हाथ धोए क्या...

इधर कोरोना, उधर बैंक का डूबना, लोग हैं कि दोनों से डरे हुए हैं। दोनों में एक बात कामन है कि सावधानी बरतनी जरूरी है। बार-बार हाथ धोते लोगों को यह समझ में आ गया है कि क्यों पहली क्लास की टीचर यही समझाया करती थीं कि बच्चो, जब भी कुछ खाओ, हाथ जरूर धोओ। यह कोरोना का ही कमाल है कि लोग सारे काम छोड़कर अब सिर्फ हाथ ही धो रहे हैं। हाथ भी कैसे धोए जाएं, इस पर भी टीवी चैनलों में दिखाया जा रहा है कि पहले हाथ गीले करें, फिर साबुन लें, फिर अंगूठा, उंगलियाँ और कलाइयाँ साफ की जाएं। आलम यह है कि किसी को कत्ल करने से पहले ही मोबाइल चेतावनी दे देता है, अबे हाथ धोए क्या...। रही-सही कसर देश के व्यापारी पूरी कर रहे हैं। गेहूँ, चावल, चीनी की तर्ज पर अब सेनिटाइजर्स की जमाखोरी हो रही है। एक का माल दस में बिक रहा है यानी चीन से सस्ता माल न मिला कोई बात नहीं, उसके घरेलू वायरस के नाम से ही कुछ कमा लिया जाए....। वैसे जिस हिसाब से देश में हाथ धोए जा रहे हैं, उसे देखते हुए इस बात की प्रबल संभावना है कि आगे चलकर इंडियन आइडल की तर्ज पर हाथ धोने की प्रतियोगिता शुरू करवा दी जाए। मुहल्ले-मुहल्लों से गुजरते हुए प्रतियोगी फाइनल राउंड पर जा पहुँचे और जनता से कहा जाए, बताओ अब तक कौन हाथ अच्छे धो रहा है। लोगों की राय भी ली जा सकती है- वेल....मुझे लगता है दानिश अच्छे हाथ धो रहे हैं। यू नो, वो जब सलीके से अपने हाथ रगड़ता है तो उसमें एक कल्चर झलकता है। लगता है कि ही इज सो केयरिंग....बुर्का ओढ़े किसी सकीना का यह जवाब हो सकता है। नेहा की राय रोहित के बारे में कुछ यूं होती- यू नो, रोहित इज अ कूल गाई। जिस हिसाब से वो अपनी हथेलियां रगड़ता है तो लगता है कि बंदे को प्राब्लंस साल्व करनी आती हैं। मुझे लगता है उसे ही इंडियन हाथ धोऊ का खिताब मिलना चाहिए। किसी बाला को किसी के हाथों को रफ-टफ तरीके से धोने का अंदाज सुहाता। वैसे भी जब ढाई किलो का हाथ चुनाव जितवाने में जुमला बन सकता है तो यहाँ तो बाकायदा हाथों की सफाई की जा रही है। किसी बुजुर्ग महिला को हाथ धोते प्रतिभागियों में अच्छे पति होने के लक्षण दिखाई देते। दो-चार अनुभवी महिलाएं कहतीं- देखिए, दो-चार तो वाकई बहुत अच्छे-से हाथ धो रहे हैं और मुझे लगता है कि ये बच्चे आगे बर्तन माँजने में अपनी पत्नियों की मदद भी करेंगे...। वैसे ऐसा भी होता कि कुछ विपक्षी इसे स्वच्छता अभियान वालों का प्रोपेगंडा बताकर पूरे शो को ही भगवा रंग दे देते। खैर, दूसरी चिंता बैंकों के डूबने की है। जिस गति से ये डूब रहे हैं उससे आम आदमी को यही लग रहा है कि इससे अच्छे तो हमारे बुजुर्ग थे जो पैसा जमीन में गाड़ दिया करते थे। जब चाहो, तब निकाल लो। कुछ सुझावन लालों ने सरकार को बेमांगी सलाह दी है कि जब चेकों पर उनकी वैलिडिटी लिखी होती है तो ऐसे ही बैंकों की वैलिडिटी भी लिखनी चाहिए कि कब बना और कब डूबेगा। हमारी छठी क्लास की पुस्तक में लिखा था कि कोई भी घटना या तो बुरा सबक दे जाती है या अच्छी सीख। कोरोना और बैंक दोनों ही सबक दे गए कि हाथ-मुंह धोकर, मुंह ढांपकर और पैसों को दाबकर अगर चलोगे तो हमेशा सुरक्षित रहोगे। सत्ता के हर युग में जान और माल इसी तरीके से बचे रह सकते हैं।

(अदिति)