कोरोना वायरस के समय में पंजाब

पूरे विश्व की तरह पंजाब भी कोरोना वायरस की महामारी के कारण असमान्य स्थिति में से गुज़र रहा है। देश-विदेश में बसा पंजाबी भाईचारा इससे प्रभावित हो रहा है। पंजाब में तालाबंदी हुए एक महीने से अधिक समय हो गया है। चाहे कुछ स्थानों पर नासमझ लोगों द्वारा इस तालाबंदी का उल्लंघन भी किया गया है परंतु समूचे तौर पर पंजाबियों ने इस तालाबंदी का पालन किया है और प्रशासन को हर तरह का सहयोग दिया है। चाहे विभिन्न कारणों करके राज्य में कोरोना वायरस से पीड़ित मरीज़ों के केसों में निरन्तर वृद्धि हो रही है परंतु फिर भी अभी तक स्थिति को काबू में ही कहा जा सकता है।  ये अक्सर ही कहा जाता है कि जब किसी देश के लोगों पर कोई बड़ी आफत आती है तो उस समय ही वहां के निवासियों के वास्तविक आचरण की परख होती है। अगर पीछे परत कर इतिहास में नज़र डालें तो संकटों के समय पंजाबी बेमिसाल दृढ़ता, साहस तथा दूरअंदेशी का प्रगटावा करते आए हैं। पंजाबियों के आचरण में यह विशेषताएं इस क्षेत्र के इतिहास में से आई हैं। इस क्षेत्र में बसने वाले पंजाबियों को बार-बार केन्द्रीय एशिया से आने वाले हमलावरों के हमलों का सामना करना पड़ता रहा है। वैसे भी इस क्षेत्र का मौसम ऐसा है कि जो मनुष्यों को सख्त जान बनाता है। मिसाल के तौर पर यहां सर्दियों में  कड़ी सर्दी पड़ती है, गर्मी में भीषण गर्मी तथा बरसातों में भारी बारिशें होती हैं। इस तरह की मौसमी स्थितियां यहां के मनुष्य को हर प्रकार की स्थिति का सामना करने के सामर्थ्य बनाती हैं। इन स्थितियों में ही पंजाबियों को दृढ़ता व दलेरी मिलती है। श्री गुरु नानक देव जी से आरम्भ हुई सिख लहर ने दशम पातशाह श्री गुरु गोबिन्द सिंह तक आते-आते 250 वर्ष के समय में इस धरती पर एक ऐसे मनुष्य का सृजन किया, जो न तो  जुल्म सहने के पक्ष में था और न ही जुल्म करने के पक्ष में था। इसके अलावा वह मनुष्य नाम जपने, किरत करने तथा वंड छकन का भी पक्का धारनी था। 550 वर्ष पहले आरंभ हुई इस पुनर्जागृति की लहर का प्रभाव आज भी पंजाब के कण-कण तथा पंजाबियों के स्वभाव में देखा जा सकता है। इसी कारण हमारे प्रसिद्ध कवि प्रो. पूर्ण सिंह ने लिखा था- ‘पंजाब न हिन्दू न मुसलमान, पंजाब सारा जींदा गुरु दे नाम ते’। इसका ही नतीजा है कि पंजाबी मुश्किलों स्थितियाें का डट कर सामना करते आए हैं और सदा अपने आपको मानवता की सेवा के लिए तैयार रखते हैं। उनकी इसी फितरत ने उनको विश्व में एक अलग स्थान दिलाया है। कोरोना वायरस के संकट के संदर्भ में भी पंजाबियों तथा विशेषकर सिख भाईचारे का यही आचरण व यही स्वभाव विश्व भर में देखने  को मिल रहा है। इसी कारण इस भाईचारे की बड़े स्तर पर आज फिर चर्चा हो रही है। भारत व विश्व भर में गुरु घर इस समय ज़रूरतमंद लोगों के लिए ओट आसरे तथा उनके भोजन की ज़रूरतें  पूरी करने का साधन बने हुए हैं। इस संबंध में ऋण संगठनों का संघर्ष एक अलग लेख का विषय है। आज इस लेख में हम पंजाब की स्थितियों में पंजाबियों की कारगुज़ारी तथा उनकी भूमिका की चर्चा करना चाहते हैं। इस प्रसंग में यह देखा गया है कि राज्य में भी गुरु घरों तथा अन्य धार्मिक तथा सामाजिक संगठनों ने लंगर तैयार करके ज़रूरतमंदों तक पहुंचाने या ज़रूरतमंदों को सूखा राशन बांटने के मामले में बड़ी भूमिका अदा