जीवन का अनमोल खज़ाना है हंसी

यह फूलों जैसी ज़िंदगी फूलों की तरह खिली रहे, बढ़िया लगती है। चारों तरफ प्यार ही प्यार हो, विभिन्न प्रकार की खुशबुएं हों, ठण्डी और ताज़ी हवा हो, सभी जीव-जन्तु उछल-कूद रहे हों। बात क्या समूचा आलम ही गुलाब की तरह महक रहा हो, फिर तो हर चेहरे पर रौनक और हंसी-मज़ाक की झड़ी स्वयं ही लग जाती है। वैसे हंसी प्रत्येक मनुष्य को खूब भाती है, चाहे वह किसी भी वर्ग से संबंध रखता हो। यह तो लड़कियों की खूबसूरती को चार-चांद लगा देतीहै। हंसी का वरदान सिर्फ मनुष्य को प्राप्त है। हंसी एक ऐसी सौगात है, जो अमूल्य है। इसे खरीदा या बेचा नहीं जा सकता। वह मनुष्य खुशकिस्मत समझा जाता है, जिसके चेहरे पर हर समय हंसी रहती है। विशेषज्ञों का कहना है कि खुलकर हंसने से 72,000 नाड़ियों की कसरत हो जाती है। कई लोग तो सुबह-सुबह एकांत स्थान पर जाकर ज़ोर-ज़ोर से हंसते हैं। सुबह-सुबह खुलकर हंसने से सारा दिन ही हंसी की खुमारी चढ़ी रहती है। योगा आसन करने वाले भी ज़ोर-ज़ोर से और ठहाके लगाकर हंसते हैं। परिणामस्वरूप वह आनंदमयी जीवन व्यतीत करते हैं। हंसने से बहुत सारी बीमारियां छू-मंतर हो जाती हैं। कैलिफोर्निया के डाक्टर ली बर्क का कहना है कि हंसी शरीर के इलाज का प्राकृतिक प्रबंध है। हंसने से तनाव को जन्म देने वाले हार्मोनों का स्तर कम होता है, टी-सैल्ज़ में वृद्धि होती है और पाचन प्रणाली सही रहती है। एंटीबॉडी इम्योनोग्लोब्यूलिन ए की मात्रा बढ़ती है, जो श्वास नली में इन्फैक्शन होने से बचाता है। हंसी पर कोई टैक्स नहीं लगता। बेखौफ होकर मुस्कुराहट का आदान-प्रदान करना चाहिए।सी कई प्रकार की होती है, जैसे खुलकर हंसना अर्थात् गुलाब की तरह खिल जाना, दानव हंसी जैसे रावण की हंसी, बनावटी हंसी, मुस्कुराना आदि। खैर, हंसी का तो पता चल ही जाता है कि यह नकली है या असली, वैर-विरोध ईर्ष्या, बदला लेने की भावना आदि नकली हंसी का निर्माण करते हैं। वास्तव में नकली हंसी सिर्फ खून ही नहीं जलाती बल्कि ढेर सारी बीमारियों को भी जन्म देती है और असली हंसी शरीर को तंदुरुस्ती प्रदान करती है, नए खून में वृद्धि करती है। मानव जीवन के तीन मुख्य चरण हैं—बचपन, जवानी और बुढ़ापा। प्रत्येक चरण का अपना एक महत्व है। बचपन, मासूमियत का चरण है। इसमें ऐसा प्रतीत होता है जैसे हंसी की बाढ़ आई हो। कोई चिन्ता नहीं, बस मौज ही मौज। हर कोई प्यार करता है और स्वयं ही बड़े-बड़े सपने संजोता है। दूसरा चरण है जवानी। यह मनुष्य की ज़िंदगी का सबसे महत्वपूर्ण चरण है, इसमें कुछ करके दिखाना होता है। जवानी के जोश को सीधे किनारे लगाने की कोशिश करनी चाहिए, नहीं तो यह स्वयं का ही नहीं अपितु दूसरों का जीवन भी तबाह कर देता है। जवानी का नशा ही इतना होता है कि जो इसको संभाल गया, हंसी-मजाक तो सारी उम्र उसका पानी भरते हैं। अंतिम चरण है बुढ़ापा। जवानी के चरण में जो पौधे लगाये हैं, उनकी छाया में बैठना है, ज़िंदगी को हमेशा ही आशावादी ढंग से लेना चाहिए, फिर देखो खुशियां स्वयं ही आपके कदमों में होंगी। चुपचाप और चिंतक मनुष्य की अपेक्षा हंसते चेहरों को लोग ज्यादा प्यार करते और सम्मान देते हैं। हंसी भरी ज़िंदगी की कोई कीमत नहीं चुका सकता। हंसी और ज़िंदगी का चांद और चकोर वाला रिश्ता है। जिस ज़िंदगी से हंसी गायब हो गई, उससे पूछें कि हंसी का मूल्य क्या है? यह जानते हुए भी कि क्या हंसी अमूल्य है, फिर भी लोग हंसी को भूलते जा रहे हैं। हंसी से भरी ज़िंदगी भी आज पदार्थवाद की चपेट में आ गई है। चारों तरफ पैसा बोलता है, अब तो गहरे रिश्ते भी टूटते जा रहे हैं अर्थात् मनुष्य में खट्टास बढ़ती जा रही है, हंसी तो जीवन की खुराक है, इसके बिना ज़िंदगी चारों तरफ से वंचित रह जाती है। वह बात अलग है कि ज्यों-ज्यों मनुष्य बड़ी आयु की तरफ पांव रखता है, तो बहुसंख्या में चिंताएं उसको घेर लेती हैं, परन्तु समझदार व्यक्ति वही है, जो चिंताओं के कीचड़ में रहकर भी कमल के फूल की तरह महकता है। कई बेचारे तो चिन्ताओं की ऐसी गहरी खाई में गिरते हैं, अर्थात् अपनी जीवनलीला ही समाप्त कर लेते हैं। यह बात हमेशा ध्यान में रखनी चाहिए कि जीवन अकेला हंसी-मजाक का संग्रह नहीं, बल्कि दुख-सुख इस जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिये हैं। यदि ज़िंदगी में दुख न होते तो सुखों का स्वाद भी किरकिरा हो जाना था। यह भी बिल्कुल उसी तरह ही है, जैसे हम कभी खट्टा-मीठा या नमकीन का स्वाद चखते हैं और शारीरिक संतुलन कायम रहता है। ज़िंदगी का मूल-मंत्र है कि स्वयं को परेशान न करो, चाहे लाख उतार-चढ़ाव क्यों न आ जाएं, जो चीज़ पसंद है, उसको प्राप्त करने के लिए हर हाल में कोशिश करो, बच्चों के साथ खूब मस्ती करो, क्योंकि बच्चे ही भगवान का रूप हैं। स्वयं को किसी संस्था से जोड़कर रखें। बढ़िया समय गुजरेगा। अध्यात्म और धर्म के लिए कुछ समय अवश्य निकालना चाहिए, क्योंकि इससे मन को शान्ति और खुशी मिलती है। हंसी-मजाक भरी ज़िंदगी जीने के लिए संयम का होना बहुत ज़रूरी है। यदि जीवन में संतुष्टि नहीं है, तो चिंताओं और बीमारियों का आना स्वभाविक है, इसलिए संयम भरी ज़िंदगी जीयें, हंसी-मजाक स्वयं ही आ जायेंगे।

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