कोरोना के आइसोलेशन में किताबों को बनाइये एकांत की दोस्त

जरा कल्पना कीजिए, जिस तरह पूरी दुनिया में ‘आइसोलेशन’ बढ़ रहा है, यदि स्थितियां नहीं सुधरीं तो मामला कहां तक जा सकता है। दो-चार दिन, पांच दिन आप घर से नहीं निकलेंगे तो कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। लेकिन यदि यह बात महीनों में बदल गई या उससे भी ज्यादा तो स्थितियां विस्फोटक हो सकती हैं। आप किसी भी तरह की ‘सोशल गैदरिंग’ नहीं कर पाएंगे। किसी व्यक्ति से हाथ मिलाए हुए आपको बहुत-सा समय हो चुका होगा। गले मिले तो न जाने कितना समय हो जाएगा। घर में रखे आपके शूज आपको मुंह चिढ़ाते दिखाई पड़ेंगे, वे आपसे सवाल करेंगे कि आप उनका प्रयोग करें। आपका पूरा रूटीन खराब हो जाएगा। सोने, उठने और खाने-पीने की टाइमिंग बिगड़ जाएगी। बाहर की दुनिया से आप लगातार ‘डिटेच’ होते जाएंगे। ‘ह्यूमन फील’ को धीरे-धीरे आप भूलने लगेंगे। आप भूलने लगेंगे कि सामने वाले से हाथ मिलाने पर आपके भीतर किस तरह की भावनाएं पैदा होती थीं। इस एकांतवास को तोड़ने के लिए और दूसरे लोगों से जुड़ाव महसूस करने के लिए, उन देशों में जहां कोरोना का प्रकोप बहुत तेजी से बढ़ रहा है और जहां बड़ी संख्या में लोग एकांतवास में रहने के लिए बाध्य हैं, नयी-नयी प्रवृत्तियां देखने को मिली हैं। ये प्रवृत्तियां एक तरफ  बताती हैं कि एकाकीपन मनुष्य को किस तरह भयभीत करता है। दूसरी तरफ  यही प्रवृत्तियां उनसे उबरने का रास्ता भी दिखा रही हैं। इटली, जर्मनी, स्पेन की गिनती उन देशों में है, जहां कोरोना वायरस ने अधिक लोगों को इनफेक्ट किया। इटली में अपने और पड़ोसियों के इसी एकाकीपन को दूर करने के लिए एक व्यक्ति ने बाल्कनी में खड़े होकर ट्रंपेट बजाया। अपनी-अपनी छतों और बाल्कनी से लोगों ने उसे सुना। इस व्यक्ति ने जॉन लेनन के मशहूर गीत-इमेजिन देअर इज नो हैवन, इट्स ईजी इफ  यू ट्राई, नो हैल बिलो अस, अबव अस ओनली स्काई...को गाया। यह लोगों को एंटरटेन करने और उनसे जुड़े रहने का बढ़िया तरीका साबित हुआ। इटली का यह अकेला वृतांत नहीं है। इटली में बाल्कनी में खड़े होकर गाना गाने का प्रचलन इस एकांतवास में खासा लोकप्रिय हो रहा है। स्पेन में एक अन्य दिलचस्प घटना घटी। जिम इंस्ट्रक्टर ने अपनी छत पर लोगों को एक्सरसाइज करना सिखाया। सीखने वाले लोग अपनी-अपनी छतों पर थे। अमरीकी गायक जॉन लीजेंड ने इंस्टाग्राम पर लाइव कंसर्ट किया। दरअसल ये सारे प्रयास ये बताते हैं कि इंसान अकेला होने से कितना डरता है। उसके लिए हर हाल में लोगों से मेल मुलाकात जरूरी है। बेशक इन मुलाकातों में वह झगड़ा ही क्यों न करें। भारतीय समाज के मूल में ही सोशल गैदरिंग है। सड़क पर भी कहीं कुछ होता है तो यहां मजमा लग जाता है। हम बेशक एक दूसरे से दिन-रात लड़ते रहें, लेकिन मिलना-जुलना हमारी संस्कृति का अहम हिस्सा है। राजधानी दिल्ली में ही हर शाम होने वाली बैठकों से ही इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि हम कितने सोशल हैं। लिहाजा भारतीयों के लिए यह एकांतवास काटना काफी कठिन होगा। उन्हें हर हाल में ह्यूमन फील की आवश्यकता पड़ती है। यह भी सच है कि यहां के समाज में घर पर बैठना किसी को पसंद नहीं होता, चाहे उसके पास काम हो या न हो। