सम्पादक के नाम पत्र

 वास्तविक रहनुमा है साहित्य
एक ज़माना था जब किताबें मनुष्य की एक सच्ची दोस्त मानी जाती थी। आज के परिवर्तन के युग में जब इन्सान सब कुछ बिना प्रयत्न किए ही पा लेना चाहता है, तब  ऐसे में बच्चों की रुचि और सोच में ही बहुत बदलाव आ गया है। आज विज्ञान और तकनीक के आधुनिक युग में बच्चे भी खाली समय में कुछ पढ़ने की अपेक्षा कम्प्यूटर, वीडियो गेम व नेट पर ही अपना समय व्यतीत करना अधिक अच्छा मानते हैं। जबकि असल में यह है कि हम जीवन में कुछ करना चाहते हैं अर्थात् आगे बढ़ना चाहते हैं। सफलता पाकर देश की उन्नति में अपना योगदान देना चाहते हैं। 
एक सम्पूर्ण एवं सुदृढ़ व्यक्तित्व बनाना चाहते हैं तो किताबों से बेहतर रहनुमा और पथ-प्रदर्शक कोई और नहीं हो सकता। अच्छा साहित्य एक सच्चे मित्र की तरह कदम-कदम पर हमारा साथ देता है, कठिन हालात में जूझने की ताकत देता है, और उसको पार करने का रास्ता भी दिखाता है। इसे दुर्भाग्यपूर्ण कहा जा सकता है कि आज युवा वर्ग किताबें पढ़ना समय की बर्बादी मानता है। आज साहित्य पढ़ना तो दूर की बात है, अपनी कोर्स की किताबों को पढ़ना भी मुसीबत समझाता है। 

—राम प्रकाश शर्मा
मो. 90419-19382

हमारे देश में बसते हैं, दो भारत 
हमारे देश की आधी आबादी से ज्यादा लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। वह किसी तरह दो वक्त की रोटी जुटाने में लगे रहते हैं, तो उन्हें स्वस्थ रखना किसकी ज़िम्मेदारी है? यह सरकारों को स्पष्ट करना चाहिए। कई ऐसे गांव हैं हमारे देश में जो दूषित पानी पीते हैं और उसी से खाना भी बनाते हैं और खाते हैं। छोटे शहरों से लेकर बड़े शहरों तक काफी प्रतिशत जनता आर.ओ. का पानी पीती है, लेकिन जो गरीब जनता और बच्चे हैं, उन्हें तो शायद आर.ओ. का मतलब ही पता नहीं है। क्योंकि गरीबों की दुनिया में शुद्ध जल, शुद्ध भोजन, दवाईयां आदि मिलते ही नहीं हैं।
 मिट्टी के गड्ढों से गंदा पानी निकाल कर जीने वाले गरीब और फकीर, कई प्रतिशत ऐसे हैं, जिन्होंने ज़िंदगी में आर.ओ. का फोटो तक नहीं देखा है। जो छेटे शहरों और बड़े शहरों में रहते हैं उनका स्वास्थ्य भी प्रदूषण के कारण खराब ही रहता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए कई आधुनिक दवाएं, बाज़ार में मौजूद हैं, लेकिन गरीबों के पास दवा तक खरीदने के लिए रुपया-पैसा नहीं होता है। कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार की दवाइयों का छिड़काव फसलों पर किया जाता है। 
अनाज से लेकर सब्ज़ियों और फलों को बड़ा करने के लिए दवाइयों का जो छिड़काव किया जाता है, उससे हमारा स्वास्थ्य बिगड़ रहा है। 

-डा. एम. एल. सिन्हा 

कीटनाशक दवाइयों का खमियाज़ा 
सच्चाई तो यह है कि 90 फीसदी कीटनाशक दवाईयों का असर मिट्टी, जल और हवा में है। तो हम कैसे जी पाएंगे। आज भी नहीं सोच रहें कि कीटनाशक को मारने में प्रयोग होने वाली दवाईयां अमृत तो हो ही नहीं सकती। यह ज़ाहिर है कि यह जहर ही है। जितना हम इन कीटनाशक दवाईयों का छिड़काव फसलों पर करते हैं उसका एक प्रतिशत हिस्सा ही फसलों पर पड़ता है। बाकी 99 प्रतिशत तो मिट्टी, जल, फसल और हवा में चला जाता है। 
किसान कीटनाशक दवाईयां अविवेकपूर्ण इस्तेमाल कर रहे हैं। उसका प्रभाव फसल, हवा, मिट्टी, जल पर भी पड़ता है, लेकिन इन्सान को भी इसका खमियाज़ा भुगतना पड़ता है।

-डा. सुभाष पुरी ‘राही’
मो. 8196972992