फुर्सत

इस महामारी ने याद दिला दी
हर एक की परिवार कहानी
समय नहीं मिलता है हमको
परिजनों को सुनाते यही कहानी
सुबह उठते ही काम की जल्दी
 बच्चों से नहीं मिल पाते थे
 तैयार होकर सुबह सवेरे ही
हम काम पर दौड़ चले जाते थे
सारा दिन काम में बीतता
याद न रहती घर वालों की
थक हार कर जब घर लौटते
सुध न रहती बतियाने की
परिजन कुछ बोलते अगर
व्यवहार चिड़चिड़ा हो जाता था
घर को तो हम भूल ही चुके थे
बस काम से हमारा नाता था
कभी नहीं पूरी कर पाए हम
ख्वाहिश साथ खाना खाने की
युगल हमारी चुपचाप सहती
वेदनाएं साथ न रह पाने की
बच्चों को भी समय न कभी
हम अपनी ओर से दे पाए
बच्चे से वे कब बड़े हो गए
एहसास कभी न कर पाए
देशाटन करने की हर बात
मुख के मुख में ही रह जाती
कभी चलेंगे अपनों के घर
मन की मन मेें ही रह जाती
लगता नहीं था समय बदलेगा
अपना काम पराया हो जाएगा
महामारी ऐसी आएगी जग में
घर रहना मजबूरी हो जाएगा
महामारी के नाम पर ही सही
फुर्सत सारे जहान से मिल गई।
डॉ. श्रीगोपाल नारसन 
-मो.94120-72417