की है। चाहे तालाबंदी में कृषि, डेयरी फार्म तथा पोल्ट्री फार्म आदि के कार्यों पर बहुत बुरा प्रभाव डाला है। पंजाबियों की आर्थिकता बुरी तरह प्रभावित हुई है। परंतु इसके बावजूद पंजाबियों ने संकट के समय ज़रूरतमंदों की मदद करने की अपनी माननीय परम्परा को कायम रखा है। इसी कारण पंजाब से प्रवासी मजदूरों का पलायन बहुत कम हुआ है। इस समय के दौरान पंजाबियों की दूसरी बड़ी प्राप्ति यह रही है कि राज्य की मुख्य फसल गेहूं के मंडीकरण का मौसम की खराबी तथा कोरोना वायरस के कारण पैदा हुई अन्य बहुत सी समस्याआें के बावजूद 80 प्रतिशत कार्य मुकम्मल हो गया है। यह सही है कि अभी तक किसानों को गेहूं की अधिक अदायगी नहीं हुई और यह भी सही है कि मंडियों में अभी गेहूं की अधिक लिफ्ंिटग करनी शेष है। परंतु इसके बावजूद कठिन स्थितियों में प्रशासन, आढ़तियाें तथा किसानों ने आपसी सहयोग से इस बड़े कार्य को काफी हद तक पूरा कर लिया है। पहले इस तरह की आशंका प्रकट की जा रही थी कि शारीरिक दूरी को कायम रखते हुए यह कार्य किस तरह पूरा होगा। अब जब इस कार्य का बड़ा हिस्सा पूरा हो चुका है तो प्रशासन आढ़तियों तथा किसानों ने भी थोड़ी सुख की सांस ली है। यह बहुत ही प्रशंसनीय बात है कि इस बार किसानों ने मंडियों में गेहूं लाने के साथ-साथ अपनी निजी सुरक्षा को भी प्राथमिकता दी है और हर स्तर पर भीड़ का हिस्सा बनने से संकोच किया है। इस संबंध में दूसरी बड़ी बात यह रही है कि आढ़तियों तथा बहुत से शैलर मालिकों जिनके आंगनों में नई मंडियां बनाई गई थी, ने अपने प्रयासों से गेहूं की साफ-सफाई के लिए ज़रूरत अनुसार श्रमिकाें का प्रबंध किया है। इनमें प्रवासी श्रमिक भी शामिल थे और पंजाब के अपने खेत मजदूर या साधारण समय में अन्य काम धंधे करने वाले मजदूर भी शामिल थे। मीडिया के कुछ हिस्साें ने लिखा है कि पहली बार लम्बे समय के बाद मंडियाें में पंजाब के स्थानीय श्रमिक देखने को मिले हैं। इससे राज्य के किसानों तथा राज्य के श्रमिकों के बीच लम्बे समय से टूटा हुआ रिश्ता एक बार फिर बहाल होता नज़र आया है। अगर गेहूं की लवाई तथा अन्य कामों के लिए आने वाले समय में और प्रसासी श्रमिक यहां आने में सफल नहीं होते तो धान की रोपाई का चुनौती भरा कार्य भी पंजाब के अपने श्रमिकों को ही पूरा करना पड़ेगा। इससे भी इस संकटमयी समय में पंजाबी समाज की एकजुटता और बढ़ेगी। अगर आने वाली स्थितियों की बात करें तो ऐसा लगता है कि जल्द कोरोना महामारी से हमारा पीछा छूटने की सम्भावना नहीं है। यह भी सम्भव है कि 13 मई से लगभग दो सप्ताहों के लिए तालाबंदी की अवधि में और वृद्धि हो जाये। जब तक इस बीमारी का कोई प्रभावशाली इलाज नहीं मिलता और उस इलाज की पहुंच आम लोगाें तक नहीं होती, तब तक राज्य में इस बीमारी का खौफ बना रहेगा। हम सभी को इस तरह की स्थितियों में भी जीना तथा विचरना पड़ेगा। स्पष्ट बात यह है कि आने वाला समय भी हम सभी के लिये कोई आसान नहीं होगा। इस तरह की आसाधारण स्थितियों से गुज़रते हुए हमें शारीरिक दूरी बनाये रखकर तथा बिना ज़रूरत घरों से बाहर निकलने से परहेज़ करके अपनी तंदरुस्ती को भी बनाये रखना होगा और इसके साथ-साथ जीवन की चाल को पुन: पटरी पर लाने के लिए हमें ज़रूरी कार्य निपटाने की क्षमता भी पैदा करनी पड़ेगी। बहुत से ज़रूरी व्यवसाय, जिनके बिना समाज की चाल तथा विशेष करके इसकी आर्थिकता में कमी आ सकती है, उनको पुन: शुरू करना पड़ेगा ताकि राज्य में कृषि, उद्योग, व्यापारिक तथा शिक्षा केस संबंधित गतिविधियों को दोबारा बहाल किया जा सके। 