किये-कराये पर पानी फेर देगा तबलीगी जमात का कृत्य

तबलीगी जमात के प्रति सहानुभूति दिखाने वाले सबसे पहले कुछ खबरों पर नज़र डाल लें। राजधानी दिल्ली में कई जगहों पर तबलीगी जमात के कोरोना के संदिग्ध मरीजों द्वारा अस्पताल में स्वास्स्थ्य कर्मी के साथ बदतमीजी का मामला सामने आने के बाद अस्पतालों और क्वारंटाइन केन्द्राें पर पुलिस बल तैनात करना पड़ा है। दिल्ली सरकार और अस्पतालों के अधिकारी शिकायतें कर रहे हैं कि ये लोग क्वारंटाइन केन्द्रों अस्पतालों में मैडिकल स्टाफ के साथ दुर्व्यवहार कर रहे हैं, गालियां दे रहे हैं, उनके ऊपर थूक फैंकते हैं। निजामुद्दीन मरकज़ में तबलीगी जमात के कार्यक्रम में शामिल हुए लोगों में से 167 को तुगलकाबाद में रेलवे के पृथक केंद्रों में लाया गया था। उत्तर रेलवे के प्रवक्ता दीपक कुमार ने कहा कि पृथक केंद्रों में उन्होंने स्टाफ  के साथ दुर्व्यवहार किया और खुद को दिए जा रहे भोजन को लेकर आपत्ति जताई। यहां तक कि उन्होंने उनकी जांच कर रहे डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों पर थूका भी। तबलीगी जमात में शामिल एक सदस्य ने बुधवार राजीव गांधी सुपर स्पैशियलिटी अस्पताल की छठी मंजिल पर स्थित आइसोलेशन वार्ड के कमरे में कोरोना संदिग्ध ने दस मिनट तक कूदने का भी नाटक किया। गाजियाबाद के एमएमजी अस्पताल प्रशासन की शिकायत पर तो तबलीगी जमातियों के खिलाफ  अश्लील हरकतें करने, स्वास्थ्य कर्मियों को धमकियां देने, हंगामा करने आदि के आरोप में प्राथमिकी दर्ज करानी पड़ी है। 
ये कुछ उदाहरण पर्याप्त हैं यह साबित करने के लिए स्वयं को धर्म प्रचार समूह बताने वाले तबलीगी जमात के लोगों का चरित्र और आचरण कैसा है। बहरहाल, आज का सच यही है कि निजामुद्दीन मरकज़ में आयोजित तबलीगी जमात सम्मेलन में भाग लेने वाले भारत में कोरोना कोविड-19 संक्रमण का सबसे बड़ा समूह बन गए हैं। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 2300 पॉजिटिव मामलों में से 645 से ज्यादा निजामुद्दीन मरकज़ से जुड़े हुए हैं। देश भर में तबलीगी जमात के जो 9000 लोगों की पहचान की गई है, उनमें से 1300 लोग विदेशी हैं। इन्हें क्वारंटाइन में रखा गया है।  ये कैसे रंग बदलते हैं, इसका एक  उदाहरण देखिए। तबलीगी जमात के प्रमुख मौलाना साद ने 2 अप्रैल को अपने समर्थकों के लिए एक मिनट 15 सैकेंड का ऑडियो जारी किया जिसमें वो अपने बारे में दावा कर रहा हैं कि मैं दिल्ली में ही सेल्फ  क्वारंटाइन में हूं। वो जमात के सदस्यों से अपने घरों में रहने, सरकार के निर्देशों का पालन करने और कहीं पर एक साथ एकत्रित न होने की अपील कर रहा है। क्या मासूमियत है! इसी मौलाना साद का ऑडियो-वीडियो यू ट्यूब पर था जिसे हटा दिया गया। कोरोना संकट आरंभ होने से लेकर लॉकडाउन तक वह लगातार अपनी तकरीरें देते रहे। उनमें वह कोरोना को खड़ा किया गया झूठा हौव्वा और जान-बूझकर मुसलमानों के खिलाफ  साजिश करार देता है। वह कहते है कि इसे मुसलमानों को मुसलमानों से अलग करने के लिए लाया गया है ताकि वो एक दूसरे से मिलें-जुलें नहीं। मस्जिद में रहो, यदि तुम्हारी मौत हो जाती है तो इससे अच्छी मौत हो ही नहीं सकती है। ऐेसी उसकी कई तकरीरें हैं। इन्हें हजारों लोगों ने सुना। कोरोना को लेकर उनकी क्या मानसिकता होगी, इसका अंदाजा आप लगा सकते हैं। जिस तरह से मरकज के लोगों की तलाश में या विदेश से आए लोगों को पता चलने पर उनको बचाने गई डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों की टीम पर जगह-जगह हमले हुए, वे इस बात के प्रमाण हैं कि इनके दिमाग में मजहबी कट्टरता या इस्लाम के नाम पर कितना ज़हर भर दिया गया है। दिल्ली के निजामुद्दीन स्थित मरकज से लोगों को निकालने में पुलिस प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़ी। 