शराब के विवाद से उभर रहे हैं कई गम्भीर प्रश्न

इस समय पंजाब कांग्रेस में सरकार के मुख्य सचिव करण अवतार सिंह के मामले पर घमासान मचा हुआ है। परन्तु इस तरह लग रहा है कि यह झगड़ा अभी और तीव्र होगा। बेशक पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह पहली बार अपने मंत्रियों के समक्ष झुके हुए दिखाई दिए, जब उन्होंने पहले मंत्रियों के दबाव में बिना मुख्य सचिव और मंत्रिमंडल की बैठक की और फिर मुख्य सचिव करण अवतार सिंह को शराब से संबंधित कर और आबकारी विभाग से भी अलग कर दिया।परन्तु स्थिति अभी भी कंट्रोल में नहीं हुई। इस दौरान मामला कांग्रेस हाईकमान के पास भी पहुंच चुका है, चाहे यह स्पष्ट है कि कैप्टन कांग्रेस हाईकमान के निकट हैं, परन्तु ज़रूरत पड़ने पर आंखें दिखाने की समर्था भी रखते हैं। इस समय ध्यान देने वाली बात यह है कि कैप्टन अमरेन्द्र सिंह मुख्य सचिव करण अवतार सिंह के मामले में और झुकते हैं या नहीं? क्या वह कुछ मंत्रियों, विधायकों, मौजूदा कांग्रेस अध्यक्ष और अपने कुछ विरोधियों द्वारा की जा रही मुख्य सचिव को हटाये जाने की मांग मान लेंगे? क्या वह शराब के मामले में मुख्य सचिव पर लगाए गए दोषों और पंजाब का राजस्व कम होने के कारणों की जांच की मांग स्वीकार कर लेंगे? मुख्यमंत्री के काम करने के तरीकों पर नज़र रखने वाले लोग नहीं समझते कि मुख्यमंत्री ये दोनों मांगें स्वीकार करेंगे। अपितु वह मामले को करण अवतार सिंह की सेवानिवृत्ति जो अगस्त के अंत में होगी, तक लटकाने का प्रयास ही करेंगे। वैसे यह चर्चा भी ज़ोरों पर है कि मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव करन अवतार सिंह का आगामी 5 वर्षों के लिए किसी और नई नियुक्ति का प्रबंध भी कर रहे हैं।यहां वर्णनीय है कि इस दौरान मुख्य सचिव के खिलाफ इकट्ठा होने वाले मंत्रियों में आपसी टकराव भी शुरू हो गया है। खास तौर पर दो मंत्रियों तृप्त राजिन्दर सिंह बाजवा और चरणजीत सिंह चन्नी के मध्य हुई तीव्र और धमकी भरी बातचीत के बाद यह स्थिति खुल कर सामने आ गई है। चन्नी द्वारा चिंता न करना और अपने खिलाफ मामला दर्ज करने की चुनौती देने की चर्चा से एक बात तो स्पष्ट हो गई है कि मंत्रिमंडल में मुख्य सचिव करण अवतार सिंह के विरुद्ध एकजुटता नहीं रही। हालांकि कुछ राजनीतिक गलियारे इस लड़ाई को कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के लिए चुनौती मान रहे हैं और समझते हैं कि अगर मंत्रियों और विधायकों के दबाव के समक्ष वह और झुकते हैं तो यह झगड़ा कुर्सी के झगड़े में भी  तबदील हो सकता है। हालांकि वर्तमान समय में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की सरकार पर कोई ़खतरा नज़र नहीं आ रहा।
चन्नी या बादल
इस समय यह भी चर्चा बहुत ज़ोरों पर है कि अब यह झगड़ा कहां जाएगा? क्या यह किसी मंत्री के पद की बली लेगा या किसी को पंजाब कांग्रेस के भविष्य के नेता के रूप में उभारेगा? बेशक मंत्रिमंडल से बाहर बैठे पूर्व मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को कैप्टन के बाद उभरने वाला पंजाब कांग्रेस का नेता माना जाता है, परन्तु इस नये झगड़े में दो नाम और उभर कर सामने आ रहे हैं जो पंजाब कांग्रेस के नाराज़ और निराश विधायकों का नेतृत्व भी कर सकते हैं। इनमें पहला नाम वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल का और दूसरा नाम कैबिनेट मंत्री चरणजीत सिंह चन्नी का है परन्तु यह बाद की बात है। ध्यान देने वाली वाली बात यह है कि यह लड़ाई सिर्फ मुख्य सचिव करन अवतार सिंह तक सीमित रहती है या आगे बढ़ती है। यह भी देखने वाली बात है कि चन्नी से मुख्य सचिव के व्यवहार और तृप्त राजिन्दर सिंह बाजवा के साथ चन्नी की हुई तीखी बहस के बाद दलित विधायकों के मध्य चली एकता की बात कितनी सफल होती है और क्या कांग्रेस के दलित विधायक चन्नी को अपना नेता स्वीकार कर लेंगे?
