मज़दूरों के लिए आज भी लेबर चौक क्यों?

मिक अर्थात् मजदूर को अथाह परेशानियों से जूझना पड़ता है। पहले मज़दूरी कम, दूसरे काम मिलने की अनिश्चितता, ऊपर से उनके बैठने का कोई निश्चित तौर और सम्मानजनक ठिकाना भी नहीं। मजदूरों को नसीब होते हैं शहरों, नगरों और महानगरों के चौक, जिनका नाम ‘लेबर चौक’ रख कर हम श्रम और श्रमिक के प्रति अपने सम्मान और कर्त्तव्य को सीमित कर लेते हैं। क्या यह शर्मनाक स्थिति नहीं है कि श्रमिकों को अपने लिए काम पाने के लिए शहरों के चौकों पर भेड़-बकरियों के झुण्ड की तरह इकट्ठा होना पड़ता है, जहां न सिर पर छत होती है और न बैठने के लिए उपयुक्त स्थान। श्रमिकों की ऐसी दुर्दशा रोकने के लिए सरकार को चौराहों पर श्रमिकों को श्रम कार्यालय प्रदान करने चाहिए, जहां श्रमिक आराम से बैठ सकें।

    —अक्षित तिलक राज गुप्ता