रंगों से महकी धरा

सतरंगी आभा लिए, खड़ी होलिका द्वार।
पिचकारी के रंग से, महक उठा संसार।।
अध्रों पर टेसू खिले, नयनों में अनुराग।
रंगों से महकी धरा, कान्हा खेलैं फाग।।
कंचनमय आभा खिली, मंगलमय हो पर्व।
मिटें हृदय की दूरियां, सखी मनावैं हर्ष।।
आज होलिका दहन में, जले हृदय का द्वेष।
अंगूरी आसव छने, रहे न मन में क्लेश।।
आलिंगन भुज-पाश में, मैत्री के हों छन्द।
कान्हा की वंशी बजे, कल्मष हो ना द्वंद्व।।
रंगों में होवे विलय, घृषा-द्वेष-अलगाव।
प्यार और मनुहार की भांग छने हर गांव।।
लाल-हरी-पीली भई, राध पी के संग।
मनवा वृंदावन हुआ, खेलै फाग अनंग।।

(सुमन सागर)
—डॉ. राम बहादुर ‘व्यथित’