व्यक्तित्व को भी संवारता है संगीत

संगीत न सिर्फ एक साधना है बल्कि रोगों के शमन की अद्भुत क्षमता भी रखता है। प्राचीन समय से ही इस सत्य को स्वीकार किया गया है। संगीत मस्तिष्क के तनावों को दूर कर उसकी तरंगों में सामंजस्य उत्पन्न करता है। इससे रक्तचाप नियंत्रित रहता है। हृदयरोगों पर भी यह प्रभावकारी सिद्ध हुआ है। धीमे सुर में बजता सुमधुर संगीत किसे अच्छा नहीं लगता। यह ऊब और थकान दूर कर व्यक्ति को ताजगी प्रदान करता है। आज की तनाव भरी जिन्दगी में जहां हर व्यक्ति ढेरों समस्याओं से घिरा रहने लगा है, परेशानियों से जूझते हुए जब उसके दिमाग की नसें फटने लगती हैं तो चित्त को एकाग्र करने के लिए संगीत से बढ़कर दूसरा साधन नहीं। फेफड़ों की बीमारी भी काफी हद तक संगीत से दूर की जा सकती है, नियमित गायन से फेफड़ों का व्यायाम होता है उनको शक्ति मिलती है।हमारे यहां ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में बच्चों को लोरी गाकर सुलाया जाता है और बच्चे ही क्यों, मधुर संगीत बड़ों की भी अनिद्रा दूर करता है। यह बात विज्ञानसम्मत है कि संगीत आध्यात्मिकता की सतहों को छूता हुआ व्यक्ति को स्वयं को पहचानने में अपने को अनुभूत करने में ही मदद नहीं करता बल्कि उसे संपूर्णता की ओर ले जाते हुए उसमें परिपक्वता लाता है। गाते हुए व्यक्ति की भावनाओं का उद्धेल्य होता है। उन्हें आउटलेट मिलता है जो मानसिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। चूंकि संगीत में लय ताल होती है, वह शरीर और मन दोनों को उसी तरह लयबद्ध कर लेता है। शरीर और मन दोनों का सामंजस्य ही जीवन है जिसे संगीत बढ़ाता है। कमाल की बात तो यह है कि पशु-पक्षी वनस्पति और अबोध बच्चे भी उसके प्रभाव से अछूते नहीं रहते।हमारे यहां हर शुभ अवसर पर मंगल गान होता है। न सिर्फ खुशी के मौके पर ही बल्कि दुख के समय भी संगीत का सहारा लिया जाता है। वह सुख:दु:ख झेलने की कुव्वत देता है और उसे प्रकट करने का एक सभ्य शालीन तरीका है।जिन व्यक्तियों को संगीत से लगाव नहीं होता, वे बेहद खुश्क, नीरस और ऊबाऊ किस्म के होते हैं। उनके व्यक्तित्व में कहीं न कहीं कोई भारी कमी होती है। इसीलिए न सिर्फ रोगों के उपचार और उन्हें दूर भगाने के लिए बल्कि अपने व्यक्तित्व में संपूर्णता लाने के लिए भी संगीत से प्यार करना चाहिए। 


               (स्वास्थ्य दर्पण)