लॉकडाऊन के कारण देश के मजदूरों की त्रासदी

चीन की 6 गलतियों ने समूचे विश्व को कोरोना वायरस से अपनी चपेट में ले लिया है। हर रोज कई देशों में मौतों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। अमरीका, इटली, जर्मनी, फ्रांस, इराक, ईरान, इंग्लैंड, कनाडा, भारत तथा बहुत सारे अन्य देश भी इस भयानक बीमारी की चपेट में आने से स्थिति बहुत ही खौफनाक हो चुकी है। चीन ने कोरोना वायरस से संबंधित अपने डाक्टरों की चुनौतियों को नज़रअंदाज़ किया। कोरोना वायरस के फैलते ही दिसम्बर 2019 के शुरू में ही चीन को तत्काल कदम उठाने चाहिए थे। इसके बारे में अन्य देशों के साथ गम्भीरता से सोच विचार कर लिया होता तो काफी सीमा तक इस समस्या का हल निकालने के लिए प्रयासरत होने से बहुत बड़े जानी नुक्सान से आसानी से बचा जा सकता था। काफी कीमती जानें बचाई जा सकती थीं और इस बीमारी से संक्रमित होने वाले लोगों को बचाया जा सकता था। समूची दुनिया में लॉकडाऊन करने की कोई ज़रूरत नहीं पड़नी थी। अपने ही घरों में भूखे मरने वाले मजबूर बहुत सारे गरीब और बुजुर्ग लोगों को बचाया जा सकता था। लॉकडाऊन के कारण समूची दुनिया की अर्थव्यवस्था जो तबाही के कगार पर पहुंच चुकी है, को संभालने की कोशिश सफल हो सकती थी। परन्तु अफसोस चीन की कम्यूनिस्ट सरकार ने अपनी मनमर्जी की। कोरोना वायरस से संबंधित घोर संकट को छिपा कर रखा, जिससे विश्व के हर छोटे-बड़े देश सहित महामारी फैलने का खतरा हमारे सिर पर मंडरा रहा है। लॉकडाऊन से काम ठप्प हो गया। बाहरी राज्यों से आए मज़दूरों को रोज़ी-रोटी की चिन्ता हो गई। कारखाने, फैक्ट्रियां, भट्ठे तथा अन्य औद्योगिक घरानों के बंद होने से अन्य राज्यों से आए लोगों को अपने मकानों के किराए देने भी मुश्किल हो गए। वह मरते, क्या न करते? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की इस घोषणा का एक-दो दिन के बाद ही बाहरी राज्यों के लोग अपने ही देश से अपने घरों को जाने के लिए प्राथमिकता देने लगे। दूसरी तरफ अन्य राज्यों के मुख्यमंत्री अपने ही राज्यों के लोगों को वापिस अपने घरों में नहीं आने दे रहे। हालांकि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने लोगों को दिल्ली में रहने और उनके घरों के किराए सरकार द्वारा देने की पेशकश की है। परन्तु एक दो दिनों में सिर्फ दिल्ली ने ही प्रवासी मज़दूरों का सैलाब टी.वी. पर देखा गया। यह प्रवासी मज़दूर शीघ्र अति शीघ्र अपने प्रदेश वापिस चले जाना चाहते थे। समूचे देश में 21 दिनों के लॉकडाऊन के कारण उन मज़दूरों की शंकाएं बढ़ गईं थीं जिनको अपने और अपने परिवार की रोज़ी रोटी के लिए दैनिक कार्य करने के लिए घर से बाहर निकलना पड़ता है। इसमें कोई दो राय नहीं कि मज़दूरों का भविष्य धुंधला होने लगा। उनके लिए शहर छोड़ने का कारण सिर्फ कोरोना वायरस का डर ही नहीं था परन्तु इस भयानक बीमारी से ज्यादा उनमें बेरोजगार होने का डर था। उनके मन से संदेह सरकार के वायदों और विश्वास से भी दूर नहीं हुआ। कार्य की तलाश में एक-दूसरे राज्यों में जाना इन लोगों की मजबूरी है। यहां एक बात गौर करने वाली है कि हमारे देश में 90 लाख लोग 2011 से 2017 के बीच अपने राज्यों से दूसरे राज्यों में काम करने के लिए गए थे। यह आंकड़ा सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2017 का है। इस बात का सरकार को पूरा-पूरा एहसास है। हम सभी जानते हैं कि इन अधिकतर मज़दूरों का अपने घरों को वापिस जाने से भी कोरोना वायरस का खतरा और अधिक बढ़ना है। कोरोना वायरस का संक्रमण यदि गांवों तक पहुंच गया तो बहुत ज्यादा मात्रा में तबाही होगी। इस बात से सहमत होना ही पड़ेगा कि गांवों में चिकित्सा सुविधाएं नहीं और न ही अच्छा इलाज है। वैंटीलेटर के बारे में सोचना भी बेकार है। यह बात उम्मीद पैदा करने वाली है कि केन्द्र सरकार ने अब आवश्यक सख्ती दिखाते हुए राज्यों की सीमाएं सील करने के निर्देश दिए हैं। यदि फिर भी मज़दूर अपने घर जाने की इच्छा रखते हैं तो उनको 14 दिन के लिए अलग-अलग रखा जाएगा। इससे इन लोगों के साथ-साथ देश के प्रत्येक नागरिक का भला है। अंतत: यह गम्भीर चिन्ता का विषय है। इस समस्या का हल निकालने के लिए सरकार पूरी तरह प्रयासरत है परन्तु लोगों के सहयोग से ही यह सम्भव है। हमारे देश में लॉकडाऊन शब्द लोगों ने पहले नहीं सुना होगा। इस लिए हम कह सकते हैं कि लॉकडाऊन के कारण कार्य प्रभावित होने से शहर छोड़ने वाले लोग मज़बूर हैं। हमें उनकी सहायता के लिए आगे आना चाहिए। इस समय उनके साथ सहानुभूति प्रकट करना हमारा नैतिक दायित्व बनता है। कोरोना वायरस से बचने के लिए अन्य कोई रास्ता भी नहीं है। आओ हम मिलकर कोरोना वायरस पर जीत हासिल करें।

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