तैयारी से ही हो सकेगा  महामारी का सामना


दुनिया भर में फैल रही कोरोना वायरस की महामारी ने जहां सभी देशों को बड़ी चिन्ता में डाल दिया है, वहीं हर देश अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार इसका मुकाबला करने में ही जुट गया है। भारत ऐसा देश है, जिसमें अब तक दुनिया भर के सभी देशों से बड़ी तालाबंदी का ऐलान किया गया है। लोगों को घरों में ही रहने की हिदायतें दी गई हैं। परन्तु इसने बहुत सारी गम्भीर समस्याएं भी पैदा कर दी हैं। सबसे बड़ी समस्या ़गरीब लोगों के खाने और रहने के प्रबन्ध बन गई है, जिससे निपट सकना बेहद कठिन कार्य दिखाई दे रहा है, परन्तु इसके साथ ही हमें इस बात का एहसास भी है कि इस समय सवा अरब से भी अधिक जनसंख्या वाले इस देश के साधन सीमित हैं। इसके पास अभी बुनियादी स्वास्थ्य प्रबन्धों की ही बड़ी कमी महसूस होती है। 
यदि यह संताप बढ़ता है तो इसको झेलने के लिए जिस तरह के साजो-सामान की ज़रूरत होगी, उसकी यहां बेहद कमी महसूस होती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस लम्बी तालाबंदी से पहले यह साजो-सामान खरीदने के लिए 15 हज़ार करोड़  रुपये की राशि रखने का ऐलान किया था। इस समय ऐसे चिकित्सा सामान की बड़ी ज़रूरत है। इस बीमारी की जांच के लिए किटों की बड़ी ज़रूरत है और इसके साथ ही गम्भीर मरीज़ों के लिए बड़ी संख्या में वैंटीलेटरों की ज़रूरत होगी। देश में इन दोनों चीज़ों की बड़ी कमी है। इसीलिए ही भारतीय स्वास्थ्य परिषद् (आई.सी.एम.आर.) द्वारा लोगों के खून की जांच के लिए 10 लाख किटें तथा 7 लाख किटें बुखार की जांच के लिए दुनिया भर के देशों से तत्काल मांगी गई हैं। इस समय देश में महज़ सरकारी और निजी 157 परीक्षण केन्द्र हैं। 21 दिन की तालाबंदी का समय पूरा होने के बाद बड़े पैमाने पर लोगों के परीक्षण की ज़रूरत होगी। इस परीक्षण को ही पेश करके बीमारों की पहचान की जा सकती है और उनको अलग रखा जा सकता है। यदि बीमारी के लक्षणों वाले व्यक्ति समाज में विचरते रहे, तो इस बीमारी के फैलने का संदेह बन सकता है। अब तक देश में 30 हज़ार के लगभग ही लोगों की जांच हो सकी है। जिसको आगामी समय में और भी विशाल करने की ज़रूरत पड़ने की सम्भावना है। इसके लिए तत्काल ही जहां निजी कम्पनियों को ऐसा साजो-सामान तैयार करने के ऑर्डर दिए गए हैं, वहीं स्विट्ज़रलैंड की बड़ी कम्पनी रोशे को भी तत्काल ऐसा सामान तैयार करने के लिए कहा गया है। दक्षिण कोरिया और जर्मनी से भी टैस्ट किटें बड़ी संख्या में मंगवाई गई हैं। 
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी ऐसी 10 लाख किटें तत्काल भेजने की बात कही है। दक्षिण कोरिया से तो किटों की एक खेप पहुंच भी चुकी है। चीन के बाद दक्षिण कोरिया ही एक ऐसा देश है, जिसने अपनी तेज योजनाबंदी से फैलती इस बीमारी पर काबू पा लिया है। ऐसा उसने बड़ी संख्या में मरीज़ों की खोज करके उनका तत्काल उपचार करके किया है। जर्मनी जो इस बीमारी की चपेट में आया हुआ है, उसने भी अन्य यूरोपियन देशों की सहायता से 3 लाख से 5 लाख व्यक्तियों का परीक्षण शुरू कर दिया है। जर्मनी की चांसलर एंजेला मार्कर ने कहा है कि शीघ्र ही हर रोज़ 2 लाख मरीज़ों का निरीक्षण किया जाएगा। अमरीका जोकि स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में दुनिया भर में प्रसिद्ध है, को भी इस मामले में बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। वह इस मामले पर काफी चिंतित दिखाई देता है, क्योंकि यह अनुमान लगाया जा रहा है कि आगामी समय में वहां मरीज़ों की संख्या बेहद बढ़ जाएगी और इससे वहां लाखों नागरिकों की मौत हो सकती है। इस समय अमरीका में जहां मरीज़ों की संख्या सवा लाख के लगभग हो चुकी है, वहीं मौतों की संख्या भी 2200 के लगभग हो गई है। मरीज़ों की बढ़ती संख्या के मद्देनज़र वहां वैंटीलेटरों, बिस्तरों तथा अन्य साजो-सामान की बड़ी कमी महसूस होने लगी है, जिसने उसकी चिंताओं को और भी बढ़ा दिया है। 
यदि इस महामारी की बात करें तो यह कोई पहली नहीं, पहले भी सदियों के स़फर में इस धरती पर कई महामारियां फैलीं। अलग-अलग समय में प्लेग के फैलने से भी करोड़ों व्यक्तियों की मौत हुई थी। इसके अलावा हैज़ा, टीबी और फ्लू ने भी कई बार दुनिया भर को चपेट में लिया था। इन बीमारियों से करोड़ों लोग मारे गए थे। गत कई दशकों से एड्स नामक बीमारी की लानत ने भी दुनिया भर को जकड़ा हुआ है। कुछ दशक पूर्व स्वाइन फ्लू ने लाखों लोगों की जान ली थी। आज जबकि तकनीक और चिकित्सा विज्ञान ने बेहद उपलब्धियां  हासिल कर ली हैं, तो उस समय इस गम्भीर चुनौती का सामना दुनिया बड़े स्तर पर पर्याप्त साजो-सामान तैयार करके और स्वास्थ्य सेवाओं में मजबूती लाकर ही कर सकती है। भारत को इन बुनियादी अहम पहलुओं को सामने रखते हुए इस महामारी का मुकाबला करने के लिए तैयारी करने पड़ेगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द