वायदों और दावों का बजट

पंजाब की कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की कांग्रेस नीत सरकार के वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल द्वारा विधानसभा में प्रस्तुत किये गये चौथे बजट को पहली नज़र में देखते ही यह प्रदेश में 2022 में होने वाले चुनावों की अग्रिम आहट देने वाला महसूस होता है। दो दिन पूर्व विधानसभा में पेश बजट अनुमानों से भी ऐसा ही प्रतीत हुआ था कि यह बजट लोक-लुभावन धरातल पर प्रस्तुत होने की बड़ी सम्भावना है। वित्त मंत्री ने बजट पेश करते हुए बेशक वायदों का अम्बार लगाया है। उन्होंने दावे भी बहुत किये हैं, और जन-साधारण, उद्योग, कृषि, अनुसूचित जाति/जन-जाति आदि के लिए सुविधाओं एवं राहतों के द्वार खोलने की घोषणाएं भी बहुत की हैं, परन्तु इस सब कुछ के लिए वांछित धन-राशि की आपूर्ति कैसे की जाएगी, इसका संकेत कहीं नहीं दिया गया। वित्त मंत्री ने अपने भाषण के दौरान स्वयं स्वीकार किया है कि बजटीय घाटे का एक बड़ा कारण, प्रदेश के सिर पर लदे ऋण-बोझ पर प्रतिवर्ष दिया जाने वाला 10500 करोड़ रुपये का ब्याज बनता है। बजट के संशोधित अनुमानों के अनुसार वर्ष 2021 की कुल राजस्व प्राप्तियां पिछले वर्ष के 73975 करोड़ रुपये से बढ़ कर 88004 करोड़ रुपये हो जाएंगी, परन्तु लगभग 14 हज़ार करोड़ रुपये की इस वृद्धि से बजटीय वृद्धियों का एक अंश तक पूरा हो पाने की उम्मीद भी नहीं की जा सकती। वित्त मंत्री की घोषणाओं के अनुसार राज्य में प्रति व्यक्ति आय बढ़ी है और कि यह आंकड़ा राष्ट्रीय औसत से अधिक दर्शाया गया है। प्रदेश के राजस्व में भी 2085 करोड़ रुपये की वृद्धि दिखाई गई है। वित्त मंत्री ने यह भी दावा किया है कि प्रदेश सरकार पिछले तीन वर्ष में प्राईमरी धरातल पर आत्म-निर्भर हुई है। सरकार ने अपने खर्च घटाये हैं, और आय के साधन बढ़ाये हैं, परन्तु इन बढ़े हुए अनुमानों का न तो स्रोत बताया गया है, न इनसे हुए हासिल का कोई लेखा-जोखा है। इसके साथ ही सरकार ने किन मदों पर खर्च कम किया और वहां से क्या उपलब्धि हुई, इसका भी कोई प्रमाण-चिन्ह दिखाई नहीं दिया है जबकि अगले वित्त वर्ष के लिए संशोधित अनुमानों के अनुसार कुल खर्च पिछले वर्ष के 86,602 करोड़ रुपये से बढ़ कर 95,716 करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है। हालांकि देश में जिस प्रकार मंदी के हालात चल रहे हैं, और प्रदेश की जिस प्रकार की देनदारियां बनती हैं, उनके अनुसार सरकार के व्यय-अनुमान बढ़ने की भी भारी सम्भावनाएं मौजूद हैं। बजट प्रावधानों में नि:संदेह कुछ अच्छी घोषणाएं हैं, परन्तु इन अच्छी घोषणाओं की पूर्ति के लिए भी भारी धन-राशि की आवश्यकता पड़ेगी। वेतन आयोग की सिफारिशें अगले वित्त वर्ष में लागू करने और कर्मचारियों को महंगाई भत्ता दिये जाने की घोषणाएं सार्थक पग हैं, परन्तु सेवा-मुक्ति की आयु-सीमा 58 वर्ष किया जाना एक झटका भी है।  सरकार ने प्रदेश में पिछले तीन वर्ष में निवेश बढ़ने का दावा किया है। सरकारी स्कूलों में जमा-दो तक की शिक्षा को मुफ्त किये जाने की घोषणा पूर्व में ही अपेक्षित थी। नि:संदेह कैप्टन सरकार के समक्ष दिल्ली सरकार की जीत की छवि रही होगी। किसानों की ऋण माफी को एक बार फिर मुद्दा बनाया गया है, और इस हेतु 2000 करोड़ रुपये की राशि भी रखी गई है। भूमिहीन श्रमिकों की कज़र्-माफी के लिए भी 520 करोड़ रुपये देने की घोषणा की गई है, परन्तु इस घोषणा के क्रियान्वयन में भी यदि पूर्व की भांति ढिल-मुल नीतियां अपनाई जाती रहीं, तो अगले वर्ष के अन्त तक तो अगले चुनावों की घोषणा भी हो जाएगी। युवाओं के लिए नये रोज़गार के सृजन का कोई ज़िक्र इन बजटीय प्रावधानों में नहीं है। सरकारी भर्तियों की घोषणा तो बेशक की गई है, परन्तु इसके भी कानूनी पचड़ों और चुनावी सीमाओं में उलझ कर रह जाने की आशंका है। शिक्षा क्षेत्र के लिए 13092 करोड़ और स्मार्ट स्कूल योजनाओं के लिए 100 करोड़ रुपये रखे गये हैं। सड़कों, स्वास्थ्य और पेयजल के लिए भी भारी-भरकम राशि रखी गई है। मंडी फीस को 4 प्रतिशत से घटा कर एक प्रतिशत करके व्यापारी और किसान वर्ग को थोड़ी राहत दी गई है। किसानों को मुफ्त बिजली-पानी जारी रखने की घोषणा तो चिरकाल से चुनावी मुद्दा बन चुकी है। उद्योगों के लिए बिजली सब्सिडी राशि भी बढ़ाई गई है। कुल मिला कर पंजाब सरकार का मौजूदा पेश किया गया बजट दावों, वायदों एवं घोषणाओं के धरातल पर तो बहुत बढ़िया है, परन्तु ठोस धरातल पर उतरते ही पांवों के छाले बढ़ जाने की भी आशंका है। प्रदेश की मौजूदा स्थितियों के अनुसार देखें, तो आने वाले समय में कर-बोझ बढ़ सकता है, परन्तु बजटीय घोषणाओं को पूरा करने के लिए भारी-भरकम धन-राशि कहां से आएगी, इसके  स्रोत बारे कोई संकेत तक नहीं दिखता। इससे प्रदेश का बजट-घाटा और ऋण-बोझ की गठरी भारी हो जाने की बड़ी आशंका है। कुल मिला कर इस बजट का पंजाब के जन-साधारण का क्या हित-साधन होगा, यह अगले वर्ष के व्यतीत होने पर ही पता चलेगा।