अफवाहों की हवा में तेज़ी से उड़ता है कोरोना वायरस

‘च प्पा-चप्पा अफवाह रुके’ गाने भर से काम नहीं चलने वाला। इसके लिये गंभीर प्रयास करना होगा वरना यह कोरोना से कम घातक साबित नहीं होगा।’   कोरोना के तार जो अभी तक चीन और अमरीका से जुड़े थे, अब पाकिस्तान से जुड़ रहे हैं। कुछ नेता और संगठनों के प्रमुख बता रहे हैं कि यह एक आतंकी सज़िश है जो भारत में पाकिस्तान द्वारा फैलाई गई है और तबलीगी जमात इसके लिये मोहरा बना है। पाकिस्तान भारत के विरुद्ध छठा युद्ध लड़ने के लिये चीन द्वारा विकसित कोरोना वायरस को अपने जिहादियों के जरिये भारत में भेजा है। ये जमाती बनाकर यहां आये हैं। पाकिस्तान ने अपनी पहचान छिपाने के लिये इन्हें बरास्ता इंडोनेशिया और बांग्लादेश भेजा है। साधु-संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का कहना है कि संक्रमित जमातियों की जांच करके यह जाना जाये कि वे आतंकवादी तो नहीं? प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और सीएम योगी से पूछा गया है कि क्या कोरोना किसी बड़ी ‘जैविक साजिश’ का परिणाम तो नहीं?  
लेकिन यह अवधारणा हास्यास्पद और बेपर की लगती है क्योंकि इतनी त्वरित गति से इतना लम्बा-चौड़ा आत्मघाती षड्यंत्र केवल काल्पनिक तौरपर ही संभव हो सकता है। व्यवहारिकता में यह असंभव की हद तक मुश्किल है। साज़िशों को इंगित करती अनेक ऐसी अवधारणाएं प्रचलित और प्रसारित हैं, चीन से अमेरिका तक, गौमूत्र से गोबर और लौंग से लहसुन तक। तार्किकता की कसौटी पर तकरीबन सबके साथ कुछ ऐसा ही है, लेकिन जहां तक कोरोना के विरुद्ध संघर्ष को नुकसान पहुंचाने का सवाल है, सभी समान रूप से घातक हैं। इस डिजिटल युग में हमारे पास सूचनाएं पाने के जितने विकल्प मौजूद हैं, उतना मानव इतिहास के किसी भी कालखंड में नहीं थे। सूचना तकनीक तो खूब विकसित हुई है लेकिन इसके बावजूद हम सूचनाओं और अफवाहों को अलग करने का विवेक विकसित नहीं कर सके हैं। साजिशी अवधारणाएं अब भी हमें आकर्षित करती हैं। कानाफूसी और चुगली हमें अभी भी मजेदार और चटखारेदार लगती है। उसके स्वाद से हमें कभी अरुचि नहीं होती।  हम यह सूचना चटनी अचार की तरह इस्तेमाल नहीं कर रहे बल्कि इसका ही भोजन कर रहे हैं।
 मीडिया इन अफवाहों को अलग-अलग रूप में छप्पन भोग बनाकर पेश कर रहा है और हम भी उसे स्वीकार करते हैं। जैसा खाओ अन्न, वैसा रहे मन। लाज़िमी है, ऐसी संदूषित सूचना सामग्री ग्रहण करेंगे तो मन तो संदूषित होना ही है, इस कुअन्न से समाज का पेट भी खराब होता है। आज अगर कुछ लोग कोरोना की जांच के लिये गये चिकित्सकों, परीक्षणकर्ताओं के दल को दौड़ा लेते हैं, अथवा उनके साथ दुर्व्यवहार करते हैं, कोरोना के मरीज खुद सामने नहीं आते, लॉकडाउन और जनता कर्फ्यू तोड़ते हैं, मनमानी दवा लेते हैं और किसी धर्म विशेष के लोगों पर शक करते हैं, पुलिस और सरकारी बचाव दल को अपना दुश्मन मानते हैं तो इसकी एक वजह इस तरह की साजिशी अफवाहें भी हैं। साजिशी अफवाहें भ्रमित करती हैं, भड़काती हैं और इनकी सफलता इसलिये असंदिग्ध रहती