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि घर पर बैठे-बैठे भी आप ऊबने लगते हैं। दिन-रात अपने ही परिचितों के चेहरों को देख-देखकर आपका मन घर की चारदीवारी से बाहर निकलने को करने लगता है। आप महसूस करते हैं कि पता नहीं बाहर की दुनिया में ऐसा क्या हो रहा है जिसे आप देख नहीं पा रहे हैं। तो ऐसे में हमें क्या करना चाहिए? कैसे ह्यूमन फील को बनाए और बचाए रखा जा सकता है? कैसे एकांतवास को रोचक और दिलचस्प बनाना चाहिए? पिछले दिनों कई मित्रों के फोन आए। सबका एक ही सवाल था कि घर पर बैठे-बैठे क्या किया जाए, बहुत बोरियत हो रही है, समय काटे नहीं कट रहा। संयोग से फोन करने वाले अधिकांश मित्र, पत्रकार या लेखक ही थे। मैंने सबको यही सलाह दी कि पढ़ने का इससे अच्छा अवसर और कोई नहीं हो सकता। आप खोज-खोजकर उन किताबों को पढ़िए, जिन्हें पढ़ना आप सालों से टालते रहे हैं। बेहतर यह होगा कि आप हिन्दी के क्लासिक उपन्यासों के साथ ही विदेशी क्लासिक भी पढ़िए। अगर आप लिखते हैं तो इस फुर्सत के समय में कहानियां और कविताएं भी लिख सकते हैं। मैंने मित्रों से यह भी कहा कि जरूरी नहीं है, आप मेरी बताई किताबों को ही पढ़ें। आप अपनी रुचि से भी किताबों का चयन कर सकते हैं। मित्रों को मेरी यह सलाह पसंद आयी। ऐसा नहीं है कि मैंने सिर्फ  मित्रों को ही यह सलाह दी, बल्कि खुद भी इसी पर अमल किया। मैंने इस दौरान अनेक किताबें पढ़ डालीं और मुझे लगा कि मैं मनुष्यों के बीच में ही हूं। पहली बार मुझे अहसास हुआ कि किताबें आपके भीतर एक ह्यूमन फील पैदा करती हैं। किताबों से बढ़िया और कोई विकल्प नहीं हो सकता। लेकिन किताबों वाली राय सब पर लागू नहीं हो सकती। निश्चित रूप से बहुत से लोग ऐसे भी होंगे, जिनकी पढ़ने में रुचि नहीं है या किन्हीं भी कारणों से वे पढ़ना नहीं चाहते। ये सभी लोग यू-ट्यूब पर अपनी पसंद की फिल्में देख सकते हैं और एक दूसरे से इन फिल्मों को शेयर कर सकते हैं, फिल्मों पर ही फोन से बातचीत कर सकते हैं। इससे लोगों का एक दूसरे से इंटरएक्शन बना रहेगा। आपको एकांतवास का रत्ती भर आभास नहीं होगा। उम्रदराज लोग भी इस मौके पर गाने सुन सकते हैं, भजन सुन सकते हैं या अपने परिवार के साथ अपनी यादों को शेयर कर सकते हैं। संवाद के टूटे सूत्रों को जोड़ने में इस समय का सदुपयोग किया जा सकता है। हम सब मिलकर यह कामना कर सकते हैं कि यह एकांतवास जल्दी टूटे और हम सहज रूप से अपना-अपना जीवन जी पाएं।  

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर