अभूतपूर्व लॉकडाउन में समूचा देश

एक साथ 130 करोड़ से ज्यादा की आबादी के लॉकडाउन का इतिहास दुनिया में नहीं है। इस नाते भारत का तीन सप्ताह का लॉकडाउन दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा है। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 24 मार्च को इसकी घोषणा करते हुए कहा कि यह लॉकडाउन वास्तव में कर्फ्यू ही है तो लोगों को इसकी गंभीरता का अहसास हो गया। इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा को पूरी तरह अमल में लाने में पूरे देश में एकता दिख रही है। चाहे भाजपा शासित राज्य हों या गैर भाजपा शासित सबने संकल्प और दृढ़ता दिखाई है। कारण साफ  है। सबको पता है कि कोरोना मूल के कोविड 19 वायरस संक्रमण से बचाव का कोई रास्ता है तो यही कि पूरे देश में जो जहां है वही सिमटे रहने दिया जाए। 
यह मानना गलत है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिना तैयारी इसकी घोषणा कर दी। जब उन्होंने 19 मार्च को देश को संबोधित किया तो लोगों से कहा कि हमने आपसे जो भी मांगा आपने दिया, अब हमें आपका समय चाहिए, कुछ सप्ताह का समय। उसी में यह संकेत मिल गया था कि अभी वो भले लोगों से आवश्यक काम न होने पर घर से बाहर न निकलने की अपील कर रहे हैं किंतु हो सकता है आने वाले दिनों में इसे अनिवार्य कर सरकारी स्तर पर लागू करने की घोषणा हो जाए। ऐसा लगता है कि देश के मानस की परीक्षा के लिए उन्होंने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू तथा कोरोना खतरे को झेलते हुए देश को बचाने के लिए काम करने वालों को धन्यवाद ज्ञापन की अपील की थी। उसका अच्छा असर हुआ और हल्के अपवादों को छोड़कर पूरा देश अपने घरों में बंद रहा। साथ ही ठीक समय पर यानी पांच बजे पूरे देश में लोगों ने तालियां, थालियां, घंटी, शंख आदि बजाकर धन्यवाद ज्ञापन किया। यह देश को मानसिक रुप से एकजुट करने तथा सामूहिक ध्वनि से वातावरण को तरंगित करने की बुद्धिमतापूर्ण कोशिश थी। 
इसका उपहास भी खूब उड़ाया गया, लेकिन यह काफी सोच-समझकर दिया गया कार्यक्रम था जिससे यह संदेश निकला कि कोरोना के संकट से पूरे देश को मिलकर लड़ना होगा तथा इसको परास्त करने का सबसे बड़ा उपाय यही है कि हम अपने को घरों में सिमटा दें। प्रधानमंत्री ने संकल्प और संयम की बात की थी। ध्यान रखिए, उसके बाद कई राज्यों ने अपने यहां कुछ क्षेत्रों या पूरे राज्य में लॉकडाउन कर दिया था। महाराष्ट्र, पंजाब, पुड्डेचेरी जैसे राज्यों ने तो कर्फ्यू तक लगा दिया। कारण यही था कि कुछ लोग यह समझने को तैयार ही नहीं थे कि वो बाहर निकलकर स्वयं को तो संकट में डाल ही रहे हैं, अपने साथ परिवार, दोस्त एवं पूरे समाज के लिए संकट का कारण बन रहे हैं। एक आदमी यदि संक्रमित हो गया तो वह बहुगुणित होते हुए हजारों लोगों को कोरोना की चपेट में ला सकता है। डॉक्टर, विशेषज्ञ, नेता, अधिकारी सब लोगों से घरों में रहने की अपील कर रहे थे लेकिन एक वर्ग इसका उल्लंघन कर रहा था। इसमें रास्ता यही बचा था कि पूरे देश को एक साथ लॉकडाउन कर दिया जाए। प्रधानमंत्री ने लोगों को समझाते हुए कहा कि याद रखिए जान है तो जहान है। यह जन कहावत ज्यादा लोगों की समझ में आई होगी।
अगर आप दुनिया का परिदृश्य देखिए तो बिल्कुल भयावह है। दुनिया के 195 देश कोरोना वायरस की चपेट में आ चुके हैं।  इन पंक्तियों के लिखे जाने तक इससे मरने वालों की संख्या 37 हजार को पार कर चुकी है। सात लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हैं। सबसे ज्यादा संक्रमितों एवं मृतकों की संख्या उन देशों से आ रहीं हैं जिन्हें विकसित दुनिया कहा जाता है और जिनकी स्वास्थ्य व्यवस्था उत्कृष्टतम मानी जाती है। अमरीका जैसे देश में 85 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित  हो जाएं, 1200 लोग मर जाएं और सभी संसाधन झोंक देने के बावजूद यह सिलसिला रुके नहीं तो इससे विकट स्थिति कुछ हो ही नहीं सकती। इटली जैसे बेहतर स्वास्थ्य सेवा वाला देश तो कोरोना के सामने आत्मसमर्पण कर चुका है। 80 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हुए एवं मृतकों की संख्या भी 10 हजार पार कर गई। स्पेन में 50 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित तो 4000 से ज्यादा मर चुके हैं। फ्रांस में करीब 1400 लोगों को कोरोना लील चुका है तथा संक्रमित होने वालों की संख्या 26 हजार को पार कर चुका है। ब्रिटेन में भी करीब 500 लोगों को जान गंवानी पड़ी है एवं 10 हजार से ज्यादा लोग संक्रमित हैं। जर्मनी में लग रहा था कि मामला ज्यादा नहीं होगा लेकिन अब तक वहां संक्रमित होने वालों की संख्या कभी भी 40 हजार हो सकती है एवं करीब 250 लोग मारे जा चुके हैं। स्विट्जरलैंड तक में 155 से ज्यादा लोग जान गंवा चुके हैं एवं 11 हजार संक्रमित हैं। जापान बिल्कुल सुरिक्षत होते हुए भी अपने 45 लोगों को खो चुका है। 
विकसित देशों की भयावह स्थिति इस बात का प्रमाण है कि अगर आप समय पर सचेत नहीं हुए और कोविड 19 वायरस को अपनी सीमा में घुसने देने तथा विस्तार करने के रोकने के कदम नहीं उठाए तो फिर यह आपके यहां विनाशलीला मचा देगा। सच यह है कि चीन के वुहान प्रांत में मचे कोहराम के बीच ही यूरोप में कोरोना के मामले सामने आने लगे। फ्रांस में पहला मामला जनवरी में आया। इसी तरह के मामले दूसरे देशों में भी आए। किंतु उन्होंने सुरक्षा के उपाय नहीं किए। न लोगों के मेलजोल को रोकने के कदम उठाए, न हवाई अड्डों पर स्क्रीनिंग की और न ही विदेशी उड़ानों को रोकने का कदम उठाया। स्कूल, कॉलेज, मॉल बाजार सब खुले रहे, सभाएं, इवेंट आदि जारी रहे। ये तब जगे जब स्थिति बिगड़ने लगी। 
  हमारा दुर्भाग्य यह रहा कि कुछ गैर जिम्मेवार लोगों ने गंभीरता से नहीं लिया तथा विदेश से आने के बाद संकट बढ़ा दिया। चीन हमारा पड़ोसी है, लेकिन हमारी दशा वैसी नहीं हुई। हमने इटली, ईरान, मलेशिया तक से अपने लोगों को निकालकर लाया। यदि देश सतर्क नहीं होता, व्यवस्था नहीं होती तो अभी का दृश्य अत्यंत ही डरावना होता। तो अब हमें पहला तीन सप्ताह सफलतापूर्वक निकालना है। हालांकि तीन सप्ताह में खतरा पूरी तरह टल जाएगा यह अभी नहीं माना जा सकता है। इसलिए हमें आगे भी ऐसे ही घरों में सिमटे रहने को तैयार रहना होगा।