" भू-जल का तेजी से कम होना खतरे की घंटी " पानी की बर्बादी न रूकी तो अगले अढ़ाई वर्ष में पंजाब बन जाएगा रेगिस्तान

पटियाला, 21 मार्च  ( जसपाल सिंह ढिल्लों ) : पंजाब का नाम पांच आबों से बना था, परन्तु आज इस के पास सिर्फ ढाई कु दरिया ही बचे हैं। पंजाब के ने देश की भूख मिटाने और अन्न भंडार भरने में चाहे दो तिहाई हिस्सा पाया, परन्तु इस ने अपने कुदरती स्रोत पानी चाहे नहरी हो या जमीन निचला, की जी भर कर दुरुपयोग किया है। जिस तरीके साथ पानी की जी भर कर दुरुपयोग हो रही है, उस बारे खोज में एक बात स्पष्ट हो चुकी है कि अगर हम पानी का दुरुपयोग न रोकी तो अगले ढाई दशक तक पंजाब को रेगिस्तान बनने से कोई भी नहीं रोक सकता। इस संबंधी कोई भी पक्ष गंभीर नहीं जिस करके पानी हर समय पर दुरुपयोग हो रहा है। पंजाब के पानी को सब से ज्यादा बरबाद धान की फसल ने किया है खोज बताती है कि इस फसल के लिए प्रति किलो चावल उगाने के लिए 5000 लीटर से अधिक पानी का प्रयोग होता है। दिलचस्प बात यह है कि 1980 के बाद तेजी के साथ पंजाब की धरती जिस का आकार 50362 वर्ग किलोमीटर है जो भारत का सिर्फ 1.5 प्रतिशत है, में गेहूं धान नीचे क्षेत्रफल बढ़ा क्योंकि यह फसलें समर्थन मूल्य और बिकती हैं। बहुत से जिले जो पहले कपास मक्का और गन्ने अधीन थे ने, आखिर धान की फसल को अपनाया। विश्व में कुल पानी का सिफ 2.5 प्रतिशत पानी ही पीने योग्य है बाकी पानी खारा और नमक वाला है। इस ढाई प्रतिशत का 70 प्रतिशत पानी पहाड़ों पर बर्फ के रूप में पड़ा है। पंजाब के पानी की अकेला किसान नहीं दूसरे अदारं जिनं उद्योग भी शामिल हैं ने जी भर कर दुरुपयोग की है, घरों में सैंकड़े गैलन’ पानी वाहनों को धोने पर फिजूल खर्च हो रहा है, शहरों अंदर बिना किसी रोक टोक से टुटियों का पानी बेकार दिन-रात चलता रहता है। विश्व पार्टनरशिप ने भी पानी के मामलो में चिंता अभिव्यक्ति है। अमरीका जैसे विकासशील देश में भी 60 प्रतिशत पानी उद्योग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। हमारे देश में भू-जल निचला पानी और नहरी पानी भी हम खुद ही स्वयं कर गंदला कर रहे हैं बहुत सी धार्मिक समागमों मौके रसायन आधारित मूर्तियों को फैंक फेंककर हम पानी को खराब करने में भी फखर महसूस कर रहे हैं। पानी के कुदरती स्रोतों को गंदला करने में हम अपने पैरों पर खुद ही कुलहाड़ी मार रहे हैं। अगर हम न संभले तो अगले पीड़ियों हमें कभी भी माफ  नहीं करेंगी। पंजाब इस समय पर अजीब स्थिति यहां सिर्फ 28 प्रतिशत जमीन ही नहरी पानी नाला सींची जा रही है, जब बाकी जमीन के नीचे से हर वर्ष लाखों क्यूबक मीटर पानी को 15 लाख के करीब ट्यूबवैल खींच रहे हैं। पंजाब की धरती से गुजरते दरिया, नहरों और नदियों सरकारों के समझौतों कारण नुक्सान पंजाब का ही करते हैं। पंजाब में आजादी के बाद ट्यूबवैलों की संख्या जो 50 कु हजार था, यह  1980 में 70 हजार, वर्ष 2001 में बढ़कर 10.70 लाख, 2005-60 में 11.80 लाख और अब 15 लाख के करीब है। इन ट्यूबवैलों की संख्या बढ़ाने और मुफ्त बिजली सुविधा ने भी पानी की बरबादी की है। राज्य अंदर ट्यूबवैलों की संख्या बढ़ने का कारण भी धान की फसल है। पंजाब के 138 ब्लाकों पर खोज की गई है, के हैरानीजनक तथ्य हैं। खोज मुताबिक 109 ब्लाक ऐसे हैं, जहां पानी बहुत ही तेजी के साथ बढ़ मात्रा में निकाला जा चुका है, इन में खतरे के बादल मंडरा रहे हैं, दो ब्लाक ऐसे हैं जहां से स्थिति को संकटमई और आधी दर्जन को अर्ध संकटमई और 22 को सुरक्षित का दर्जा दिया गया है।
धान की फसल के लिए कददू विधि को रोक कर सीधी बिजवाई ही बचा सकती है पंजाब को: डा. सोहल
इस संबंधी जब कृषि विभाग के सेवा मुक्त संयुक्त निर्देशक डा. बलविन्दर सिंह सोहल के साथ बात की तो उन्होंने बताया कि यदि सरकारें पंजाब को बचाना चाहतीं हैं जिससे किसानों की तरफ  से धान की फसल मौके की जाती कददू की विधि जो पानी को जमीन नीचे जाने से रोकती है और सख्ती के साथ पाबंदी लगानी होगी। उन्होंने बताया कि पंजाब को बचाने के लिए मार्गों पर धान की सीधी बिजवाई विधि लागू करवानी होगी इस विधि के साथ धान की फसल पकाने तक 70 प्रतिशत पानी बच सकता है। 
पानी बचाना हमारा सभी का फर्ज : काहन सिंह पन्नू
इस संबंधी जब मिशन तंदुरुस्त पंजाब के प्रमुख और सीनी. अधिकारी स. काहन सिंह पन्नू के साथ बात की तो उन कहा कि हमें हमारे कुदरती स्त्रोतों को पलीत होने से बचाना चाहिए जो लोग धरती निचले पानी को गंदला कर रहे हैं उन को बाज आना चाहिए इस मामले में सरकार ने सख्त कदम भी उठाए हैं और केंद्रीय ग्रीन ट्रिब्यूनल भी काफी सख्ती इस्तेमाल कर रहा है।