36 घंटे तक चलाए गए ऑपरेशन के बाद एक अप्रैल सुबह 4 बजे मरकज खाली कराया गया था। मरकज से 2,361 लोग निकाले गए। गृह मंत्रालय ने 960 विदेशी नागरिकों को ब्लैक लिस्ट में डालते हुए जमात से संबंधित गतिविधियों में लिप्त पाए जाने पर उनका पर्यटन वीजा रद्द करन का फैसला किया है। सरकार ने विदेशियों के वीजा को देखा तो पता चला कि इनमें से अधिकतर पर्यटन वीजा पर भारत आए हैं। सरकार का कहना है कि ये किसी धार्मिक कार्यक्रम में शामिल नहीं हो सकते। पर्यटन वीजा पर आकर मजहब का प्रचार करने, मजहबी जलसों में तकरीरें करने की तो शायद ही किसी देश में अनुमति हो।  तबलीगी जमात के इस आपराधिक कृत्य के बावजूद प्रमुख मुस्लिम संगठनों और नेताओं द्वारा इनकी मुखर आलोचना न करना इसका ऐसा पहलू है जो हैरान करता है। उल्टे जो नेता और संगठन तबलीगी जमात से असहमति रखते थे, वे  भी समर्थन में आ गए हैं। ये क्यों नहीं समझ पा रहे हैं कि जमात के लोगों ने अपने प्रति, मुस्लिम समुदाय के प्रति तथा देश के प्रति संगीन अपराध किया है। यह मुस्लिम समाज के ही खिलाफ  है। जमात के 20 लोग मर चुके हैं। इतनी सख्ंया में संक्रमितों तथा मृतकों का अपराधी कौन माना जाएगा? जब मार्च के आरंभ से ही एडवाइजरी जारी की जा रही थी कि बड़ी संख्या में न जुटें,  मेलजोल से अलग रहें, बहुत आवश्यक न हो तो यात्रा न करें, तो इसका पालन जमात को क्यों नहीं करना चाहिए था। दूसरे, 12 मार्च को दिल्ली सरकार ने 200 से ज्यादा लोगों के एकत्रित होने को प्रतिबंधित कर दिया था। इसके बावजूद उनका सम्मेलन आयोजित हुआ, क्योंकि जमात के अमीर मौलाना साद एवं उनके समर्थकों के लिए ये एडवाइज़रियों तथा दिल्ली सरकार का आदेश इस्लाम के प्रतिकूल थे। यह कट्टर मानसिकता ही समस्या है। 
अगर यह सब अनजाने में किया होता तो इन्हें क्षमा भी किया जा सकता था, लेकिन इन्होंने सब कुछ जानते हुए घोषित करके दिशा-निर्देशों, आदेशों और एडवाइजरी का उल्लंघन किया। दूसरे धर्मों के सारे केन्द्र आम लोगों के लिए बंद किए जा चुके थे। अगर यह संगठन मजहब का प्रचार करता है तो फिर ऐसा कृत्य कैसे कर सकता है जिससे इनके लोगों की जान तो जाए ही, दूसरे भी चपेट में आकर जीवन गंवाएं। यह ऐसा प्रश्न है जिसका जवाब देश को तो तलाशना ही है, स्वयं मुस्लिम समुदाय को इसकी ज्यादा जरुरत है। निजामुद्दीन मरकज जलसे से निकलने के बाद लोग जिन क्षेत्रों से और जिन साधनों से गुजरे और उस बीच उनके साथ जितने लोग संपर्क में आए, उन सबका पता करना मुश्किल है। समस्या यह भी है कि इनमें से अनेक यह स्वीकारते ही नहीं कि वो निजामुद्दीन मरकज के कार्यक्रम में गए थे, जबकि उनका नाम सूची में है। इस कारण पुलिस को इनके साथ सख्ती बरतनी पड़ रही है। एक मजहबी संगठन के लोग इस तरह झूठ बोलें तो उससे ही पता चल जाता है कि इसमें कैसी मानसिकता पैदा की जाती है। सवाल यह भी है कि  लगातार अपील के बावजूद आखिर ये स्वयं सामने क्यों नहीं आए ? पुलिस को क्यों जगह-जगह इनको ढूंढकर लाना पड़ रहा है। क्या ये चाहते हैं इनके कारण कोरोना का प्रकोप बढ़े? यह कितना बड़ा अपराध है इस पर जरा विचार करिए। ये जगह-जगह और डॉक्टरों पर थूकते क्यों हैं जबकि इन्हें मालूम है कि थूकने से संक्रमण फैलता है? क्या ये जान-बूझकर संक्रमण फैलाना चाहते हैं? यह ऐसा यक्ष प्रश्न है जिसका उत्तर इनके व्यवहार को देखते हुए न में देना जरा कठिन लगता है। 
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