है कि लोगों का भरोसा सरकार और व्यवस्था से उठा रहता है। कोरोना से संबंधित दर्जनों साजिशी अफवाहें, उसकी जांच, दवा, परहेज, राजनीतिक, सामाजिक, राष्ट्रीय, स्थानीय और अंतर्राष्ट्रीय सभी स्तर पर हैं। मीडिया की कृपा से इस साजिश में देवी देवता से लेकर जड़ी-बूटी तक सबको शामिल कर लिया गया है। किसी ने भी डब्लूएचओ, एमआईटी जैसे संस्थानों की अपील को तरजीह नहीं दी। पाकिस्तान से पहले साजिशी कहानियों में चीन और अमरीका मुख्य पात्र थे। हमारे यहां खल देशों में इन्हीं की चर्चा रहती है।
दरअसल चीन के साथ जिसकी जैसी भावना और रणनीति थी, उसने कोरोना के उद्भव और संक्रमण की वैसी ही सूरत देखी। बताया गया कि चीन सरकार जनसंख्या नियंत्रण के लिये भी ऐसा कर सकती है। कोरोना से बूढ़े और गरीब ही ज्यादा मरेंगे और ये ही अनुत्पादक हैं। इनको कम करने का सबसे निरापद उपाय यही है। सो चीन सरकार ने जान-बूझकर इस कोरोना अस्त्र का इस्तेमाल किया। यह भी कि चीन सरकार लाइलाज कोरोना मरीजों को गोली मार रही है। चीन ने अमरीका को इसका अपराधी बताया और कहा कि उसके यहां इस वायरस से पहले भी मौतें हो चुकी हैं, जिसे इन्फ्लूएंजा बताकर दबा दिया गया। 
इधर चीन और रूस के पक्ष में यह अफवाह भी रही है, कि चीन में जब मिलिट्री गेम हुये, तब अमरीकी सैनिक यहां आये थे और उन्होंने साजिश के तौर पर इसे फैलाया ताकि विश्व की बड़ी आर्थिक हस्ती बनने और अमरीका को पछाड़ने को तैयार चीन को तबाह किया जा सके। रूसी मीडिया का मानना था कि यह सब अमरीका की देन है। उसके टीवी ने बताया कि ट्रम्प दोषी हैं। वह सौंदर्य प्रतियोगिताओं में विजेताओं को क्राउन देते हैं। कोरोना उसी का समानार्थी है। कोरोना सीआईए का तैयार बायो वेपन है, कम्युनिस्ट चीन को कमजोर करने की अमरीकी साजिश है। अमरीका ने खरबों की वैक्सीन बेचने के लिये खेल रचा है। सब दवा कंपनियों का खेल है। सऊदी अरब ने कोरोना कहानियों के जरिये अमरीका के खिलाफ  अपनी खूब भड़ास निकाली। यहां के एक बड़े अखबार ने रहस्योद्घाटन किया कि यह अमरीका का चीन के विरुद्ध मनोवैज्ञानिक और आर्थिक युद्ध है। सीरिया ने भी इसे साबित करने का प्रयास किया।
कोरोना का आविष्कार दवा कंपनियों ने अकूत मुनाफा कूटने को करवाया है, परंतु यह भी सही नहीं लगता। बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियां पहले से ही बहुत पैसे वाली हैं। मुनाफा कूटने के लिये उनके पास बहुत से दूसरे और आसान धर्मकर्म मौजूद हैं।  नफरत और संकट की कमाई के रिस्क वाला ऐसा कारोबार वे क्यों करेंगी। अगर ऐसा ही होता तो कोरोना संकट के दौरान दवा कंपनियों के स्टॉक शेयर बाजार में धड़ाम क्यों हो गये? यह तो वैसे भी महामारी है। 
 इससे वैमनस्यता, घृणा, अफरा-तफरी, विभ्रम फैलता है। हेट स्पीच को बढ़ावा मिलता है। अफवाहों पर यकीन करने वाले सही सुझावों, ब्यानों पर यकीन और अमल नहीं करते। जड़ी-बूटी, गलत दवायें, गौ मूत्र गटकने लगते हैं। ऐसे में रोग और बढ़ता है।
                           -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर