गैर-ज़िम्मेदाराना दृष्टिकोण

वैश्विक महामारी के दृष्टिगत आज दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमरीका में इस रोग के फैलने से जिस प्रकार मरीजों की संख्या बढ़ रही है, तथा जिस प्रकार बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं, उससे अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के परेशान होने की बात समझ में आती है। ट्रम्प ने एक प्रकार से इस महामारी को रोकने के लिए अपनी पूरी शक्ति झोंक दी है, परन्तु अभी भी यह नियंत्रण से बाहर प्रतीत होती है। ट्रम्प दुनिया भर में अपने बड़बोलेपन के लिए जाने जाते हैं। उनके बयान प्राय: विवादों का विषय बनते हैं। इस गम्भीर संकट के समय भी उनके बयानों में और कटुता आ गई प्रतीत होती है। वह इस समय चीन एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन को अपने क्रोध का निशाना बना रहे हैं। दूसरी ओर विश्व स्वास्थ्य संस्था (डब्ल्यू.एच.ओ.) इस महामारी के दौरान अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर केन्द्र बिन्दु बन कर अत्याधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर रही है। ट्रम्प की ओर से इस समय इस संस्था की आलोचना के साथ-साथ उसे दी जाने वाली सहायता राशि पर रोक लगाना अत्याधिक नकारात्मक कार्रवाई है। ऐसे समय में उठाया गया यह पग विश्व भर के लिए बहुत हानिकारक सिद्ध हो सकता है। यदि इस बीमारी का मुकाबला करने वाला केन्द्र ही हिल गया, तो इससे इस बीमारी का प्रसार बढ़ने की आशंका बन जाती है। संयुक्त राष्ट्र संघ की यह महत्त्वपूर्ण शाखा दूसरे विश्व युद्ध के बाद और भी आवश्यक बन गई थी, क्योंकि यह सदैव विश्व भर के लोगों के स्वास्थ्य सरोकारों को सम्बोधित रही है। इसने वर्ष 2009 में फैले स्वाइन फ्लू के समय भी अपनी समुचित भूमिका का निर्वहन किया तथा 2014 में बड़े स्तर पर फैले इबोला संकट के समय भी यह केन्द्र बिन्दु बन कर सामने आई थी। स्माल पॉक्स (चेचक) की महामारी के समय भी इसने अनेक छोटे-बड़े देशों की सहायता की थी। अफ्रीकी देशों में फैले मलेरिया के संताप के समय भी यह संस्था बहुत सहायक सिद्ध हुई थी। अब जबकि कोरोना वायरस की नई बीमारी के कारण आवश्यक डाक्टरी उपकरणों एवं अन्य सामान की आवश्यकता पूरी करने एवं इसका मुकाबला करने के लिए अन्य देशों के बीच सांझेदारी पैदा करने की आवश्यकता है, तो उस समय ट्रम्प की ओर से उठाया गया यह पग कड़ी आलोचना का विषय बना है। ट्रम्प ने इस संस्था पर यह आरोप लगाया है कि उसने सही समय पर चीन में फैली इस बीमारी के अन्तर्राष्ट्रीय धरातल पर पड़ने वाले प्रभावों के संबंध में अमरीका एवं अन्य देशों को अवगत नहीं करवाया। इस बात में कुछ सच्चाई भी अवश्य हो सकती है परन्तु इसमें दोष इस संस्था का नहीं, अपितु चीन का अधिक माना जाना चाहिए जिसने सही समय पर अन्य देशों के साथ इस जानकारी को सांझा नहीं किया। बाद में इस संस्था का निदेशक चीन गया था, जहां उसने स्थिति का स्वयं पूरा जायज़ा लिया था तथा इस महामारी पर चीन द्वारा काबू पाये जाने हेतु यत्नों की प्रशंसा भी की थी। अमरीका इस संस्था के कोष में सबसे बड़ा योगदान डालता है। वह इसके लिए लगभग 35 अरब रुपये वार्षिक योगदान देता है। विश्व का कोई अन्य देश इस संस्था की इतनी बड़ी आर्थिक सहायता नहीं करता। चीन भी इस संस्था की अमरीका से 10 प्रतिशत कम आर्थिक मदद करता है। ट्रम्प के मन में इस संस्था के कामकाज के प्रति शिकायतें हो सकती हैं, परन्तु वर्तमान में इस महामारी के जारी रहते अमरीकी राष्ट्रपति की ओर से उठाये गये इस पग की सभी पक्ष से आलोचना हुई है। इस संस्था की कार्य प्रणाली एवं अब तक के कामकाज के ढंग में और सुधार लाने के लिए बाद में प्रश्न उठाये जा सकते हैं, परन्तु एक अदृश्य शत्रु के विरुद्ध लड़ाई जारी रहते राष्ट्रपति ट्रम्प की कार्रवाई सेनाओं के शस्त्र कुंद करने वाली सिद्ध हो सकती है।इस बीमारी का मुकाबला करने के लिए अमरीका में भी ट्रम्प की ओर से उठाये गये अधिकतर पगों की आलोचना हुई है तथा इस दौरान रह गई त्रुटियां भी उजागर हुई हैं। इस समय आवश्यकता उन कमियों को पूरा करने की थी, न कि तीव्र गति से एक निश्चित दिशा में चल रही इस विश्व स्वास्थ्य संस्था की गति को रोकने की। ट्रम्प के इस फैसले से विश्व भर में अमरीका एवं उसके राष्ट्रपति के संबंध में गलत सन्देश गया है। इस संबंध में उन्हें पुन: विचार करना चाहिए।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द