबंध कभी संतोषजनक नहीं रहा, क्योंकि सरकारी स्तर पर सख्ती का उपयोग कभी हुआ ही नहीं या फिर आवाम से व्यक्ति के स्तर पर जिस समझ, जिस गम्भीरता का प्रदर्शन होना चाहिए था, वैसा ही नहीं पाया। केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार देश के 18 राज्यों में प्लास्टिक की थैलियों पर प्रतिबंध है। जबकि पांच राज्यों में धार्मिक और ऐतिहासिक स्थलों पर प्लास्टिक की चीज़ों के इस्तेमाल पर रोक है। स्थानीय स्तर पर अगर एक आध हफ्ता छोटे दुकानदारों पर डंडा चला भी तो जल्दी बाद पहले जैसे हालात बन गये। अदालती कार्रवाई या राजनीतिक रुकावट भी ज्यादा सार्थक प्रभाव नहीं बना पाई।
नहीं बदलने में प्लास्टिक यूज की सुविधा भी एक बड़ा कारण है। बाज़ार खरीददारी के लिए जाते हुए आपको थैला नहीं उठाना पड़ता। प्लास्टिक अपेक्षाकृत सस्ता भी लगता है। इसके उपयोग के पक्ष में यह भी कहा जाता है कि इसका ज्यादा वज़न नहीं होता। मोड़ा-तोड़ा जा सकता है। बारिश की बूंदे गिरें तो वाटरप्रूफ की तरह अपने भीतर चीज़ें सम्भाल सकता है। इन कारणों से चलन बढ़ता चला गया। चलन बढ़ा तो उत्पादन का बढ़ना अनिवार्य हो गया। दुनिया में मात्रा के स्तर पर जितना प्लास्टिक है उसका आधा हिस्सा पिछले 15 वर्षों में उत्पादित बताया जा रहा है। उपयोग के स्तर पर टिकाऊ बनाया गया, परन्तु इस पर ध्यान नहीं दिया गया कि यह ऐसे रसायनों से निर्मित है जो गम्भीर रोगों को जन्म दे सकता है जिस कारण इसका होना तसल्ली कम देता है, भयभीत अधिककरण है। आखिर यह सवाल सामने आना ही था कि जब इसका अमल इतना बुरा है तो इस पर पूर्ण प्रतिबंध क्यों नहीं लगाया जा सकता? 
एक ही बार इस्तेमाल में आने वाला प्लास्टिक को अलविदा तो कहना ही होगा, क्योंकि प्लास्टिक का कचरा हमारी उपजाऊ ज़मीन को बंजर बनाता चला जा रहा है। पर्यावरण और जीवन बचाने के लिए इस प्रश्न पर गम्भीरता से सोचना होगा। क्यों न अब इसे गम्भीर चुनौती समझा जाये?