केन्द्र सरकार की गलत नीतियाें के कारण निचले स्तर पर पहुंची सीमावर्ती क्षेत्र की अर्थव्यवस्था

अटारी, 22 फरवरी ( रुपिंदरजीत सिंह भकना ) : भारत व पाकिस्तान के बीच बढ़े तनाव के मद्देनज़र सरकारों के एक तरफा फैसलों से पंजाब में स्थापित देश की पहली संगठित जांच चौकी अटारी के ज़रिये होते हुए भारत-पाक व्यापार के बंद होने से बेशक दोनाें देशों की समूची अर्थव्यवस्था पर तो ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ा होगा परंतु पश्चिमी व पूर्व पंजाब की अर्थव्यवस्था को निचले स्तर पर ला दिया है। जहां दोनों देशों के व्यापारी प्रभावित हुए वहीं यदि हम पूर्वी पंजाब की बात करें तो भारत-पाक व्यापार बंद  होने के कारण पीड़ित पक्ष स्थानीय ट्रांसपोर्ट, कुली भाईचारा, ट्रक चालक, उनके सहायक व उन पर निर्भर पैट्रोल पम्प, आटो स्पेयर पार्ट्स, टायरों वाले, रिपेयरिंग वर्कशापों, ढाबा व अन्य कारोबारियों के हज़ारों परिवारों को इस समय रोटी के लाले पड़े हुए हैं। व्यापारी व स्थानीय ट्रांसपोर्टर इस समय बड़े आर्थक घाटे में से गुजर रहे हैं। दूसरी ओर अभी कहीं से भी उम्मीद कि किरन नज़र नहीं आ रही जो ध्वस्त हुई सीमावर्ती अर्थव्यवस्था को कोई मजबूती दे सके। सरकार को इस बाबत सोचना चाहिए ताकि दोनों देशों के बीच अमन की रीढ़ की हड्डी के रूप में काम करता भारत-पाक व्यापार पुन: चालू हो सके और पीड़ित एक बार फिर आर्थिक घाटे के गहरे कुएं में से पुन: उभर सकें। तनाव भरे संबंधों के बावजूद 2018-19 में भारत व पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय व्यापार 2.5 बिलियन डालर रहा। पाकिस्तान को भारत के निर्यात 2.06 अरब डालर व पाकिस्तान से भारत का निर्यात 495 मिलियन डालर रही। पुलवामा व बालाकोट के सर्जीकल स्ट्राइक के बाद भारत-पाक व्यापार पर लगी पाबंदियों ने एक बार अर्थव्यवस्था की कमर तोड़कर रखते हुए मोस्ट फेवरट नेशनल की वापसी पर 200 फीसदी ड्यूटी लगने के बाद वर्ष 2018 में एक्सपोर्ट 45 मिलियन डालर से मार्च-जुलाई 2019 में प्रतिमाह 2.5 मिलियन अमरीकी डालर रह गया। दूसरी ओर व्यापार बंद होने के बाद पीड़ित पक्षों की बात की जाए तो जहां व्यापारी वर्ग का करोड़ों रुपए का नुक्सान हुआ। दूसरा बड़ा आर्थिक नुक्सान अटारी सीमा पर काम करते स्थानीय ट्रांसपोर्टरों को झेलना पड़ा क्योंकि उनका सारा कारोबार भारत-पाक व्यापार पर ही निर्भर था। स्थानीय ट्रांसपोर्ट यूनियन के प्रवक्ता अमरजीत सिंह छिंदा के अनुसार उनकी स्थानीय ट्रांसपोर्ट यूनियन में 517 ट्रक जो कारोबार में लगे हुए थे, में से लगभग 300 ट्रक बिक चुका है। उन्होंने कहा कि हमारे के अलावा लगभग 1000 और ट्रक जोकि दूसरे राज्यों से माल की लिफ्टिंग के काम में लगे हुए थे, का सारा कारोबार है एक बार ठप्प होकर रह गया है। स्थानीय ट्रांसपोर्टर गुरविंदर सिंह सोनू ने बताया कि उनके पास 23 ट्रक थे जिनमें से अब केवल 16 ट्रक ही बचे हें और वह पिछले एक वर्ष में लगभग सवा करोड़ रुपए का घाटा खा चुके हैं। इसके बाद यदि सबसे  पीड़ित पक्ष जिसके चुल्हे-चौके ही भारत-पाक व्यापार के चलने के सहारे हैं, वही कुली भाईचारा (जिनमें अधिकतर सीमावर्ती गांवों के ही निवासी हैं) इस समय लगभग 1470 कुली पक्के तौर पर भारत-पाकिस्तान से आते सामान की लिफ्टिंग का काम कर अपने परिवारों का पालन-पोषण कर रहे और इतने ही उनके साथ सहायक के रूप में स्थानीय लोग काम करते हैं जोकि अचानक बेरोज़गार हो गए। कुली नेता बलविंदर सिंह, बाबा हरभजन सिंह, जगबीर सिंह खेला, माइकिल, शेरा ने बताया कि वह रोज़ाना उम्मीद लेकर अटारी सीमा पहुंचते हैं और शाम को वापिस ही उसी तरह घर लौटने के लिए मजबूर हैं क्योंकि इस समय केवल अफगानिस्तान से 4-5 गाड़ियां सेबों की ही आ रही हैं, ने बताया कि उनके परिवार इस समय भुखमरी के किनारे पहुंच चुके हैं उनके बच्चे स्कूलों में फीसें न भरने के कारण घर बैठ चुके हैं और उन्होंने बताया कि उन्होंने हर पार्टी के राजनीतिक प्रतिनिधियों को अपनी हालत के वास्ते डालते हुए प्रयास किए हैं परंतु कहीं से भी मदद नहीं मिली आज भी वह इस उम्मीद में हैं कि आने वाले दिनों में शायद उनके पेट को रोटी नसीब हो जाए।