बेहतर नेतृत्व की आवश्यकता

अब तक पंजाब में कोरोना वायरस के बढ़ने के समाचार ही मिल रहे हैं जिन्होंने भय एवं घबराहट का माहौल पैदा कर रखा है। विश्व के अनेक देशों से मिलने वाले समाचारों के अनुसार भारत को अभी भी इस बीमारी का ग्रहण बहुत नहीं लगा, परन्तु इसके अधिक फैलने अथवा कम होने के बारे में भी अभी तक निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। पंजाब सरकार ने तालाबंदी अथवा कर्फ्यू की स्थिति को 30 अप्रैल तक जारी रखने का फैसला करके यह संकेत भी दिया है कि अभी इस बीमारी को संभाला जाना कठिन है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने पत्रकारों के साथ बातचीत करते हुए इस महामारी के देश में अगामी जुलाई-अगस्त के महीनों तक शिखर पर पहुंचने की बात की है तथा यह भी कहा है कि इससे देश एवं पंजाब के बड़ी संख्या में प्रभावित होने की आशंका है। मुख्यमंत्री ने जहां इस संबंध में अपनी तैयारियों का ज़िक्र किया है, वहीं आगामी समय में बड़ी संख्या में मरीज़ों की सार-संभाल के लिए बनाई जा रही योजनाबंदी का विस्तार भी दिया है, परन्तु हमारी सूचना के अनुसार इस समय तक सरकारी प्रबंध पुख्ता दिखाई नहीं देते। कैप्टन ने स्वयं स्वीकार किया है कि अब तक मरीज़ों की टैस्ंिटग का कार्य संतोषजनक नहीं है। लगभग पौने तीन करोड़ की आबादी वाले प्रदेश में इस बीमारी के साथ जूझने के लिए अस्पतालों में आवश्यक सामान नहीं पहुंच रहा। यदि यह बीमारी अधिक फैलती है तो इसके लिए आवश्यक वैंटीलेटरों की आपूर्ति कैसे की जानी है, इस संबंध में कोई प्रभावशाली योजना सामने नहीं आ रही। अस्पतालों में डाक्टरों, नर्सों एवं संबंधित कर्मचारियों के बचाव हेतु आवश्यक सुरक्षा किटें भी नहीं दी गईं। प्रत्येक स्थान पर इसकी शिकायतें पहुंचना शुरू हो गई हैं। मुख्यमंत्री ने इतना अवश्य कहा है कि ऐसी किटें बनाने के लिए स्वीकृति दे दी गई है तथा यह भी दावा किया है कि ये किटें समुचित मात्रा में सही समय पर तैयार हो जाएंगी। चाहे तालाबंदी की अवधि को तो बढ़ा दिया गया है, परन्तु इस अवधि में जन-जीवन की रफ्तार को कैसे स्थिर रखना है, यह एक बहुत चुनौतीपूर्ण कार्य है। इस स्थिति के साथ ही औद्योगिक एवं व्यापारिक गतिविधियां भी जुड़ी हुई हैं तथा इनके साथ कर्मचारी एवं श्रमिक भी जुड़े हुए हैं। यदि उन्हें निरंतर काम से वंचित रखा जाता है तो उनके पोषण को नियोजित करना बेहद कठिन कार्य है। यदि इसे पूर्ण निपुणता के साथ न किया जा सका तो भिन्न-भिन्न वर्गों में असंतोष पैदा हो सकता है। आज प्रशासन एवं पुलिस अच्छे ढंग के साथ अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं, परन्तु निचले स्तर पर पूरी जानकारी लेने के लिए तथा प्रत्येक पक्ष से लोगों की समस्याओं को दूर करने के लिए भिन्न-भिन्न इलाकों से संबंधित स्थानीय राजनीतिक एवं सामाजिक नेताओं की भूमिका एवं महत्व से इन्कार नहीं किया जा सकता। आज भिन्न-भिन्न संस्थाएं एवं संगठन अपने तौर पर लंगरों के आयोजन सहित राहत का अन्य सामान अवश्य बांट रहे हैं परन्तु इन्हें दिशा-निर्देश देने के लिए एवं एक सूत्र में पिरोने के लिए एक ऐसी योजनाबंदी की ज़रूरत होगी, जो समय एवं आवश्यकता के अनुसार पुख्ता सिद्ध हो सके। ऐसा उचित निगरानी के बिना संभव नहीं हो सकता।