भारत में बढ़ती बेचैनी से उथल-पुथल क्यों ?

गत दिनों दिल्ली में हुए दंगों में अनुमानित पच्चीस हज़ार करोड़ का आर्थिक नुकसान और पचास के करीब जानी नुकसान हुआ है। सांप के निकल जाने के पश्चात लकीर पीटने की रस्म पूरी की जा रही है। देश के बहुत से नेताओं के भड़काने वाले भाषणों पर खींचतान आरम्भ हो गई है। ओवैसी बंधू तो खैर बड़े लंबे समय से मुस्लिम समाज की लीडरशिप के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं और उनके मुंह से शब्द नहीं, चिंगारियां निकलती हैं। भारतीय संविधान में उन जैसे नेताओं को बोलने की, बल्कि खूब बोलने की आज़ादी दे रखी है। अकेले मुस्लिम नेताओं की ही बात नहीं है। भाजपा, कांग्रेस, वामदल और आम आदमी पार्टी के ज़िम्मेदार नेता भी शोला बयानी से बाज़ नहीं आ रहे। जब 24 फरवरी, 2020 को अमरीका के दबंग कहे जाते राष्ट्रपति अपने परिवार सहित भारत में आए तो उनका भरपूर स्वागत भी हुआ, परन्तु कुछ नेताओं ने साजिशन उनके दौरे के प्रचार का महत्त्व घटाने के लिए कुछ स्थानों पर नागरिकता संशोधन कानून को बहाना बना कर धरने और सत्याग्रह आरम्भ कर दिए। इसके लिए सर्व प्रथम जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में हिंसक सत्याग्रह आरम्भ हुआ। इसके पश्चात अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में भी इसी तरह का माहौल बनाया गया। जब वामदल नेताओं ने समझा कि इससे बात सांप्रदायिक न बन जाए तो उन्होंने जे.एल.एन. विश्वविद्यालय दिल्ली में अपनी विचारधारा के समर्थक विद्यार्थियों को मैदान में उतार जिससे भाजपा सरकार के विरुद्ध संघर्ष को नई सूरत मिली। यहीं पर ही बस नहीं, शाहीन ब़ाग में मुस्लिम महिलाओं को बच्चों सहित बिठा कर सी.ए.ए., एन.पी.आर. एवं एन.सी.आर. के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलंद की।पाकिस्तान अपने जन्म से लेकर आज तक भारत से घृणा जारी रखे हुए है। कोई पूछने वाला नहीं। क्यों जारी है पाकिस्तान में एक मुहिम-भारत से ऩफरत की? कहा जाता है कि पाकिस्तान के 60 प्रतिशत लोग भारत से दोस्ती से पक्षधर हैं। भारत में भी पाकिस्तान से स्नेह रखने वाले बहुत के लोग हैं, जिन्हें प्राय: पाकिस्तान का ‘स्लीपर सैल’ कहा जाता है। इन दिनों ये भी कहा जा रहा है कि दिल्ली में हुए दंगों के पीछे पाकिस्तान की आई.एस.आई. की करतूत अनुभव होती है। एक हज़ार के करीब लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है और 250 के करीब एफ.आई.आर. दर्ज की जा चुकी हैं। कड़वी सच्चाई सुनेगा कौन? इस्लाम के कुछ धार्मिक नेता जलती में घी डालने का काम कर रहे हैं। जबकि यह समय हिन्दू-मुस्लिम में पड़ी दरार को पाटने का है। हमें शशी थरूर, मणिशंकर अय्यर, दिग्विजय सिंह, राहुल गांधी, राशिद अल्वी व सलमान खुर्शीद जैसे कांग्रेस नेताओं से कोई शिकायत नहीं। ये सत्ताविहीन लोग जल बिन मछली की तरह तड़प रहे हैं। मोदी की मुखालफित करते-करते देश के हितों के खिलाफ भी बहुत कुछ कह जाते हैं। नागरिकता संशोधन