पंचायती आय न होने के कारण अधिकतर सरपंचों ने लोगों की मदद से असमर्थता जताई

लोहटबद्दी, 30 मार्च (कुलविंदर सिंह डांगों): कोरोना वायरस के चलते हर सरकार में अफरा-तफरी मची हुई है। घातक वायरस को पंजाब में फैलने से रोकने के लिए लॉकडाऊन व कर्फ्यू जैसे हालातों में प्रभावित हुए लोगाें की उचित सुविधाओं को मुख्य रखते हुए कैप्टन सरकार नए-नए आदेश जारी कर रही है, जिसके चलते बड़े-छोटे गांवों के सरपंचों ने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के आदेशों के अनुसार ग्राम पंचायतों के दायरे में पड़ते दिहाड़ीदार मज़दूरों, ग्रामीण गरीबों, विधवाओं, अंगहीनों को खाने-पीने की वस्तुएं, ज़रूरी दवाइयां मुहैया करवाने के लिए रोज़ाना 5 हज़ार जबकि आपदा के दौरान 50 हज़ार रुपए खर्च करने के दिए आदेशों को मानने की बजाय असमर्थता जताते हुए 14वें वित्त आयोग में से पैसे खर्च करने की मांग की है। इस संदर्भ में पंचायती राज्य कानून 1994 की धारा 30 (1), (3) के अनुसार ग्राम पंचायतों के कामों में ‘प्राकृतिक आपदाओं के दौरान लोगों को राहत पहुंचाने के उपबंध को’ ध्यान में रखते हुए डायरैक्टर ग्रामीण विकास व पंचायत विभाग ने जो पत्र जारी किया है उसका पालन करना हर पंचायत के वश के बाहर है, जिसका मुख्य कारण है सरकार द्वारा साफ कहा जा रहा है कि यह खर्च पंचायत अपनी आय से करेगी जबकि ऐसी राशि अधिकतर पंचायतों के खाते में उपलब्ध नहीं है। इसके उलट समूचे पंजाब की पंचायतों के  खातों में लाखाें रुपए ज़रूर होंगे परंतु वह सरकारी पक्ष से प्राप्त हुईं ग्रांटों की राशि बताई जा रही है। उल्लेखनीय है कि गांव में शामलाट कृषि योग्य ज़मीनों, छप्पड़ों में बनाए मछली फार्म, हड्डा रोड़ी, पंचायती ज़मीनों को निर्मित दुकानों, पंचायती ज़मीनों में लगे टिब्बों से उठाई गई मिट्टी या सरकारी नियमों के अनुसार बेची गई पंचायती सम्पत्ति आदि साधनों के ज़रिये प्राप्त होने वाली राशि को पंचायती आय कहा जाता है, जिसे गांव का सरपंच साथी पंचों के बहुमत से प्रस्ताव पारित कर किसी भी साझे विकास कार्य या संकट के समय उपयोग करने का हक रखता है जबकि सरकारी पक्ष से प्राप्त होने वाली ग्रांटें विशेष उद्देश्य के लिए जारी की जाती हैं, जिन्हें खर्च करने के लिए ज़रूरत के अनुसार उद्देश्य तबदील करवाना पड़ता है परंतु किसी भी संकट समय खर्च करवाने का अधिकार सरकार के पास होता है। दूसरी ओर सभी सरपंचों को लोगों की बेहतरी के लिए रोज़ाना 5 हज़ार व कुल 50 हज़ार रुपए खर्च करने के लिए सरकार द्वारा दिए गए बयान व निचले स्तर पर ज़िला मैजिस्ट्रेट-कम-डिप्टी कमिश्नर द्वारा किए गए प्रचार के कारण अब पंचायतों के दायरे में आते लोग रोज़ाना ही उचित वस्तुओं की पूर्ति के लिए सरपंच पर ऐसे दबाव बना रहे हैं कि जैसे सरकार ने सरपंच के खाते में 50 हज़ार रुपए डाले दिए हों और सरपंच खराब करने के लिए आना-कानी करता हो।