लो, अस्तित्व में आ गया क्वांटम कम्प्यूटर 

असंभव-सा लगने वाले तीव्र गति से गणनाओं को परिणाम में बदलने वाले सुपर क्वांटम कम्प्यूटर बनाने का दावा तकनीकी संस्था गूगल ने किया है। रोमांच पैदा कर देने वाले इस कम्प्यूटर को ‘साइकामोर’ नाम दिया है। यह सुपर कम्प्यूटर से भी लाखों गुना तेज गति से क्वांटम कम्युटिंग के सिद्धांत पर काम करेगा। इसकी गति एक सेकेंड में बीस हजार लाख करोड़ गणनाएं करने में सक्षम है। प्रयोग के दौरान इस कम्प्यूटर ने 200 सेकेंड में उस गणना को अंजाम दे दिया, जिसे नतीजे में बदलने में पारंपरिक सुपर कम्प्यूटर को 10,000 साल का समय लगता। हालांकि गूगल के इस दावे पर सवाल भी उठने लगे हैं। दरअसल पिछले हफ्ते गूगल प्रयोगशाला का मसौदा ऑनलाइन लीक हो गया था। इसका परीक्षण करने के बाद आईवीएम के वैज्ञानिकों का कहना था कि जिस गिनती में सामान्य सुपर कम्प्यूटर को 10,000 साल लगने की बात कही जा रही है, उसमें केवल ढाई साल का समय ही लगेगा। इनका कहना है कि ‘क्वांटम सुप्रीमेसी का अर्थ है, क्वांटम कम्प्यूटर का वह काम कर सके, जो सामान्य सुपर कम्प्यूटर नहीं कर सकते हैं। साइकामोर इस पैमाने पर खरा नहीं है।’ आईवीएम भी क्वांटम कम्प्यूटर के निर्माण में लगा है।  तकनीक की दुनिया में दिन दूनी रात चौगुनी गति से प्रगति हो रही है। कुछ समय पहले तक असंभव-सी लगने वाली चीजें आज प्रौद्योगिकी की मदद से सरलता से परिणाम तक पहुंच रही हैं। एक समय संगणक के विकास ने प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव किया था। अब कृत्रिम बौद्धिकता (आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस) ने चिकित्सा से लेकर हथियारों के निर्माण तक हर क्षेत्र में कम्प्यूटर और रोबोट के प्रयोग को नया आयाम दिया है। इस कम्प्यूटर के अस्तित्व में आने के बाद इन क्षेत्रों में और संभावनाएं बढ़ जाएंगी। दवाओं की खोज में भी इसका असरकारी फायदा होगा। पारंपरिक कम्प्यूटर की दुनिया में इस प्रगति के समानांतर एक और अनुसंधान चल रहा है, जिसका नाम है ‘क्वांटम कंप्युटिंग’ यानी अति-सूक्ष्मता का विज्ञान। भौतिक-शास्त्र के क्वांटम सिद्धांत पर काम करने वाली इस कंप्युटिंग में असीमित संभावनाएं देखी जा रही हैं। शोध के लिहाज से यह विशय किसी के लिए भी रुचि का विषय हो सकता है। इसीलिए दुनियाभर में अल्ट्रा फास्ट क्वांटम कम्प्यूटर तैयार करने की होड़ लगी हुई है। विशेषज्ञों के अनुसार एक पूर्ण विकसित क्वांटम कम्प्यूटर की क्षमता सुपर कम्प्यूटर से भी ज्यादा आंकी जा रही है। अतएव यह इतना शक्तिशाली होगा जिसकी कल्पना कठिन है ? यह आम कम्प्यूटरों की तुलना में बहुत तेजी से गणनाएं करेगा और ऐसे विलक्षण काम भी करेगा, जो वर्तमान कम्प्यूटरों से संभव नहीं हैं। इस क्वांटम कंप्युटिंग या मेकेनिक्स की खास बात यह है कि इसकी शुरूआत के बाद पश्चिमी वैज्ञानिक यह मान रहे हैं कि भारतीय भाववादी सिद्धांत को जाने बिना अणु या कण में चेतना का आकलन नहीं किया जा सकता है। इस नवीन विषय के अध्ययन की नींव 1990 में वैज्ञानिक मैक्स प्लांक ने डाली थी। हालांकि इस समय तक वैज्ञानिक यह मानकार चल रहे थे कि भौतिकी में जितने नियमों का आविष्कार होना था, लगभग हो चुका है। अब केवल इन नियमों को प्रत्येक जगह क्रियान्वित करना भर शेष है। किंतु कुछ प्रश्न तब भी ऐसे थे, जिनके हल खोजे नहीं जा सके थे। अभी तक काले पिंड (बॉडी) के सतत वर्णक्रम (स्पेक्ट्रम) के