कानून के पक्ष में भी कुछ मुस्लिम रहनुमां भी हैं, जिनमें सैयद कल्बे जवाद नकवी और मौलाना मिज़र्ा मोहम्मद अतहर इत्यादि के नाम लिए जा सकते हैं। क्या कांग्रेस के नेता ये नहीं जानते? उनको पता होना चाहिए कि वे मुसलमानों में एक डर का माहौल क्यों पैदा कर रहे हैं। कहा जाता है कि ख़ौफ से हमेशा रिश्तों की डोर टूटती है। क्या भाजपा सरकार घुप अंधेरे से जूझ रही है? जबकि आज देश में भारत के गृहमंत्री के विरुद्ध एक बाबेला खड़ा किया जा रहा है। कुछ विपक्षी दलों के नेता गृह मंत्री से त्याग-पत्र की मांग कर रहे हैं। हो सकता है कि अमित शाह की कोई मजबूरी रही हो जो उसने दिल्ली में हुए दंगों के दरमियान आवाज़ न उठाई हो। हम समझते हैं कि भारत में यह लोग किसी हद तक ठीक सोचते हैं जो यह कहते हैं कि एक अंदेशा है कि भारत में पुन: आतंकवाद आने का। ताहिर हुसैन नामक आम आदमी पार्टी के पार्षद शायद आतंकवाद को लाने की साजिश में शरीक हों। इस घटना से हम देश में कुशासन की आमद नहीं मानते। मुसलमानों में कुछ लोग ऐसा कहते हैं कि मोदी सरकार, की दूसरी पारी को अभी साल भी नहीं हुआ और उसने कई बड़े फैसले ले लिए। विधि की विडंबना यह है कि सभी फैसले मुसलमानों को परेशान कर गए जैसे कश्मीर से धारा 370 का हटना, तीन तलाक पर कानून, बाबरी मस्जिद और राम जन्म भूमि बारे मुकदमे का निर्णय और सी.ए.ए. जिसमें पाकिस्तान, बंगला देश और अफगानिस्तान से होकर आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, पारसी और ईसाई धर्मों को मानने वाले लोग अब सन् 2014 से पूर्व आए सभी भारतीय नागरिक बन जाएंगे। घुसपैठिए और रोज़गार की तलाश में आए लोग ये लाभ नहीं उठा पाएंगे। क्या भारतीय मुसलामनों के कुछ रहनुमां रास्ता भटक गए हैं? वे बात-बेबाक मोदी सरकार के विरुद्ध आरोप लगाने में अपनी लीडरशिप का हित समझते हैं। यही कारण है कि दिल्ली के कुछ क्षेत्रों में मानवता के साथ-साथ उनकी उम्मीदें भी लहु-लुहान हो गईं। दिल्ली की कुछ सड़कें, पथराव, पैट्रोल बम, तेज़ाब के पाऊच और ़गैर-कानूनी असले से गोलीबारी के कारण रक्त रंजित हो गई। हिन्दू मरा या मुस्लिम मरा है। दानवी सोच के आगे सब बराबर। अलगाव की सोच, फिरकाप्रस्ती, असंतोष की आंधी। कुल मिलाकर सभी ने दिल्ली के पुर-अमन वातावरण को बिगाड़ दिया। अमरीका के राष्ट्रपति रोनाल्ड ट्रम्प के दौरे को फीका करने के लिए ये सब साजिशों के हिस्से बन गए। इतना होने पर भी डोनाल्ड ट्रम्प ने अमरीका पहुंचकर जो प्रैस-वार्ता की उसमें उन्होंने मोदी के देश के बारे में विचारों को बहुत महान बताया है। फिर भी हैरानी है कि मुस्लिम समाज के अतिरिक्त कुछ और लोग भी भारत के विकास की गाड़ी को पटरी से उतारने के लिए हीले-बहाने तलाशते रहते हैं। जिसका लाभ पाकिस्तान में भारत विरोधी लोग और विदेशी समाचार-पत्र ‘बिल्ली के भागों छीका टूटा’ समझ रहे हैं। ये उथल-पुथल और बेचैनी का दौर अवश्य समाप्त होगा और हम उम्मीद करते हैं कि एक बार फिर भारत पुरानी डगर पर चलने लगेगा।