विदेश जाने के मोह-जाल में फंसती जा रही है युवा पीढ़ी

आए दिन खबरों में सुनने को मिलता है कि गैर-कानूनी ढंग से विदेश जाते युवकों को पकड़ा गया, जाली दस्तावेज़ व पासपोर्ट बरामद, एजेंट फरार, लाखों की ठगी करने वाला एजेंट पुलिस रिमांड पर, विदेशी कम्पनी में नौकरी का झांसा देने वाला पकड़ा गया, छिप कर विदेश जाते युवक हुए हादसे का शिकार... ऐसी खबरों से अखबारें भरी रहती हैं। पर बाद में उस एजेंट, नौजवान व उसके घर वालों का क्या हुआ कोई नहीं जानता। विदेश जाने की चाह रखते युवक को जब उसका पिता अपनी ज़मीन गिरवी रख, मां अपने जेवर बेच कर व बहन अपनी शादी की तारीख बढ़ाकर रुखसत करते हैं तो उसके साथ कई ज़िम्मेदारियां, भावनाएं व ज़िंदगियां जुड़ी होती हैं। पर जब यही युवक किसी गलत एजेंट के चंगुल में फंस कर सारी धनराशि के साथ-साथ अपनी जान भी गंवा देता है, तो घर वालों पर कहर टूट पड़ता है। विदेशी चकाचौंध में फंसे युवकों से मैं यही कहना चाहती हूं कि विदेश में कोई डॉलरों का पेड़ नहीं लगा जहां जाते ही तुम डॉलर तोड़ोगे और कच्चे घर को शानदार हवेली में तबदील कर दोगे। वहां भी जी-तोड़ मेहनत करनी पड़ती है, तब जाकर दो पैसे कमाये जाते हैं। विदेश जाकर मज़दूरी व सफाई तक करते युवक अपने घरों में खेती करने को लो-स्टैंडर्ड समझते हैं और शर्म महसूस करते हैं। यहां चाहे खेतों में मज़दूरों से काम करवाना हो तो उससे भी गुरेज करते हैं पर बाहर खुद मज़दूरी करके खुद पर गर्व महसूस करते हैं। बाप बूढ़ा होकर ऐड़ियां रगड़ कर ज़िंदगी काटता है, पर इकलौता बेटा विदेशी मिट्टी के मोहजाल में फंसा उसे अग्नि भेंट कर चलता बनता है। अक्सर लोग विदेश भेजे बेटों का व्याख्यान यूं सीना तान कर करते हैं जैसे वह बार्डर पर युद्ध लड़ने गया हो। और जब मां की टूटती सांसों तक भी वह पहुंच नहीं पाता तो इसका दर्द उस मां के साथ ही दम तोड़ देता है। आज डॉलरों की चकाचौंध में अंधी हमारी नौजवान पीढ़ी धड़ाधड़ गैर-कानूनी रास्ते अपनाकर बाहर भाग रही है, पर अक्सर साठ-सत्तर युवकों का एक साथ नाव पलटने से मारे जाना, गैर-कानूनी ढंग से विदेश में पकड़े जाना या फिर नशे की लत में खून-खराबा कर देना हमारे पंजाब को लगातार मोहताजी की ओर ले जा रहा है। इसको नकेल डालने के लिए सबसे पहले झूठे दिलासे व सपने दिखाने वाले ट्रैवल एजेंटों को रास्ते पर लाना पड़ेगा। कानून को अपने आप में बदलाव करते उन एजेंटों पर नकेल कसनी होगी, जिनका आधार ही झूठा है। यह एजेंट शीशे से बने कमरों में ए.सी लगाकर, सूट-बूट पहनकर गांव के सीधे-सादे व भोले-भाले लोगों को अपनी बातों की चाश्नी में फंसा लेते हैं और वह भी इस चकाचौंध में चुधिंयाए सिर्फ वही करने लगते हैं, जो एजेंट कहता है।यह सही है कि ‘घर की रोटी दाल बराबर’ लगती है। पर लाखों नौजवान ऐसे हैं, जो इन समुद्रों से मोती तलाशने गए पर खुद इंतज़ार बन वहीं समा गए। नौजवानों को खासकर युवा पीढ़ी को इस तरफ विशेष ध्यान देकर इस चोर बाज़ारी को बंद करवाने की मुहिम छेड़नी होगी। तभी धोखाधड़ी से अपने महल खड़े करते इन एजेंटों को अपने किए पर पछतावा होगा। नहीं तो वह दिन दूर नहीं जब एक तरफ नशा और दूसरी तरफ एजेंट हमारी युवा पीढ़ी को खात्मे के कगार पर ला खड़ा कर देंगे।