शराब का झगड़ा
आश्चर्यजनक बात यह है कि कोरोना वायरस के कारण उभरी कोविड-19 की महामारी के दिनों में मंत्रिमंडल में ठेकों पर शराब संबंधी उभरे झगड़े ने यह बात तो साबित कर दी है कि कहने को बेशक कोई इस झगड़े को पंजाब के राजस्व और पंजाब के हितों का झगड़ा कहा जाए, परन्तु वास्तव में यह निजी हितों का झगड़ा है। सभी जानते हैं कि शराब की लॉबी बहुत ताकतवर है। शराब के ठेकेदार आम तौर पर किसी न किसी राजनीतिक पार्टी के नेता के साथ जुड़े हुए हैं और कई बार तो बड़े ग्रुपों में शासक और विपक्षी गुट दोनों के लोगों की भागीदारी भी होती है। परन्तु कुछ स्थान ऐसे भी होते हैं जहां कुछ विधायकों का ठेकों के कारोबार से कोई संबंध भी नहीं होता। परन्तु आम तौर पर बदनामी उनके हिस्से में उतनी ही आती है जितनी इस बहती गंगा में हाथ धोने वालों के हिस्से में आती है। वास्तव में जो प्रभाव बन रहा है, वह तो यही है कि कथित रूप में पंजाब के मुख्य सचिव जो कर और आबकारी विभाग के भी प्रमुख थे, के बेटे पर शराब के कारोबार में शामिल होने के आरोप सामने आने के बाद आरम्भ हुआ टकराव वास्तव में आपसी हितों का टकराव है।इस संबंधी चर्चा है कि पंजाब का शराब माफिया सिर्फ पंजाब में ही नहीं, अपितु पूरे देश में फैला हुआ है। ऐसी चर्चाएं बहुत बार सुनाई देती हैं कि कुछ डिसटलरियों से शराब दूर-दराज़ के प्रदेशों में भेजने के नाम पर निकाली जाती है और वह रास्ते में बिहार जैसे राज्यों जहां शराब की बिक्री पर पाबंदी है, में खपा दी जाती है। इस मामले में कितनी सच्चाई है यह जांच का विषय है। परन्तु ऐसे समाचार तो कई बार आते रहते हैं कि नकली शराब भरने का धंधा आम चलता है। सस्ती और मिलावट वाली शराब महंगे ब्राडों की बोतलों में भरने की चर्चाएं भी आम होती रही थी। परन्तु अब तो खन्ना में नकली शराब भरने का बाकायदा बौटलिंग प्लांट ही पकड़ लिया गया। परन्तु उसके बाद जैसे कार्रवाई ठप्प ही हो गई, किसी ने पता नहीं किया कि बौटलिंग प्लांट की मशीनरी कहां से खरीदी गई। किस ने खरीदी बोतलें, ढक्कन और लेबलों की सप्लाई किस ने की। लगता है कि यह मामला भी मुख्य सचिव और मंत्रियों की लड़ाई में ही दब कर रह गया है।  हालांकि चर्चा है कि पंजाब में ऐसी नकली शराब भरने के और भी कई बोटलिंग प्लांट काम करते हो सकते हैं। परन्तु वास्तविकता क्या है, यह भी जांच का विषय ही है।
राजस्व की कमी की बात
गौरतलब है कि मंत्री यह सवाल तो उठा रहे हैं कि शराब से मिलने वाली आर्थिकता में 600 करोड़ रुपए कम होने की ज़िम्मेदारी किस की है? परन्तु इस बात का ध्यान कोई नहीं करता कि पंजाब में यह राजस्व इन सभी डिस्टलरियों और हज़ारों ठेकों के बावजूद सिर्फ 5000 करोड़ के आस-पास ही क्यों रहता है? जबकि तमिलनाडू में यही राजस्व 30 हज़ार करोड़ रुपए है। वास्तव में मार्च 2017 में उस समय के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने रिपोर्ट दी थी कि पंजाब में भी तेलंगाना और तमिलनाडू की तरह ही शराब की कार्पोरेशन बनाई जाए। उन्होंने यह भी कहा था कि पंजाब में शराब की अधिक से अधिक बेचने की निश्चित कीमत से दोगुनी से भी अधिक कीमत पर बिकती है, जिसका सीधा नुकसान सरकार को होता है। उन्होंने शायद यह भी रिपोर्ट दी थी कि पंजाब की डिस्टलरियों में से लगभग तीन चौथाई ट्रक बिना एक्साइज दिए ही निकल जाते हैं। उस समय उनकी रिपोर्ट थी कि तेलंगाना लगभग 18 हज़ार करोड़ और तमिलनाडू 26 हज़ार करोड़ रुपये का राजस्व  शराब से कमा रहा है। इसका एक कारण था कि यह राज्य शराब ठेकों द्वारा नहीं अपितु एक कार्पोरेशन द्वारा सीधा बेचते थे। हालिया ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार तमिलनाडू सरकार की शराब की कार्पोरेशन लगभग 30 हज़ार रुपए वार्षिक कमा रही है और इसमें 30 हज़ार से अधिक लोगों को नौकरियां भी मिली हुई हैं। बात स्पष्ट है कि अगर ये मंत्री पंजाब के इतने ही हितैषी हैं तो वह निजी ठेकों की नीति ही क्यों जारी रखना चाहते हैं? वह पंजाब में भी कार्पोरेशन बनाने की बात पर स्टैंड क्यों नहीं लेते। इससे पंजाब का राजस्व कई गुणा बढ़ सकता है।

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