दोस्ती की कसौटी पर कितना खरा उतरेंगे ट्रम्प ?

दुनिया के सबसे ताकतवर देश और बहुत पुराने लोकतंत्र के मुखिया राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने दो दिवसीय भारत दौरे के पहले दिन अहमदाबाद में दुनिया के सबसे बड़े मोटेरा क्त्रिकेट स्टेडियम में ‘नमस्ते ट्रम्प’ कार्यक्रम के दौरान अपने भाषण में जिस प्रकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा करते हुए कहा कि आज के बाद से अमरीका में भारतीयों के लिए निश्चित तौर पर प्यार बढ़ेगा, उससे भविष्य में दोनों देशों के आपसी संबंधों में और गर्माहट आने की उम्मीदें बढ़ी हैं। वर्षों बाद भारत की ऐसी भूरि-भूरि प्रशंसा और वह भी दुनिया के सबसे ताकतवर व्यक्ति के मुंह से सुनाई दी। हालांकि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि ट्रम्प के इस भारत दौरे से भारत-अमरीका के रिश्तों की डोर कितनी मजबूत होगी क्योंकि ट्रम्प के बयान जरूरत और नफे-नुकसान के हिसाब से बदलते रहे हैं।
 ट्रम्प का अभी तक का भारत के प्रति व्यवहार देखें तो यह स्पष्ट नजर आता है कि ऐतिहासिक दृष्टिकोण से अमरीका भारत का सच्चा दोस्त नहीं रहा बल्कि आर्थिक लाभ उसे भारत के करीब खींच लाता है। आने वाले दिनों में इस बात का खुलासा होगा कि ट्रम्प ने अपनी भारत यात्रा के दौरान भारत के प्रति दोस्ती को लेकर जो भी कुछ कहा, उस पर वे कितना खरा उतरने की कोशिश करते हैं। हालांकि ह्यूस्टन शहर में आयोजित कार्यक्रम के बाद ट्रम्प की इस यात्रा को देखते हुए इतना अवश्य कहा जा सकता है कि दोनों देशों के बीच एक-दूसरे के महत्व को समझने की प्रक्रिया आगे बढ़ने के बाद यह भी स्पष्ट हो गया है कि अमरीकी नेतृत्व और राजनीति में भारत के लिए बड़े सकारात्मक बदलाव आए हैं।
अमरीका में 3 नवम्बर 2020 को राष्ट्रपति चुनाव होने हैं और वहां करीब 40 लाख भारतीय बसे हैं, जिनमें 14 लाख मतदाता हैं, जिनकी वहां काफी प्रभावशाली भूमिका है। इसीलिए कुछ लोग भले ही ट्रम्प के दौरे को उन भारतीयों को साधने के लिए महज ट्रम्प के राजनीतिक फायदे वाला दौरा करार दे रहे हों किन्तु ट्रम्प और मोदी के घनिष्ठ होते संबंधों को देखते हुए माना जाना चाहिए कि ट्रम्प की इस यात्रा के बाद भारत-अमरीका संबंधों को नई ऊंचाई मिलेगी। सही मायनों में ट्रम्प की यह यात्रा भारत के साथ भारतीयों की बढ़ती ताकत का भी स्पष्ट संकेत है। ट्रम्प के मोदी को कठिन वार्ताकार कहे जाने का बिल्कुल सीधा का अर्थ है कि एक ओर जहां अमरीका अपने फायदे वाले कुछ बड़े सौदों पर भारत से वार्ता कर रहा है, वहीं भारत अपने हित साधने के लिए अपनी जिद पर अड़ा है। भले ही ट्रम्प की भारत यात्रा का ज्यादा कारोबारी महत्व नहीं रहा हो लेकिन इससे एक बात तो स्पष्ट हुई ही है कि भारत अब अपने व्यापारिक हितों की अनदेखी नहीं करता है। दरअसल ट्रम्प कई बार कह चुके हैं कि भारत कई वर्षों से अमरीकी व्यापार को प्रभावित कर रहा है। भारत के संबंध में वे कह चुके हैं कि वे हम पर शुल्क लगाते हैं और भारत में यह दुनिया की सबसे अधिक दरों में से एक है। उनके कुछ कठोर कदमों से भारत को झटका भी लग चुका है।
ट्रम्प ने कहा कि अमरीका भारत को प्रेम करता है, भारत का दोस्त है, उसका सम्मान करता है और अमरीका के लोग सदैव भारत के लोगों के सच्चे और निष्ठावान दोस्त रहेंगे। उन्होंने अपने भाषण में पाकिस्तान का नाम लेते हुए यह भी कहा कि पाकिस्तान को आतंकवाद पर लगाम लगानी ही होगी और आतंकवाद के खिलाफ  भारत-अमरीका साथ-साथ लड़ाई जारी रखेंगे। ट्रम्प ने भले ही कहा हो कि वे जल्द ही प्रयास करेंगे कि पाकिस्तान की ओर से सीमा पर कोई हरकत न हो लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि वे पहले भी इसी प्रकार के बयान देते रहे हैं