आज के दिन मिली थी अजनाला के कुएं में 157 वर्षों से दफन सैनिकों को मुक्ति

अमृतसर, 27 फरवरी (सुरिन्द्र कोछड़) : तहसील अजनाला में भारतीय सेना के अधिकार में आते कैंपिंग ग्राऊंड से लगती भूमि में स्थापित एक गुरुद्वारे के प्रकाश अस्थान के नीचे खुदाई कर आज से पांच वर्ष पहले जिन 282 हिन्दुस्तानी सैनिकों के कंकाल निकाले गए थे, उनकी शिनाख्त की कार्रवाई पूरी करने में भारत सरकार आज तक कामयाब नहीं हो सकी है। वर्णनीय है कि 30 जुलाई 1857 को लाहौर की मीयां मीर छावनी में बगावत कर भागे लगभग 500 हिन्दुस्तानी सैनिकों में 200 से अधिक का कत्ल करने उपरांत बाकी को अमृतसर के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर फ्रैडरिक एच. कुपर के सैनिकों द्वारा दरिया के किनारे से जिंदा गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तार सैनिकों में बहुत सैनिकों को गोलियां मार कर और बाकियों को जिंदा उक्त कुएं में फैंकने के बाद कुएं को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया। जब सैनिकों को कुएं में फेंका गया तो कुपर द्वारा उन पर चूना और लकड़ी का कोयला भी फैंका गया ताकि उनकी लाशें जल्दी गल जाए। इसके अलावा उक्त ‘वीरगाथा’ कुएं के बाहर लोहे के पतरे पर गुरमुखी, शाहमुखी और अंग्रेजी में लिखवा कर लगाना चाहता था, पर उसकी यह हसरत पूरी न हो सकी। यह भी जिक्रयोग्य है कि उनमें एक जख्मी सैनिकों को छोड़ कर बाकी सबको गोलियों से मारकर और जिंदा कुएं में फेंक कर दफन कर दिया गया था। कुपर ने वह जख्मी सैनिक महारानी विक्टोरिया को तोहफे में भेट करने के लिए जिंदा रखा और बाद में उस सैनिक सहित अमृतसर से गिरप्तार किए बैरागी संतों पर सैनिकों को लाहौर छावनी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के उच्चाधिकारियों के सामने तोप से उड़ा दिया गया। तोप से उड़ाने से पहले यादगार के रूप मे उक्त सैनिक का सिर काट लिया गया और उसकी खोपड़ी आज भी लंदन के अजायब-घर में मौजूद है।