दिल्ली का हिंसक घटनाक्रम घावों पर मरहम लगाने की ज़रूरत

गत दिनों 24 फरवरी से 26 फरवरी तक देश की राजधानी दिल्ली में हुए हिंसक दंगे जिन्होंने एक तरह से देश को हिला कर रख दिया था, के संबंध में अंतत: संसद के दोनों सदनों में विचार चर्चा हुई। इस विचार चर्चा में कांग्रेस, नैशनल कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डी.एम.के., बसपा तथा समाजवादी पार्टी और विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने स्पष्ट रूप में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार और खास तौर पर इसके गृह मंत्री अमित शाह जिनके अधीन दिल्ली पुलिस कार्य करती है, पर पूरी तरह असफल रहने के गम्भीर आरोप लगाए। लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने मोदी सरकार पर असफलता के आरोप लगाते हुए कहा कि दिल्ली में तीन दिन तक आ़गज़नी होती रही, लोगों के घर जलाए जाते रहे, कारोबार जलाए जाते रहे। 50 से अधिक व्यक्ति हिंसा का शिकार हो गए, परन्तु सरकार समय पर कोई भी कार्रवाई करने में असफल रही। इसी तरह लोकसभा में अन्य विपक्षी पार्टियों ने सरकार पर असफल रहने के आरोप लगाए। राज्यसभा में भी इस मुद्दे पर तीखी बहस हुई। इसमें कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल, आनंद शर्मा, समाजवादी पार्टी के जावेद अली खां, बी.जे.डी. के नेता प्रसन्ना आचार्य तथा डी.एम.के. के नेता तिरुचिशिवा और अकाली दल के नेता नरेश गुजराल आदि ने बहुत ही प्रभावशाली ढंग से अपना पक्ष रखा। इन सभी नेताओं द्वारा पेश किए गए विचारों का निष्कर्ष यह था कि दिल्ली में 1984 की तरह तीन दिनों तक इस तरह के दंगे होने बेहद चिंता की बात है। इसके साथ देश की छवि को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बड़ी ठेस पहुंची है। कुछ सांसदों ने इस बात पर विशेष तौर पर ज़ोर दिया कि सुप्रीम कोर्ट के किसी न्यायाधीश के नेतृत्व में इस समूचे घटनाक्रम की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच होनी चाहिए और दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ाएं दी जानी चाहिएं। सांसदों द्वारा यह बात भी ज़ोर-शोर से उठाई गई कि यदि मोदी सरकार यह समझती है कि दंगे योजनाबद्ध ढंग से साजिश रच कर करवाए गए हैं, तो इसका आगामी तौर पर पता लगाने में देश की खुफिया एजेंसियां बुरी तरह नाकाम क्यों रहीं? विपक्षी पार्टियों के सांसदों को इस बात का भी विशेष तौर पर गिला था कि गृह मंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने इन दंगों के संबंध में तत्काल प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए समय पर पुलिस दंगे रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाने के आदेश क्यों नहीं दिए और उन्होंने तत्काल तौर पर लोगों को शांति बनाये रखने की अपील क्यों नहीं की? कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता आनंद शर्मा तथा कुछ अन्य सदस्यों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि यह समय पीड़ित लोगों के घावों पर मरहम लगाने का है और सरकार द्वारा दंगा पीड़ितों को हर तरह की सहायता देने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। लोकसभा तथा राज्यसभा में दो दिनों तक हुई उपरोक्त चर्चा का जवाब देते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने इन आरोपों को रद्द किया कि दिल्ली पुलिस तत्काल कार्रवाई करने में नाकाम रही है। उन्होंने कहा कि यह क्षेत्र लम्बा-चौड़ा था और गलियां बहुत संकरी थीं, इस कारण बहुत सारे क्षेत्रों में पुलिस तत्काल तौर पर नहीं पहुंच सकी। इसके साथ ही उन्होंने दिल्ली पुलिस का बचाव करते हुए कहा कि 36 घंटों में पुलिस ने स्थिति पर काबू पाया है और 700 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। 