और उसके बावजूद पाकिस्तान के प्रति उनका झुकाव हमेशा साफ  दिखाई देता रहा है। अमरीका स्वयं इस्लामिक आतंकवाद से पीड़ित रहा है और उसने जिस सफलता के साथ उसका दृढ़ता से मुकाबला किया, वह पूरी दुनिया के लिए मिसाल बना है। इसी आतंकवाद को लेकर उन्होंने भारत के साथ मिलकर लड़ने की बात दोहराई है तो यह मानने से भी गुरेज नहीं होना चाहिए कि मित्र देशों की सूची में वह अब भारत को खास महत्व दे रहा है। ट्रम्प से पहले उनके पूववर्ती राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और बराक ओबामा के भारत दौरों के बाद भी दोनों देशों के रिश्ते प्रगाढ़ हुए थे लेकिन अक्सर भारत में आतंक का खूनी खेल खेलते रहे पाकिस्तान के साथ उसके प्यार की पींगें बढ़ाने से ये रिश्ते मजबूत होने के बजाय कमजोर होते गए। उम्मीद की जानी चाहिए कि ट्रम्प की भारत यात्रा के बाद ये रिश्ते नए सिरे से परवान चढ़ेंगे।
अगर वाकई आने वाले समय में दोनों देशों के बीच संबंध घनिष्ठ होते हैं तो यह निश्चित रूप से हर लिहाज से भारत के लिए फायदे का सौदा होगा। इससे एक तो भारत को बात-बात पर आंखें तरेरते रहे अपने पड़ोसी देश चीन को महाशक्ति बनने से रोकने में मदद मिलेगी, वहीं अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारत और अमरीका के बीच की दोस्ती चीन को महाशक्ति बनने से रोकेगी। इसके अलावा भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के मामले में भी अमरीका का साथ मिल सकता है। पिछली बार बराक ओबामा ने भारत का दौरा किया था तो उन्होंने भारत की स्थायी सदस्यता की सुरक्षा परिषद में वकालत करने की बात कही थी किन्तु कुछ कारणों से ऐसा हुआ नहीं। अब अगर ट्रम्प के साथ सुधरते संबंधों के दौर में भारत को इन उद्देश्यों में सफलता मिलती है तो यह बड़ी बात होगी और ट्रम्प की भारत यात्रा सही मायनों में भारत के लिए लाभदायक और सार्थक मानी जाएगी। हालांकि अमरीका का अभी तक का इतिहास देखें तो वह हमेशा भारत के परम्परागत दोस्त के बजाय पेशेवर दोस्त की भूमिका में ही नजर आया है।
ट्रम्प ने जिस प्रकार अपने भाषण में भारत को ज्ञान की धरती और भारतीय संस्कृति को महान बताते हुए गंगा, जामा मस्जिद व मंदिरों सहित भारतीय धरोहरों तथा स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी का उल्लेख किया और होली-दीवाली जैसे त्योहारों का जिक्र करना भी नहीं भूले, साथ ही यह भी स्वीकार किया कि अमरीका में भारतीय मूल के लोगों ने वहां के विकास में बड़ा किरदार निभाया है, उससे दोनों देशों के आपसी रिश्ते मजबूत होने की उम्मीदें तो जगी ही हैं। बदलते दौर में अमरीकी नीति में भारत का महत्व काफी बढ़ा है। 
ट्रम्प की इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि दोनों देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की शांति, विकास और सुरक्षा में एक प्रभावी योगदान दे सकते हैं। उनका कहना था कि आज भारत एक साथ सबसे ज्यादा सैटेलाइट भेजने का विश्व रिकॉर्ड ही नहीं बना रहा बल्कि सबसे तेज गति की अर्थव्यवस्था बनकर भी एक विश्व रिकॉर्ड बना रहा है और अमरीका आज भारत का बड़ा व्यापारिक साझेदार है, जिसके साथ भारत की सेनाएं सबसे ज्यादा युद्धाभ्यास कर रही हैं। अमरीका के साथ ही भारत की सबसे व्यापक रिसर्च और डिवेलपमेंट पार्टनरशिप है। राष्ट्रपति ट्रम्प की यात्रा को भारत और अमरीका के संबंधों का नया अध्याय बताते हुए प्रधानमंत्री ने साफ तौर पर कहा है कि दोनों के रिश्ते नई ऊंचाईयों पर पहुंचे हैं और दो देशों के संबंधों का सबसे बड़ा आधार विश्वास होता है। बहरहाल, ट्रम्प इस विश्वास पर कितना खरा उतरते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।
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