ज़रूरतमंद गरीबों की तरफ ध्यान देने की ज़रूरत

एक बार फिर कोरोना वायरस ने दुनिया भर को हिला कर रख दिया है। कुछ यूरोपियन देशों में इसका इतना बड़ा प्रभाव देखा जा सकता है कि उनमें इस भयानक बीमारी का मुकाबला करने के लिए दमखम रहा नहीं प्रतीत होता और वह निराशा के आलम में पहुंच गए हैं। अमरीका जैसा प्रभावशाली देश भी पूरी तरह हड़बड़ा गया प्रतीत होता है। चाहे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने इस बीमारी के प्रबन्धों में तेजी लाने के लिए अपने देश के साथ-साथ अन्य बहुत सारे देशों को आर्थिक सहायता देने का ऐलान किया है, परन्तु अभी भी यह बड़ा देश इस बीमारी का पता लगाने में बेबस दिखाई दे रहा है। मरीज़ों की संख्या इतनी बढ़ रही है कि उसके मुकाबले में समूचे चिकित्सा प्रबन्ध भी चरमरा गए प्रतीत होते हैं। दूसरी तरफ भारत भी इसके विरुद्ध लड़ाई के प्रयासरत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा तीन सप्ताहों के लिए की गई मुकम्मल तालाबंदी के ऐलान के बाद इसको लागू करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। इसमें बड़ी मुश्किल दिहाड़ीदार मजदूरों, खास तौर पर प्रवासियों की है। उनके हालात ने ऐसा पक्ष प्रकट किया है जिस पर काबू पा सकना मुश्किल हो गया है। आज लाखों ही नहीं अपितु करोड़ों ही प्रवासी मजदूर देश के अलग-अलग राज्यों में जाकर अपने कार्यों में लगे हुए हैं, जिस तरह इस महामारी के कारण समूचे देश को एकदम रोक दिया गया, उससे करोड़ों मजदूरों की हालत एकदम ही खराब हो गई, इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है। अपने कार्य से वह बिल्कुल खाली हो गए हैं। दूसरी तरफ अपने घरों को जाने से भी उनको रोका जा रहा है। इतनी बड़ी संख्या में अचानक खाली हुए इन बेहद ज़रूरतमंदों की रोटी और रिहायश का प्रबन्ध कर सकना ऐसी बड़ी समस्या है जिसको बड़े प्रयासों से भी हल किया जाना मुश्किल है। यदि इनको अपने स्थानों पर रोका भी जाता है तो भी प्रत्येक के गुज़ारे का प्रबन्ध करना आसान कार्य नहीं है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने कार्यक्रम ‘मन की बात’ में पैदा हुई इस गम्भीर समस्या का उल्लेख करते हुए लोगों को हो रही परेशानी के बारे में चिन्ता प्रकट की है और इस स्थिति के लिए उनसे माफी मांगते हुए यह भी कहा है कि इस महामारी को बढ़ने से रोकने के लिए तालाबंदी करनी बेहद ज़रूरी थी। आज जिन समृद्ध देशों में इस बीमारी ने अपने भयानक पांव फैला दिए हैं, उन्होंने शुरू में इसको अधिक गम्भीरता से न लेते हुए एक तरह से इसके प्रति लापरवाही ही अपनाई थी, जिसका खमियाज़ा आज वह भुगत रहे हैं। भारत जैसा विकासशील देश आगामी समय में इस पर काबू पाने में कितना सक्षम हो सकेगा, इसके बारे में तो इस समय कोई अनुमान लगाना मुश्किल है, परन्तु अपने सीमित साधनों से देश ने इस बीमारी से लड़ने का प्रण अवश्य किया है। इसके साथ-साथ देश भर में प्रत्येक स्तर पर हर पहलू को देखते हुए बड़े स्तर पर योजनाबंदी करने का प्रण भी किया गया है। नि:सन्देह इस संकट का ज्यादा शिकार आम और ज़रूरतमंद व्यक्ति हुआ दिखाई दे रहा है, परन्तु ऐसा प्रतीत होता है कि हर हाल में इस समय इसको झेलना ही पड़ेगा। हम केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा किए जा रहे प्रबन्धों पर संतुष्टि अवश्य प्रकट करते हैं, परन्तु इसके साथ ही यह स्पष्ट है कि पैदा हुए और होने वाले सम्भावित हालात को देखते हुए इन प्रयासों को और भी तेज करने की आवश्यकता होगी। इनमें आज की पहली ज़रूरत सरकार और समाज को हाशिये पर आये ज़रूरतमंद लोगों के प्रति हर पक्ष से पूरा ध्यान देने की होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द