भिन्न-भिन्न भागों की ऊर्जा के वितरण को परिभाषित नहीं किया जा सकता था। इसे समझने के लिए प्लांक ने प्रकाश उत्सर्जन करने वाले द्रव्य-कणों की निरंतर चाल के साथ उनमें बिखरी ऊर्जा को भी समझने का विचार दिया। इससे काले पिंड के वर्णक्रम की व्याख्या सुलझ गई। दरअसल इस सोच के परीक्षण में जो निष्कर्ष आए, उनसे ज्ञात हुआ कि ऊर्जा का विकिरण लगातार न होकर टुकड़ों-टुकड़ों में होता है। इन टुकड़ों को विकिरण-कण नाम दिया गया। यह विकिरण भी कणों पर नहीं, बल्कि तरंगों के आधार पर चलता है। यह नियम विद्युत चुंबकीय सिद्धांत के विपरित था, क्योंकि अब तक यह माना जाता था कि द्रव्य-कणों की गति में विद्यमान ऊर्जा निरंतर गतिशील रहती है। यानी क्वांटम सिद्धांत के तहत अणु, परमाणु और इनके भी मूलभूत कण बेहद लघुतम अवस्था में मौजूद रहते हैं। इस खोज पर 1918 में मैक्स प्लांक को भौतिकी का नोबेल पुरस्कार भी मिला। 1924 में सत्येंद्रनाथ बोस ने प्लांक के विकिरण नियम को समझाने के लिए एक सर्वथा नवीन विधि सुझाई। उन्होंने प्रकाश की कल्पना द्रव्यमानरहित कणों के एक गैस पिंड के रूप में ली। इसे फोटॉन गैस के रूप में मान्यता मिली। बाद में इस मान्यता को अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी स्वीकृति दी। विज्ञान ने पहले परमाणु को ही ऐसा सबसे सूक्ष्मतम कण बतलाया था, जिसने विश्व का निर्माण किया है। फिर आगे की खोज से ज्ञात हुआ कि परमाणु भी विभाजित हो सकता है। यानी उसे और अत्यंत सूक्ष्म-कणों में बांटा जा सकता है। फलत: ये सूक्ष्म-कण, इलेक्ट्रॅन, प्रोटॉन और न्यूट्रॉन नाम के लघुतम रूपों में सामने आए। कालांतर में कण मसलन क्वांटम भौतिकी और विकसित रूपों में सामने आई। तब पता चला कि प्रोटॉन और न्यूट्रॉन को और विभाजित किया जा सकता है। अंतत: इसे क्वार्क व लैपटॉन जैसे सूक्ष्मकणों में विभाजित कर भी लिया गया। इस तरह से कण भौतिकी में एक प्रामाणिक प्रतिदर्श सामने आया, जिसमें क्वार्क व लैप्टॉन के बारह सूक्ष्मतम कणों के प्रकार दर्ज हैं। इन्हें जरूर अब तक अविभाज्य माना गया है। अब इन्हें ही मूलकण माना जा रहा है। कण-यांत्रिकी को कल के कम्प्यूटर का भविष्य माना जा रहा है। पारंपरिक कम्प्यूटर बिट (अंश) पर काम करते हैं, वहीं क्वांटम कम्प्यूटर में प्राथमिक ईकाई क्यूबिट यानी कणांश होती है। पारंपरिक कम्प्यूटर में प्रत्येक बिट का मूलाधार या मूल्य शून्य (0) और एक (एक) होता है। कम्प्यूटर इसी शून्य और एक की भाषा में ही कुंजी-पटल (की-बोर्ड) से दिए निर्देश को ग्रहण करके समझता है और परिणाम को अंजाम देता है। वहीं क्वांटम की विलक्षण्ता यह होगी कि वह एक साथ ही शून्य और एक दोनों को ग्रहण कर लेगा। यह क्षमता क्यूबिट की वजह से विकसित होगी। परिणामस्वरूप यह दो क्यूबिट में एक साथ चार मूल्य या परिणाम देने में सक्षम हो जाएगा। एक साथ चार परिणाम स्क्रीन पर प्रगट होने की इस अद्वीतीय क्षमता के कारण इसकी गति पारंपरिक कम्प्यूटर से कहीं बहुत ज्यादा होगी।  इस कारण यह पारंपरिक कम्प्यूटरों में जो कूट-रचना या गूढ़-लेखन कर दिया जाता है, उससे कहीं अधिक मात्रा में यह कम्प्यूटर डाटा ग्रहण व सुरक्षित रखने में समर्थ होगा। फिलहाल साईकामोर कम्प्यूटर का प्रोसेसर 54 क्यूबिट का है। हालांकि गूगल ने जिस क्वांटम कम्प्यूटर मशीन को वजूद में लाने का दावा किया है, वह फ्लिप फोन जैसी है। 

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