2627 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। अब तक 1200 दोषियों की पहचान भी की गई है। उन्होंने यह भी आश्वासन दिलाया कि दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी, चाहे वह किसी भी धर्म और जाति से संबंधित क्यों न हो? उन्होंने नागरिकता कानून संबंधी भी कई तरह के संदेह दूर करने की कोशिश की। हम समझते हैं कि संसद के दोनों सदनों में जो दिल्ली दंगों के संबंध में विचार-चर्चा अब हुई है यह 2 मार्च को तब ही हो जानी चाहिए थी जब संसद का कामकाज़ पुन: शुरू हुआ था। सरकार को होली के त्यौहार के बाद चर्चा करवाने का बहाना बना कर इसको लटकाना नहीं चाहिए था। इसी कारण संसद के दोनों सदनों का कामकाज़ भी रुका रहा और भाजपा तथा विपक्ष के सदस्यों के बीच झड़पें भी हुई। इसी कारण कांग्रेस के 7 लोकसभा सदस्यों को स्पीकर ने चालू सत्र तक निलम्बित भी कर दिया था। यह अच्छी बात हुई है कि स्पीकर ने अपना निर्णय बदल कर उनको पुन: बहाल कर दिया और अंतत: संसद के दोनों सदनों में इस गम्भीर मुद्दे पर यह चर्चा मुकम्मल हो सकी। परन्तु इतने से ही संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता। नि:संदेह जिस तरह बहुत सारे सांसदों ने कहा भी है कि दिल्ली में हुए इन दंगों ने एक बार फिर 1984 की कड़वी यादों को ताज़ा कर दिया है। जबकि सिख समुदाय से संबंधित लोगों के घरों, मकानों और कारोबारों को निशाना बनाया गया था और 3 हज़ार के लगभग सिख भाईचारे के लोगों को भी दिल्ली में भी बहुत बेरहमी से मार दिया गया था। किसी को भी यह उम्मीद नहीं थी कि 2020 में एक बार फिर उसी तरह का घटनाक्रम देश की राजधानी दिल्ली में पुन: हो सकता है। इस बात ने देश भर के लोगों को हैरान और परेशान करके रख दिया है।इसलिए अब यह बेहद आवश्यक हो गया है कि इन दंगों की सुप्रीम कोर्ट के किसी न्यायाधीश के नेतृत्व में निष्पक्ष और पारदर्शी ढंग से जांच हो। चाहे केन्द्र सरकार ने इनके संबंध में जांच करने के लिए दिल्ली पुलिस की विशेष जांच टीम बनाई है, परन्तु इन दंगों में जिस तरह की भूमिका दिल्ली पुलिस की रही है उसके कारण उसकी जांच पर किसी को कोई भरोसा नहीं होगा। इसलिए यह बेहद ज़रूरी है कि जांच सुप्रीम कोर्ट के किसी न्यायाधीश के नेतृत्व में ही करवाई जाए। इसके साथ ही जिन लोगों के परिवारों के सदस्य मारे गए हैं उनके लिए चाहे दिल्ली सरकार ने 10-10 लाख के मुआवज़े का ऐलान किया है इस संबंध में केन्द्र सरकार को स्वयं भी और पर्याप्त मुआवज़े का ऐलान करना चाहिए, क्योंकि उसकी असफलता के कारण ही यह बड़ा दुखांत हुआ है। जिन लोगों के घरों, दुकानों और कारखानों का नुकसान हुआ, उनको भी सर्वेक्षण करवा कर उपयुक्त मुआवज़ा मिलना चाहिए।इस संदर्भ में इस समय की बड़ी ज़रूरत केन्द्र सरकार, दिल्ली सरकार तथा अन्य सामाजिक संगठनों को मिल कर शिविरों में बैठे लोगों में पुन: सुरक्षा पैदा करने की है इस संबंध में अलग-अलग संस्थाओं की भूमिका सराहनीय रही है। उनकी अलग-अलग सांसदों ने भी चर्चा में हिस्सा लेते हुए प्रशंसा की है। मरहम लगाने वाले ऐसे प्रयास जारी रहने चाहिए।