पंजाब में कर्फ्यू के दौरान गेहूं की खरीद बड़ा तजुर्बा-बड़ी चुनौती!

जालन्धर, 12 अप्रैल ( मेजर सिंह ) : पंजाब में आगामी सप्ताह 1से 3 हज़ार करोड़ रुपए से 130 लाख टन के करीब गेहूं की कर्फ्यू के दौरान शुरू होने जा रही खरीद विश्व के इतिहास में एक नया बड़ा तुजुर्बा होने जा रहा है और बड़ी चुनौतियां भी पैदा करेगा। दो माह चलने वाली इस लम्बी खरीद प्रक्रिया के लिए चाहे सरकार ने मोटी रूपरेखा तैयार कर ली है और इसके लिए युद्ध स्तर पर गतिविधियां व तैयारियां भी आरम्भ कर दी हैं। समूची खरीद प्रक्रिया को सुखद ढंग से चलाने व आगे बढ़ाने के लिए पंजाब सरकार ने खेती, खुराक विभाग व मंडी बोर्ड के अधिकारियों की एक 30 सदस्यीय मोनीट्रिंग  कमेटी भी गठित की है। इस कमेटी पर पूरी खरीद प्रक्रिया की निगरानी करने व मौके के अनुसार फैसले करने से पहले लिए गए फैसलों में संशोधन या वृद्धि करने का बोझ डाला गया है। खरीद केन्द्रों की संख्या 1800 से बढ़ाकर 4 हज़ार के करीब करने के लिए अधिकतर फैसलों को खरीद केन्द्र  बनाने का अधिकार ज़िलाधीशों को दिया गया है। किसान को 50 क्विंटल की ट्राली ही एक दिन में मंडी में लाने के बनाए गए फार्मूले का कई किसान संगठनों द्वारा विरोध किया जा रहा था और इस फैसले को अस्वीकार्य बताया जा रहा था।
कर्फ्यू में ढील बगैर कैसे चलेगा काम?
सरकार इस फैसले पर सख्त है कि कोरोना के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए कर्फ्यू व सामाजिक दूरी के नियम में कोई ढील नहीं देगी। फसल बेचने किसान अकेला आएगा। आढ़ती के पास 5-6 से अधिक मज़दूर नहीं होंगे और तोला व मुनीम इससे अलग होंगे। किसानों का कहना है और गत वर्षों का अनुभव इस बात की गवाही भरता है कि पंजाब में गेहूं की कटाई, खरीद व भंडार में 25 से 30 लाख के करीब लोग सीधे शामिल होते हैं। इनके अलावा चाय, रोटी के ढाबों, पंक्चर लगाने से लेकर ट्रैक्टर, कम्बाइनों की मुरम्मत सहित अन्य छोटे-मोटे कामों व रेहड़ियों वाले अप्रत्यक्ष रूप से इस प्रक्रिया में शामिल होते हैं। सैकड़ों की संख्या में लेबर रखने वालों को 5-6 मज़दूरों के साथ काम चलाने के लिए पाबंद किया जा रहा है। सवाल यह उठ रहा है कि यदि 500-600 क्विंटल गेहूं भी एक आढ़ती के पास आई तो वह इसकी सफाई, भराई व तुलाई केवल 5-6 मज़दूरों से कैसे करवा सकेंगे? खरीद एजैंसियों के अधिकारियों को भी यह बात हजम नहीं हो रही। कृषि धंधा वर्कशापों से बेहद नज़दीकी से जुड़ा हुआ है परंतु अब सभी बंद पड़ी हैं। इनकी ज़रूरत किसान कहां से पूरी करेंगे।शैलर को खरीद केन्द्र घोषित करने की बात भी उचित नहीं लगती। 4 वर्ष से पहले शैलर की कुल ज़मीन 2 से 3 एकड़ तक है और अब बने शैलर अधिक से अधिक चार एकड़ में हैं। इसके आधे हिस्से में उनका निर्माण है और बाकी में धान व अन्य साजो सामान। शैलर मालिकों का कहना है कि उनके पास तो 40 फीसदी के करीब पिछली धान ही पड़ी है। इसलिए शैलरों में गेहूं की खरीद की ज्यादा गुंजाइश नहीं। गर्मी तेज़ होने से गेहूं की कटाई ज़ोर-शोर से शुरू होने जा रही है और 15 अप्रैल को अचानक मंडियों में गेहूं की आवक शुरू हो जाएगी जिस किसान के पास 200 या 300 क्विंटल गेहूं है, वह पहली ट्राली, वह भी बारी वाले दिन मंडी में छोड़ आएगा, परंतु बाकी कहां रखेगा? इसका भी सरकार के पास अभी कोई जवाब नहीं। पंजाब सरकार का कर्फ्यू के दौरान खरीद का जोखिम भरा तुजुर्बा विश्वभर के लिए बेहद अनोखा तुजुर्बा है और यह तुजुर्बा सही सलामत सफल होने से कोरोना महामारी के बाद आने वाली आर्थिक मंदी के दौर को ढीला करने में अहम भूमिका निभा सकता है क्योंकि गेहूं का खरीद सीजन जहां सरकार के खज़ाने को सीधा 800 करोड़ का राजस्व देता है, वहीं समूचे पंजाब की अर्थव्यवस्था को भारी समर्थन देता है।