नवरात्र में दुर्गा की अराधना का महत्व

नवरात्र साधना में जिन अनुशासनों, व्रतों या तपश्चर्याओं का पालन किया जाता है, उनमें उपवास, ब्रह्मचर्य, भूमिशयन, स्वयं शरीर सेवा, नियमित दिनचर्या प्रमुख हैं। शारीरिक, मानसिक तल पर अनुशासन सूत्रों को अपनाने वाला स्वयं ही सुपात्र, सत्पात्र बन जाता है। साधक में उपासना द्वारा प्राप्त शक्ति के बल पर ब्रह्मतेज चमकने, झलकने लगता है। यदि यह उपासना व साधना जारी रहे तो साधक के संकल्प सिद्ध होने लगते हैं। साधक अपने सोचे कार्यों को पूर्ण करने में सफल होता है तथा पूर्व जन्म के अशुभ कर्मों के दुर्योग भी समाप्त हो जाते हैं। मां आदि शक्ति के साधक का कुटिल काल (मृत्यु) भी कुछ नहीं बिगाड़ पाता है तथा दुर्घटना के योग समाप्त हो जाते हैं। तप साधन का महत्वपूर्ण आयाम है आराधना। यह तप से उत्पन्न ज्ञान है। तप-साधना की चरम परिणति है भाव की अनुभूति। आराधना तप का ज्योतिर्मय प्रकाश, तप की सुगन्ध है। नवरात्र में आराधना के व्यवहारिक सूत्र हैं-सभी प्राणियों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार, वातावरण परिशोधन के लिए सामूहिक साधना, उच्च स्तरीय दिव्य गं्रंथों का नौ दिन तक अध्ययन, शक्ति संसार सुपात्र की सहायता, सृष्टि के सभी प्राणी आदि शक्ति मां की सन्तान हैं, इस अनुभूति में जाना।नवरात्र साधना का उद्देश्य साधक के जीवन के सामान्य होने के साथ-साथ विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति भी होती है। हमारा जीवन सभी प्रकार से सम्पन्न हो। हमें रोग, शोक, चिन्ता, आर्थिक अभाव, शत्रु बाधा, सन्तान कष्ट, मुकद्दमेबाजी, तंत्र जैसी कठिन स्थितियों से दो-चार न होना पड़े, और यदि पूर्व जन्म के पापकर्मों के फलस्वरूप इन स्थितियों का निर्माण हो तो उनसे शीघ्र छुटकारा मिले और हम तनावमुक्त जीवन जीते हुए साधनाओं द्वारा धारणा, ध्यान, समाधि जैसी जीवन की उच्चतम अवस्था को प्राप्त कर सकें। आदि शक्ति मां नवरात्र के इन दिनों में अपने पूर्ण कृपा स्वरूप में होती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त हो जाये, यही नवरात्र साधना का उद्देश्य होता है। हमारा सामाजिक जीवन स्थिरता, आन्तरिक आनन्द, ध्यानावस्था से भरा पूरा हो जाता है। साधक के जीवन में शक्ति तत्व आ जाता है जिससे समस्त दुख व विषाद तिरोहित हो जाते है। आदि शक्ति मां का साधक संपदा व ऐश्वर्य से परिपूर्ण होता है, क्योंकि दरिद्रता जीवन का अभिशाप है। ऋषियों ने शक्ति की इन साधनाओं का निर्माण इसीलिए किया कि अपने छोटे से जीवन में हम ऐश्वर्यमान बन सकें। श्रेष्ठ ऐश्वर्ययुक्त जीवन का निर्माण ही तो स्वर्णिम जीवन है। मां दुर्गा की साधना से ही घर की निर्धनता को पूर्णता से समाप्त किया जा सकता है तथा जीवन तथा आत्मा स्वर्णिम एवं ऐश्वर्य से भरा पूरा हो सकते हैं।नवरात्र पूजन का विधान : प्रात: काल स्नान करने के बाद पूर्व दिशा की ओर मुख करके स्वच्छ आसन पर बैठें। सामने चौकी पर लाल वस्त्र बिछा लें। इसके बाद सामने भगवती जगदम्बा का आशीर्वाद युक्त चित्र स्थापित करें। बायीं ओर घी का दीपक एवं जल से भरा पंचपात्र रख लें।  आहुतियां दें। अन्त में भगवती जगदम्बा के समक्ष अपनी पूर्ण भौतिक एवं साधनापरक उन्नति की कामना व्यक्त करें। फिर मां जगदम्बा का आशीर्वाद प्राप्त कर प्रसाद वितरण करें।