" लॉकडाउन का दूसरा चरण " अगले 19 दिन कठिन परीक्षा के हैं 

इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि अगले 19 दिनों तक का लॉकडाउन अर्थ-व्यवस्था के लिए बहुत सारी आशंकाएं लेकर आ रहा है। इसमें भी कोई दो राय नहीं कि अगर हम समस्याओं की सूची बनाने लगें तो इस दौरान एक क्या दसियों लेख लिखे जाएंगे। लेकिन ये 19 दिन सिर्फ  समस्याएं ही नहीं, हमारे लिए एक बड़ी स़ौगात लेकर भी आ सकते हैं, अगर हमने अपने अंदाज में कोरोना को इन 19 दिन में हरा दिया तो हम सिर्फ कोरोना से नहीं जीतेंगे बल्कि कोरोना के बाद बनने वाली दुनिया के हीरो होंगे। प्रधानमंत्री मोदी ने 14 अप्रैल, 2020 को सुबह 10 बजकर 15 मिनट के आसपास जब 3 मई 2020 तक के लॉकडाउन का ऐलान किया, तब शायद ही कोई ऐसा हिंदुस्तानी रहा हो, जिसे यह अप्रत्याशित लगा हो। दरअसल हर हिंदुस्तानी यह मानकर चल रहा था कि 14 अप्रैल की सुबह जब प्रधानमंत्री मोदी देश को संबोधित करेंगे तो वे लॉकडाउन बढ़ाये जाने की ही बात करेंगे। कई राज्यों ने तो प्रधानमंत्री की इस औपचारिक घोषणा के पहले ही लॉकडाउन की मियाद 30 अप्रैल और कुछ ने 1 मई तक बढ़ा दी थी। प्रधानमंत्री ने सिर्फ  यह किया कि 30 अप्रैल या 1 मई को दो दिन और आगे ले जाकर मई महीने के पहले इतवार को भी इसमें शामिल कर लिया है। जैसा कि हम सब लोग आमतौर पर किसी नये कार्यक्त्रम की शुरुआत सप्ताह के पहले दिन यानी सोमवार से करते हैं, उसी तरह से प्रधानमंत्री मोदी ने लॉकडाउन के बाद फिर से जीवन को पटरी पर लाने की शुरुआत सोमवार से यानी 4 मई के बाद से की है।सवाल है, इस प्रत्याशित लॉकडाउन के दूसरे चरण या दूसरे फेज से क्या उम्मीदें की जा सकती हैं? यह तो तय है कि कोरोना संक्रमण को हिंदुस्तान में हारना ही है, और यह भी निर्विवाद रूप से तय है कि हमारे पास कोरोना से निपटने के लिए इससे बढ़िया और कोई रास्ता भी नहीं था। रास्ता तो दुनिया के किसी भी देश के पास इसके अलावा फिलहाल कुछ नहीं है, लेकिन हमारे पास जिस तरह से इस जंग के लिए संसाधन सीमित हैं, उसे देखते हुए तो यह लॉकडाउन एक किस्म से हमारे लिए कोरोना से लड़ने का ब्रह्मास्त्र है। हम इस ब्रह्मास्त्र का त्याग इस मोड़ पर कर ही नहीं सकते जिस मोड़ पर आज खड़े हैं। कोरोना संक्रमण के हिंदुस्तान में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 75 दिन बीत चुके हैं और अगर हाल के दिनों में कोरोना संक्त्रमण के 75 दिनों के साथ तुलना करके देखें तो हम काफी सुरक्षित स्थिति में लग रहे हैं। करीब करीब चीन की जैसी हमारी स्थिति है।