3 मई से पहले-पहले इस संबंधी केन्द्रीय सरकार द्वारा भी ज़रूरी निर्देश जारी किये जायेंगे और पंजाब के स्तर पर भी  जिस तरह मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्द्र सिंह ने आज लोगों को सम्बोधित करते संकेत दिया है, कोई अगली रणनीति तैयार की जायेगी। इस समय दौरान ही पंजाबियों के लिए किया जाने वाला एक और बहुत ज़रूरी कार्य यह है कि अपने -अपने ज़िले के सिविल अस्पतालों को शहराें तथा गांवों में बसते खुशहाल लोगाें द्वारा जी-जान से अपनाया जाये। हम सभी जानते हैं कि लम्बे समय से सरकारों की गलत नीतियों के कारण सरकारी अस्पताल समय के अनुसार नहीं रहे। सरकारी अस्पतालों में लगातार ज़रूरत के अनुसार डाक्टराें, नर्सों तथा अन्य स्वास्थ्य स्टाफ की कमी रही है। इन अस्पतालों की इमारतों का नवीनीकरण तथा साफ-सफाई भी बहुत कम की जाती रही है। इसके अलावा इन अस्पतालों को अपने मरीजों को इलाज की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध करने के लिए आधुनिक साजो-सामान तथा  दवाईयां भी उपलबध नहीं की जाती रही। इसी कारण राज्य के बहुत से लोगाें का इन अस्पतालों से विश्वास उठ गया था और बहुत ही गरीब लोग मजबूरीवश इन अस्पतालों में जाते थे या लोगों के होने वाले लड़ाई-झगड़ाें के समय सरकारी अस्पतालों से झूठे-सच्चे पर्चे कटवाने की ज़रूरत पड़ती थी। परंतु अब जब कि कोरोना वायरस की महामारी हमारे सिर पर है तो हमारे गैर सरकारी अस्पतालों ने अपने दरवाजे बंद कर लिये हैं। इसी कारण इस महामारी का सामना करने की पूरी ज़िम्मेदारी इन सरकारी अस्पतालों पर ही आ पड़ी है। सरकार अपने द्वारा इन अस्पतालों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए जल्दबाजी में कोशिश कर रही है परंतु इतनी जल्दी सरकार द्वारा इन अस्पतालों की कम समय की तथा लम्बे समय की सभी ज़रूरतें पूरी करनी सम्भव नहीं हैं, जबकि कोरोना वायरस पीड़ित मरीजों को तुरन्त बेहतर इलाज तथा बेहतर खुराक की ज़रूरत है, क्याेंकि इस बीमारी के मरीजों को उनके घर वाले खाना नहीं दे सकते। उनको अलग-थलग रख कर खाना अस्पतालों द्वारा ही उपलब्ध किया जाता है। इस तरह की स्थितियों में अगर हम पंजाब के कोरोना वायरस से प्रभावित होने वाले प्रत्येक व्यक्ति की जान बचाना चाहते हैं तो यह बेहद ज़रूरी है कि हमारे समाज का खुशहाल वर्ग अपने-अपने ज़िले के सिविल अस्पताल को अपनाने के लिए आगे आए और उसकी हर तरह से सहायता करे। इस तरह की पहुंच से ही हम कोरोना वायरस के मौजूदा संकट में विजेता होकर उभर सकेंगे।पंजाबियों को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि आने वाला समय और भी मुश्किलों भरा हो सकता है परंतु अपने इतिहास से प्रेरणा लेते हुए इन स्थितियों का दृढ़ता, साहस तथा दूरअंदेशी से सामना करने में ही हमारा भविष्य छिपा हुआ है। हर तरह की स्थितियों में हमें अपने हौंसले बनाये रखने होंगे और ज़रूरतमंद लोगों की अधिक से अधिक मदद करनी होगी। यही हमारी अपने गुरु साहिबान, सूफी फकीरों तथा भक्ति लहर के संतों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।