बारह ज्योतिर्लिंगों में विराजत हैं भगवान शिव

शिव पुराण में भगवान शिव के विषय में उन्हीं के श्रीमुख से आया यह श्लोक शिवत्व की विराटता का बखान करता है। भोले शंकर आदि देव हैं। सृष्टि के सृजन, पालन और संहार के बाद उसकी नव रचना का कारक भगवान शंकर ही हैं। शिव जी के सर्वव्यापी स्वरूप का विशद वर्णन करता है। भारत भूमि भगवान शंकर को देवाधिदेव के रूप में शताब्दियों से पूजती रही है। शिव यूं तो विभिन्न रूपों में पूजे जाते हैं किंतु शिव के साक्षात् स्वरूप माने जाने वाले बारह ज्योतिर्लिंगों का वर्णन शिव पुराण एवं स्कंद पुराण में उनके महात्म्य सहित किया गया है।
सोमनाथ : कहते हैं कि एक बार राजा दक्ष प्रजापति के शाप से चंद्र देव को क्षय रोग हुआ। इससे उनकी कांति जाती रही। चंद्र देव ने भगवान शिव की आराधना में महामृत्युंजय का जाप किया। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उसे अक्षय जीवन का वरदान दिया। जिस स्थान पर चंद्रमा ने तप किया, वहां भगवान शंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए। यह स्थान गुजरात प्रांत के सोमनाथ मंदिर के गर्भ गृह के नीचे एक गुफा में है।
मल्लिकार्जुन : अपने पुत्र कार्तिकेय की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव जिस स्थान पर गए थे, उसे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाता है। तमिलनाडू प्रांत में श्री शैल पर्वत माला पर यह ज्योतिर्लिंग स्थापित है।
महाकालेश्वर : एक बार दूषण नामक दैत्य ने मानव मात्र को पीड़ित करना प्रारंभ कर दिया। उसके कोप से पीड़ित देवताओं ने भगवान शंकर का आह्वान किया। शिव शंकर ने दूषण को भस्म कर देवताओं को मुक्ति प्रदान की। मध्य प्रदेश में क्षिप्रा नदी के तट पर उज्जयिनी में शंकर भगवान ज्योतिर्लिंग के रूप में मोक्षदायी एवं पाप मोचक रूप में विख्यात हुआ। महाकालेश्वर में कालजयी शिव का प्रतिदिन चिता की ताजा भस्म से अभिसार किया जाता है।
ओंकारेश्वर : विंध्य के दुख निवारण हेतु भगवान आशुतोष यहां आए थे। मालवा क्षेत्र में नर्मदा नदी की धाराओं के मध्य स्थित मान्धाता पर्वत पर स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव अपने साकार रूप में आज भी भक्तों को आह्लाद प्रसाद बांटते हैं।
केदारनाथ : हिम मंडित हिमालय पर्वत शृंखला पर नर एवं नारायण ऋ षि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने जिस स्थान पर उन्हें दर्शन दिए थे, वह क्षेत्र शिवजी के ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकाशित हुआ। उत्तर प्रदेश के पर्वतांचल की बारह मास बर्फ से ढकी चोटियों के बीच केदारनाथ चार धामों में से एक है।
भीमशंकर : देवताओं को भीम नामक असुर से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शिव ने जिस स्थान पर इस असुर का वध किया था, वह भीमशंकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रसिद्ध हुआ। असम प्रांत के कामरूप जनपद में यह ज्योतिर्लिंग ब्रह्मपुत्र के तट पर एक पहाड़ी पर स्थित है।
बिल्वेश्वर : तीन लोक से न्यारी काशी जब प्रलय से डगमगाने लगी, तब बाबा भोले शंकर ने अपने त्रिशूल पर उसे स्थान दिया। वहां बाबा विश्वनाथ के मंदिर में भगवान शंकर अपनी शिवत्व की आभा लिए ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थित हैं। सनातन धर्मियों के लिए सदियों से पूजित इस मंदिर के दर्शन मात्र से सब कष्टों का निवारण हो जाता है। 
त्र्यंबकेश्वर : गौतम ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने जहां अवतार लेकर गौतम ऋषि को पाप मुक्ति का वरदान दिया था, वह स्थान महाराष्ट्र प्रांत के वासिर जनपद में गौतमी नदी के तट पर स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग के तीन स्वरूप ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में विद्यमान हैं।
वैद्यनाथ : भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने घोर तपस्या की तो शिव प्रसन्न हुए और उसे वरदान मांगने को कहा। रावण ने वर मांगा कि उसे वह शिवलिंग दे दें जिसकी वह अर्चना कर रहा है। भगवान शिव ने वरदान दे दिया और कहा, इसे जहां पृथ्वी का पहला स्पर्श होगा, वहीं यह अचल हो जाएगा। रावण जब इस शिवलिंग को लेकर चला तो मार्ग में पृथ्वी का स्पर्श पाकर वहीं स्थापित हो गया।
 प. बंगाल के संथाल परगना जनपद में जसीडीह में यह शिव ज्योतिर्लिंग आज भी स्थापित है।
नोगेश्वर : मथुरा में एक समय दारूक नामक राक्षस ने उत्पात मचा रखा था। उसने भगवान शिव के एक भक्त सुप्रिय को बंदी बना लिया। भगवान शिव ने सुप्रिय की मुक्ति के लिए वहां उपस्थित होकर दारूक को दंड दिया। द्वारका में यह ज्योतिर्लिंग भक्तों को आज भी कष्टों से मुक्ति दिलाता है।
रामेश्वरम : भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई करने से पूर्व रामेश्वरम तट पर एक शिवलिंग स्थापित कर पूजा अर्चना की थी। वहां भगवान शिव प्रसन्न होकर उपस्थित हुए। इसी के पास हनुमान जी द्वारा लाया गया वह शिवलिंग स्थापित है जिसे वह कैलाश पर्वत से लाए थे। इन शिवलिंगों के पास मीठे जल के 22 कुएं भी हैं।
घुश्मेश्वर : कहते हैं कि देव गिरी पर्वत के निकट सुधर्मा नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी घुश्मा ने सन्तान प्राप्ति के लिए भगवान शिव की घोर तपस्या की तो भगवान शिव ने उसे दर्शन दिए। महाराष्ट्र प्रांत में दौलताबाद के निकट बेरूल गांव के पास यह ज्योतिर्लिंग स्थित है। (अदिति)