गौरतलब है कि कोरोना संक्त्रमण के पहले 75 दिनों में चीन में भी संक्त्रमितों की संख्या 10,000 ही थी और वहां भी तब तक हमसे दो चार लोग ही ज्यादा मरे थे। लेकिन हम सब जानते हैं कि इसके बाद चीन ने क्या किया? चीन ने करीब करीब चमत्कार के अंदाज में 1 करोड़ 44 लाख की आबादी वाले वुहान शहर को बिल्कुल जाम कर दिया। ऐसा जाम कि शायद इसी के लिए कहा गया हो कि परिंदा भी पर नहीं मार सकता। पूरा वुहान घरों में कैद हो गया। जरूरत का सारा सामान दरवाजे तक वालंटियर पहुंचाने लगे। किसी भी काम के लिए दरवाजे पर अर्धसैनिक बल हाजिर होने लगे। इस तरह पूरे देश से वुहान को अलग-थलग करके चीन कोरोना के विस्तार की कमर को तोड़ने में सफल रहा।लेकिन चीन ने यह जो चमत्कार किया, वह उम्मीद के बाहर नहीं था। चीन के पास जबरदस्त संसाधन हैं और उसके लिए यह कोई बड़ी बात भी नहीं थी। चीन के पक्ष में एक और बड़ी सच्चाई यह थी कि किसी भी वजह से चीन में कोरोना का संक्रमण महज वुहान तक या इसके 4 से 5 करोड़ की आबादी तक ही फैला था जबकि हिंदुस्तान में स्थिति ठीक इसके उल्ट है। हिंदुस्तान में कोरोना का विस्तार करीब करीब 92 फीसदी क्षेत्रफल में हो गया है। यह अलग बात है कि कई प्रदेशों में इसका संक्रमण बहुत सीमित है। कई प्रदेशों के अधिकतर जिले इससे अछूते हैं, लेकिन कोरोना का भूगोल भारत में चीन के मुकाबले 400 फीसदी से भी बड़ा है। इसलिए अगर हम चीन से आधी सफलता भी हासिल कर लें तो यह चीन से बड़ा चमत्कार होगा। चीन में अब तक कोरोना वायरस से मरने वालों की तादाद 3500 से ज्यादा नहीं है। लेकिन अगर भारत में 8000 लोगों मारे जाने के बाद भी हम कोरोना पर काबू पाने में सफल रहते हैं तो यह चीन से बड़ी सफलता होगी।भारत ने जिस प्रकार कोरोना के खिलाफ  चक्र-व्यूह रचना की है, उसकी तारीफ आज पूरी दुनिया कर रही है। हमने जितनी तत्परता से कोरोना के खिलाफ  सोशल डिस्टेंसिंग और लॉकडाउन का हथियार इस्तेमाल किया है, उतनी तेजी, उतनी सघनता से उन देशों ने नहीं किया जो आज इसकी बड़ी कीमत चुकाते दिख रहे हैं। इसलिए कोरोना पर भारत की जीत लाज़िमी है। लेकिन अगर आम लोग अगले 19 दिनों तक इस अभियान का ईमानदार हिस्सा नहीं रहे तो हमारी शुरुआत में की गई तमाम तत्परता, तमाम किलेबंदी धरी की धरी रह जायेगी। कोरोना हमें अपने चपल पलट आक्रमण से पस्त कर सकता है। कुल मिलाकर अगले 19 दिनों का लॉकडाउन हिंदुस्तान की एक बड़ी परीक्षा है। —सिर्फ  सरकार की नहीं, आम लोगों की भी। आम लोगों के इस दौरान किये गये व्यवहार से ही तय होगा कि क्या भारत दुनिया का नेतृत्व करने के लिए मानसिक और मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार है? भारत के प्रधानमंत्री ने जिस तरह से युवा वैज्ञानिकों को मानव कल्याण के लिए कोरोना की वैक्सीन विकसित करने का आह्वान किया है, वह महज वैक्सीन के विकास की बात नहीं है। वह एक प्रकार से देश के समूचे युवाओं को आगे बढ़कर दुनिया का नेतृत्व करने का आह्वान है। क्या देश इस बड़ी जिम्मेदारी को समझेगा? अगले 15 दिन इसकी कड़ी परीक्षा के दिन हैं। अगर हम सफल रहते हैं तो सिर्फ  कोरोना से ही नहीं जीतेंगे बल्कि दुनिया के सिरमौर बनेंगे, विश्व को एक जागरूक और सांस्कृतिक सम्पन्नता वाला नेतृत्व देंगे।