बिना मज़दूरी खाना पाप

 एक बार गांधी जी के आश्रम में अवधेश नामक एक युवक आया। वह गांधी जी के पास जाकर बोला- ‘मैं कुछ समय आपकेआश्रम में रहना चाहता हूं । मेरे पास न तो खाने -पीने की चीजें हैं और न पैसे। मैं बिना टिकट कटाये गाड़ी में सफर करता हूं और लोगों से मांग कर खाता आ रहा हूं । मैं बलिया का रहने वाला हूं और करांची कांग्रेस देखने गया था।’यह सुनकर गांधी जी कुछ क्षण चुप रहे , फिर बोले - ‘तुम्हारे जैसे नवयुवक को यह कहते शोभा नहीं देता । यदि तुम्हारेपास पैसे नहीं थे तो कांग्रेस अधिवेशन देखने की क्या आवश्यकता थी ? कांग्रेस अधिवेशन देखने से तुम्हें कुछ लाभ भीमिला ? बिना टिकट यात्रा करना और बिना मेहनत किए भोजन करना पाप है ! यहां तुमको मुफ्त में खाना नहीं दियाजायेगा । यहां तुम्हें मेहनत के उपरांत ही भोजन दिया जायेगा।’अवधेश देखने मे मेहनती और उत्साही लग रहा था । बोला - ‘ठीक है । आप मुझे काम दीजिए । मैं मेहनत करने के लिएतैयार हूं।’गांधी जी ने सोचा , इस युवक को काम अवश्य मिलना चाहिए । समाज और राज्य दोनों का यह दायित्व है । राज्य तो आज पराया है, लेकिन समाज अपना है । वह भी इस ओर ध्यान नहीं देता, परंतु मेरे पास आकर जो युवक काम मांगे उसे मैं ‘ना ’कैसे कर सकता हूं । यही सोचकर गांधी जी ने उस युवक से कहा - ‘ठीक है तुम आज से ही यहां पर काम में लग जाओ । मैं तुमको काम के बदले भोजन और आठ आना दूंगा । जब तुम्हारे पास किराये लायक पैसे हो जाएं तब अपने घर चले जाना।’ अवधेश गांधी जी की बातों से सहमत होकर उसी दिन से आश्रम के काम मे लग गया । 

                                    —पुष्पेश कुमार पुष्प