कोरोना को हराने के लिए स्वास्थ्य के धरातल पर भी बहुत कुछ करना ज़रूरी

पूरा देश 21 दिन के लिए लॉकडाउन है। कोरोना वायरस संक्रमण दर हर तीन दिन में दो गुणी हो रही है। स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि एक सप्ताह के भीतर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को दो बार संबोधित किया है और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव ने तो धमकी दी है (जो कि हालात को मद्देनज़र रखते हुए एकदम सही है) कि अगर लोग लॉकडाउन की अनदेखी करेंगे तो वह शूट-एट-साईट (देखते ही गोली मारो) का आदेश भी दे सकते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कहा है कि इस अप्रत्याशित संकट पर भारत की प्रतिक्रिया ग्लोबल कोविड-19 युद्ध में हार या जीत को सुनिश्चित करेगी, लेकिन सवाल यह है कि क्या कोरोना वायरस को नियंत्रित करने के लिए केवल लॉकडाउन पर्याप्त है? 
लॉकडाउन आवश्यक है, इस बात से इन्कार नहीं है लेकिन तथ्य यह है कि लॉकडाउन अपने में पर्याप्त नहीं है। डब्लूएचओ ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि लॉकडाउन अकेला कोरोना वायरस को पराजित करने में सक्षम नहीं है। जब आखिरकार पाबंदियां हटेंगी तो यह पुन: हमला करता रहेगा। बड़ी आर्थिक कीमत चुका कर केंद्र सरकार ने फिलहाल 21 दिन का बहुमूल्य समय (जिसमें इससे कई गुणा अधिक इज़ाफे की प्रबल संभावना है) खरीदा है, जिसका सदुपयोग हेल्थकेयर की क्षमता में ज़बरदस्त वृद्धि करने के लिए किया जाना चाहिए।  इसके साथ ही अगले तीन माह तक सभी के बिजली व अन्य बिल माफ करते हुए या संकट समाप्ति के बाद लेने की व्यवस्था करते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रोज़ मज़दूरी करके चूल्हा जलाने वालों के घर पर ही खाने-पीने की चीज़ें (मुफ्त में या कीमतन, जैसी ज़रूरत हो) उपलब्ध करा दी जायें। जो लोग हेल्थकेयर व आवश्यक वस्तुओं की सप्लाई में अपनी जान खतरे में डालकर लगे हुए हैं, उनके लिए सुरक्षा गियर की व्यवस्था करना लाज़िमी है। ध्यान रहे कि स्पेन में कोरोना वायरस से जो 2696 मौतें हुई हैं, उनमें 14 प्रतिशत हेल्थकेयर वर्कर्स हैं। संक्षेप में बात सिर्फ  इतनी-सी है कि यह लॉकडाउन सरकार की तरफ से युद्ध स्तर पर तैयारी की मांग भी करता है। सारी ज़िम्मेदारी (बल्कि कुर्बानी कि घर में भी रहे, रोज़ी के लिए काम भी न करे, कोविड-19 टेस्ट कराने के लिए प्राइवेट कम्पनियों को 4500 रुपये भी दो व सरकारी बिल एवं कर भी अदा करते रहो) बेचारी जनता पर डालना घातक होगा।
22 मार्च के जनता कर्फ्यू में अवाम ने पांच मिनट तक ताली-थाली बजाकर कोरोना वायरस के विरुद्ध जंग कर रहे मेडिकल (योद्धाओं) का धन्यवाद व्यक्त किया लेकिन इस प्रतीकात्मक हौसला अफजायी का कोई अर्थ नहीं रह जाता, अगर सरकार इन हेल्थ केयर वर्कर्स की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं करती है। अनेक सरकारी डाक्टरों ने शिकायत की है कि व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों (पीपीई) जैसे मास्क, दस्ताने व सुइट्स बॉडी ओवरआल्स की ज़बरदस्त कमी है। डब्ल्यूएचओ अधिक लोगों को टेस्ट करने के महत्त्व पर निरंतर बल दे रहा है। पीपीई निर्माता 12 फरवरी से ही स्वास्थ मंत्रालय को लिख रहे थे कि उन्हें डिज़ाइन स्पेसिफिकेशन दे दिया जाये, लेकिन किसी के कान पर भी जूं नहीं रेंगी।  देसी कम्पनियां जो टेस्टिंग किट्स बना रही हैं, उन्हें भी एक महीने से मंजूरी नहीं दी गई है। खैर, अब जब कम्यूनिटी स्प्रेड का खतरा बहुत बढ़ गया है तो सरकार को सदबुद्धि आयी है और अनेक पीपीई निर्माताओं को ऑर्डर्स दिए गये हैं। कुछ भारतीय-निर्मित टेस्ट किट्स को मंजूरी दी गई है यूएसएफडी,ईयू सर्टिफाइड किट्स वाले शुरुआती दिशा-निर्देशों को अनदेखा करते हुए। ध्यान रहे कि इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस (बेंगलुरु) ने जो कोविड-19 टेस्ट किट विकसित की है, वह नयी, अच्छी व सस्ती है (मात्र 1000 रुपये में टेस्ट संभव है, इसलिए प्राइवेट लैब्स के लिए जो टेस्ट करने की ऊपरी सीमा 4500 रुपये निर्धारित की गई है, वह ‘संकट के समय लूटमार’ है।
बहरहाल, अन्य देशों ने निर्यात को सीमित कर दिया है, इसलिए भारत के पास कोई विकल्प नहीं है सिवाय इसके कि तेज़ी से अपनी हेल्थ केयर क्षमता को बढ़ाये। स्वास्थ इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए जो 15,000 करोड़ रुपये की घोषणा की गई है, वह इस स्थिति की स्वीकृति है। यह पैसा काफी कम है (लगभग 2 लाख करोड़ होना चाहिए था),  लेकिन फिर भी अब यह करना चाहिए कि रिकॉर्ड टाइम में कोविड-19 के उपचार हेतु नये अस्पताल, क्लीनिक बनाये जायें, क्रिटिकल केयर यूनिट स्थापित किये जायें जिनके लिए वेंटीलेटर, पाइप्ड ऑक्सीजन सप्लाई आदि की ज़रूरत पड़ेगी। देश में लगभग 10 लाख दैनिक टेस्टिंग की व्यवस्था हो, तभी इस लॉकडाउन का लाभ मिल सकेगा।
युद्ध स्तर पर दोनों पब्लिक व प्राइवेट सेक्टर की सेवाओं का प्रबंधन हो। लॉकडाउन को सफल बनाने के लिए मुफ्त टेस्टिंग, पॉजिटिव मामलों के लिए पर्याप्त आइसोलेशन व्यवस्था और गरीबों की रोटी का इंतजाम करना आवश्यक है। गरीबों के लिए किसी आर्थिक पैकेज की घोषणा न किया जाना दुर्भाग्यपूर्ण ही नहीं, सेल्फ. गोल करने जैसा है। अचानक लॉकडाउन से बेचारे गरीब ही बिना फूड या शेल्टर के बीच में अटक गये हैं। वह सुरक्षित स्थान कैसे पायेंगे? वे बिना पैसे या फूड के कैसे ज़िन्दा रहेंगे? उनके लिए तो बिना कोरोना वायरस के ही ‘मौत का सामान’ हो जायेगा और फिर पुलिसिया उत्पीड़न के भी वही अधिकतर शिकार होते हैं। 
                           -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर