टकसालियों की वापसी के लिए शिअद ने तैयार की रणनीति

अमृतसर, 24 फरवरी (सुरिंदरपाल सिंह वरपाल): दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी की शानदार जीत के बाद पंजाब में राजनीति नई करवट ले रही है। प्रदेश में सत्ताधारी कांग्रेस की दयनीय हालत, शिरोमणि अकाली दल (बादल) की आंतरिक खानाजंगी व आम आदमी पार्टी की डगमगाती स्थिति ने राजनीति को दुविधा वाली मंझधार पर ला दिया है। पार्टी द्वारा लाखों प्रयासों के बावजूद भी शिरोमणि अकाली दल लोगों के दिलों में प्रभावी किरदार के रूप में उभरने में असमर्थ दिखाई दे रहा है। ऐसे में पार्टी द्वारा सबसे बड़ी सिरदर्दी बने टकसालियों के विरुद्ध तीव्र रुख अपनाने की तैयार की रणनीति को पुन: जांचते हुए जहां पार्टी के संरक्षक प्रकाश सिंह बादल को सक्रिय भूमिका में लाने की योजनाबंदी की गई है वहीं विशेष रूप से माझा के प्रभावशाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया का दायरा सीमित किया जा सकता है क्योंकि रूठे हुए अकाली दल परिवार से कम तथा पार्टी के इस उभरते नेता के प्रभावी किरदार से अधिक पीड़ित थे।
2017 के विधानसभा चुनावों के बाद लगातार राजनीति से दूर चल रहे प्रकाश सिंह बादल ने अपने पुत्र सुखबीर सिंह बादल को पार्टी की मुकम्मल बागडोर सौंपने की मंशा से शिरोमणि अकाली दल के स्थापना दिवस व अध्यक्ष पद के चुनाव समय दूर रहना ही मुनासिब समझा था परंतु पार्टी में कोई प्रभावी उछाल न पैदा होने और आंतरिक खानाजंगी से चिंतातुर होकर आखिर शिरोमणि अकाली दल ने पहले संगरूर व फिर राजासांसी में की गई रोष रैली में मजबूरन बादल को लाना पड़ा है।
इसी दौरान ढींडसा परिवार को तिलांजलि व टकसाली नेता रतन सिंह अजनाला ने पुत्र व पूर्व विधायक अमरपाल सिंह बोनी को पार्टी में शामिल किया गया। इसी कड़ी के तहत ही बिक्रम सिंह मजीठिया की भूमिका में बदलाव कर विशेष रूप से माझा क्षेत्र में पार्टी के विश्वसनीय नेता विरसा सिंह वलटोहा, हरमीत सिंह संधू, लखबीर सिंह लोधीनंगल को उभारने का प्रयास किया जा रहा है ताकि पार्टी से नाराज़ नेताआें के मनमुटाव दूर कर उन्हें मनाने का प्रयास किया जा सके। एक बात स्पष्ट हो चुकी है कि 2022 के विधानसभा चुनावों में शानदार प्रदर्शन के लिए बिखरी हुई पार्टी को पहले एकजुट करना होगा क्योंकि रूठे हुए अकालियों द्वारा अन्य पार्टियों की बजाय सबसे ज्यादा सेंध शिरोमणि अकाली दल (ब) को लगाई जाएगी। दूसरी ओर कांग्रेस जहां प्रशासनिक नाकारगुजारियाें की बदौलत आम जनता के रोष का सामना कर रही है, वहीं नवजोत सिंह सिद्धू द्वारा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के खिलाफ बागी सुरों की बदौलत टूटने के कगार पर है। समय-समय मंत्रियों व विधायकाें द्वारा अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज़ें प्रदेश के हर कोने से उभरकर सामने आ रही हैं, जोकि पार्टी के लिए नुक्सानदायक है। आम आदमी पार्टी इस समय अपने प्रभाव को बरकरार रखने में असमर्थ नज़र आ रही है। हालांकि दिल्ली चुनावों के दंगल में जीत हासिल करने के बाद पार्टी में नई जान डालने के प्रयास जारी हैं परंतु पार्टी किसी कदावर नेता की कमी में पंजाब में किसी बड़े स्तर की लड़ाई के लिए अभी तैयार नज़र नहीं आ रही। यहां यह भी देखना होगा कि कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू अपना कौन सी ‘राजनीतिक दांव’ अपनाते हैं? सिद्धू कांग्रेस से खफा हैं और भाजपा में वापसी का भी कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा। इसलिए क्या वह आम आदमी पार्टी में शामिल होने को प्राथमिकता दें या फिर अकाली दल के साथ टूटे टकसालियों के साथ हाथ मिलाएंगे।