इंटरनैट की लत से बीमार होता देश का बचपन

एक गैर-सरकारी संस्था ‘चाइल्ड राइट्स एंड यू’ (क्राई) दिल्ली तथा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में किए गए अपने सर्वे के जरिए, नयी पीढ़ी पर इंटरनैट के पड़ने वाले जिन दुष्प्रभावों के निष्कर्ष तक पहुंची है, वह कोई अप्रत्याशित निष्कर्ष नहीं हैं। इस बात की पहले से ही आशंका थी कि इंटरनेट का अधिकाधिक प्रयोग किशोरों के लिए नुक्सानदायक है।? यही बात अब क्राई के सर्वे से निकलकर सामने आई है। क्राई के सर्वे से पता चला है कि इंटरनैट का अधिकाधिक इस्तेमाल किशोरों को मानसिक रूप से कमजोर बना रहा है। दिल्ली-एन.सी.आर. में करीब 48 फीसदी किशोर इंटरनैट की लत से ग्रसित हैं।यह उन्हें इस कदर प्रभावित कर रहा है कि उनका इलाज और काउंसलिंग तक करानी पड़ रही है। इंटरनैट की लत के कारण किशोरों के जीवन पर जबरदस्त नकारात्मक असर पड़ रहा है। सर्वे से पता चला है कि दिल्ली-एन.सी.आर. में 13 से 18 साल तक के करीब 76 फीसदी बच्चे हर दिन औसतन 2 घंटे तक इंटरनैट पर बिता रहे हैं। इनमें करीब 8 फीसदी किशोर दिन में 4 घंटे या इससे भी ज्यादा समय तक इंटरनैट का प्रयोग कर रहे हैं। क्राईर् के सर्वे में यह तथ्य भी सामने आया है कि दिल्ली-एन.सी.आर. में 93 फीसदी किशोरों के पास इंटरनैट की सुविधा है। इनमें से 41 फीसदी किशोर तो इंटरनैट पर सिर्फ फेसबुक और यू-ट्यूब ही चलाते हैं, सिर्फ 40 फीसदी किशोर इंटरनैट का प्रयोग पढ़ाई के लिए करते हैं। सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि 80 फीसदी से अधिक किशोर सोशल मीडिया के लिए ही इंटरनैट का प्रयोग करते हैं। लेकिन विशेषज्ञ कहते हैं कि साइबर एडिक्शन या इंटरनैट की लत से छुटकारा पाने के लिए जरूरी है कि पहले हम अच्छी तरह से यह जान लें कि आखिर इंटरनैट एडिक्शन होता क्या है? विशेषज्ञों की मानें, तो यह एक ऐसी मनोस्थिति है, जब जब किशोर या युवा घंटों ऑनलाइन गेम, नैट सर्फिंग या सोशल साइट्स पर समय बिताने लगते हैं। कई बार तो उनकी इन गतिविधियों के लिए समय की कोई सीमा नहीं रहती। उसकी एक बड़ी वजह यह भी होती है कि इसकी लत के शिकार लोगों का खुद पर नियंत्रण कम होता जाता है। इंटरनैट नहीं मिलता तो वे अधीर, बेचैन या अवसाद से ग्रस्त हो जाते हैं। यहां तक कि बात-बात पर बिना किसी मतलब के भी झूठ बोलने लगते हैं। साथ ही ये छोटी-छोटी समस्याओं से भागने लगते हैं और जल्द ही नकारात्मक सोच से भर जाते हैं।  वास्तव में इंटरनैट की लत एक प्रकार की बीमारी है, जिसको हम इलाज और काउंसलिंग से सही कर रहे हैं। क्राई के एक सर्वे में यह बात सामने आयी है कि हर तीन में से एक किशोर साइबर बुलिंग (सोशल मीडिया पर किसी के द्वारा परेशान किया जाना) का शिकार है। साइबर क्राईम के बारे में जानकारी के अभाव के कारण ही किशोर इसकी चपेट में आ रहे हैं। साइबर बुलिंग का किशोरों पर शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक रूप से बुरा प्रभाव पड़ रहा है। वैसे किशोरों में इंटरनैट के दुष्प्रभाव की यह कोई पहली परख नहीं है।इससे पहले चीन में भी इसे लेकर एक सर्वे हो चुका है। समाचार-पत्र डेली मेल के मुताबिक चीन में 15 वर्ष आयु वर्ग वाले 1 हजार किशोरों पर अवसाद और चिंता का अध्ययन किया गया था। वहां भी इंटरनैट की लत के काफी नकारात्मक नतीजे सामने आए थे। वास्तव में इंटरनेट की लत का शिकार बन चुके किशोरों में अवसाद का खतरा दोगुने से भी ज्यादा होता है। इसकी वजह से किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। सिडनी स्कूल ऑफ मैडिसन के लॉरैंस लाम और चीन में शिक्षा मंत्रालय के जी. वेन पेंग व गुआंगजोउ विश्वविद्यालय के सन यात सेन ने इस अध्ययन का संचालन किया था। लाम के मुताबिक, इसके निष्कर्ष से साफ है कि मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से मुक्त किशोर यदि इंटरनैट की लत का शिकार हो जाते हैं तो उनमें बाद में ये समस्याएं पैदा हो सकती हैं। गौरतलब है कि चीन के इसी सर्वे से भारत में बच्चों एवं किशोरों के लिए इंटरनैट डी-एडिक्शन सैंटर्स की जरूरत महसूस की गई। नतीजतन तीन साल पहले बेंगलुरु में पहला इंटरनैट डी-एडिक्शन सैंटर खोला गया, जिसका काफी अच्छा रिस्पॉन्स मिला। फिर दो साल बाद दिल्ली के एम्स में भी साइबर एडिक्ट क्लीनिक की शुरुआत हुई है। लेकिन यह अकेले भारत या चीन की समस्या भर नहीं है। आज देश ही नहीं, दुनिया भर में इंटरनैट की लत एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। बच्चे-किशोर इसकी गिरफ्त में सबसे ज्यादा हैं। क्राईर् की उत्तरी क्षेत्र की निदेशिका सोहा मोइत्रा के मुताबिक उनकी संस्था ने विशेषज्ञों से बातचीत कर बचाव के कुछ उपाय भी जारी किए हैं। मसलन इंटरनैट से बचाव पर विशेषज्ञों का कहना है कि किशोरों को उनके अभिभावकों की निगरानी में ही इंटरनैट का प्रयोग करने दिया जाना चाहिए। अभिभावक को बच्चों को इंटरनैट के सुरिक्षत प्रयोग के विषय में जानकारी देनी चाहिए, साथ ही बच्चों को निर्देश देना चाहिए कि इंटरनैट का प्रयोग सीमित समय के लिए करें। अभिभावकों को 18 साल से कम के बच्चों को इंटरनैट के प्रयोग के लिए स्मार्ट फोन नहीं देना चाहिए बल्कि उनको घर के कम्प्यूटर पर ही इंटरनैट का इस्तेमाल करने के लिए कहना चाहिए। बच्चों को खुद इससे सजग रहना चाहिए। उन्हें इंटरनैट पर उतना ही वक्त बिताना चाहिए जितनी जरूरत हो। कभी भी सोते समय फोन या टैबलेट बेड पर नहीं रखना चाहिए। ई-बुक के स्थान पर कोई पेपर बुक पढ़नी चाहिए। इस सबके साथ ही किशोरों और युवाओं को आभाषी किताबों और दोस्तों से भी बचना चाहिए।