कश्मीर में आतंकवाद के नाश के लिए सख्ती और बंदिशें ज़रूरी

देश को इस बात से संतोष हो सकता है कि हमारे सुरक्षा बलों ने कश्मीर घाटी में पांच दिनों के अंदर पांच आतंकवादियों को मार गिराया एवं एक पाकिस्तानी आतंकवादी को जिन्दा पकड़ लिया। मारे गए आतंकवादियों में हिजबुल मुज़ाहिद्दीन का सर्वोच्च कमांडर रियाज़ नाइकू तथा लश्कर-ए-तैयबा का उच्च कमांडर हैदर शामिल है। आतंकवाद की समस्त सफाई संबंधी अभियान ऑपरेशन ऑल आउट के दृष्टि से यह बड़ी सफलता है। रियाज नायकू के सिर पर 12 लाख का ईनाम होना ही बताता है कि वह कितना बड़ा आतंकवादी था। बुरहान वानी के बाद हिज़्बुल में जो आतंकवादी उभरे, इस समय वह उनमें वह शीर्ष पर था, लेकिन दूसरी ओर अगर हम इससे तुलना करें कि दो मुठभेड़ों में आठ जवान शहीद हो गए तथा 10 से ज्यादा घायल हुए तो सफलता का उत्साह कमज़ोर हो जाता है। लगातार पांच-छ: दिनों तक कश्मीर घाटी में अलग-अलग जगहों पर आतंकवादियों के हमले एवं मुठभेड़ यह बताने के लिए पर्याप्त है कि स्थिति फिर से बिगड़ रही है। वस्तुत: जब पूरा देश यह मानकर चल रहा था कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के दिन लद गए, इन हमलों ने यह सोचने को विवश कर दिया है कि क्या आतंकवाद फिर से सिर उठा रहा है।हम मान सकते हैं कि हंदवाड़ा में जवानों के बलिदान का बदला ले लिया गया है। 1 अप्रैल को चार आतंकवादियों के छिपे होने की सूचना मिलने पर सेना की राष्ट्रीय राइफल ने पुलिस के साथ मिलकर संयुक्त ऑपरेशन शुरू किया। अलग-अलग टीमें आतंकवादियों को ढूंढ रही थीं। दूसरे दिन दोपहर जब 21 राष्ट्रीय राइफल के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल आशुतोष शर्मा के नेतृत्व में उनकी टीम तलाश कर कर रही टीमों को कॉर्डिनेट कर रही थी, उन्हें एक घर में आतंकवादियों के होने तथा कुछ लोगों को बंधक बनाए जाने की जानकारी मिली। इन लोगों ने बंधकों को बाहर निकाल लिया लेकिन छिपे हुए आतंकवादियों की ताबड़तोड़ गोलीबारी का शिकार हो गए। इनका संपर्क डिवाइस क्षतिग्रस्त हो गया था, लेकिन जिस दूसरी टीम ने घर को घेर रखा था, उसे कर्नल के मोबाइल पर फोन करने पर ट्रेजिडी का अंदाजा हो गया था क्योंकि दो बार उस फोन से सलाम आलेकुम की आवाज़ आई। राष्ट्रीय राइफल्स सेना का वह हिस्सा है, जो कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियानों की अगुआई करती है। कमांडिंग ऑफिसर को खोना विरल घटनाओं में शामिल होता है। हमने जम्मू-कश्मीर में पांच साल बाद आतंकवादी मुठभेड़ में कमांडिंग ऑफिसर खोया। 2015 में कुपवाड़ा के हाजीनाका जंगल में आतंकवादी मुठभेड़ में 41 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल संतोष महाडिक शहीद हुए थे। 27 जनवरी 2015 को 42 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल एमएन राय कश्मीर के त्राल में मुठभेड़ के दौरान शहीद हुए थे। इससे पहले वर्ष 2000 में आतंकवादियों के बारूदी सुरंग विस्फोट में 21 आरआर के कमांडिंग ऑफिसर कर्नल रजिंदर चौहान ब्रिगेडियर बीएस शेरगिल और पांच जवानों के साथ शहीद हुए थे। इन घटनाओं का गहराई से विश्लेषण ज़रूरी है। पहली घटना में माना जा रहा है कि आतंकवादी पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से घुसपैठ करने वाले एक समूह को लेने के लिए हंदवाड़ा पहुंचे थे। यह ऑपरेशन कुपवाड़ा जिले के राजवार जंगल क्षत्र में हुआ। जब आतंकवादी घुसपैठ कर के आते हैं तो इस क्षेत्र में उन्हें अंदर मौजूद आतंकवादी रिसीव करते हैं। इसलिए ज्यादा संभव है कि ये चारों आतंकवादी घुसपैठ कर आने वाले आतंकवादी को लेने आए हों। इसका मतलब यह हुआ कि दूसरे आतंकवादी भी वहां होंगे जो घुसपैठ कर आए। उनके लिए सर्च ऑपरेशन चल रहा था और इसी बीच दूसरा हमला हो गया। अप्रैल-मई में पाकिस्तान सबसे ज्यादा घुसपैठ कराने की कोशिशें करता है, क्योंकि इस मौसम में घुसपैठ रोधी बाधा प्रणाली को ढंकने वाली बर्फ  पिघलने लगती है। इसके लिए पाकिस्तान युद्धविराम का उल्लंघन कर गोलीबारी की आड़ देता है जिसके कारण आतंकवादी घुसपैठ करने में सफल होते हैं। साफ  है कि दुनिया भले कोरोना प्रकोप से बाहर आने के लिए संघर्ष कर रही हो, लेकिन पाकिस्तान, कश्मीर में आतंकवाद को निर्यात करने से बाज नहीं आ रहा है। यह स्वीकारने में आपत्ति भी नहीं है कि 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 हटाने के पूर्व उठाए गए ऐतिहासिक सुरक्षा कदमों के कारण आतंकवादी घटनाएं जिस तरह थम गई थीं, उस स्थिति में फिर गिरावट आई है। उस कदम के बाद पाकिस्तान के रवैये से साफ  था कि वह हर हाल में कश्मीर को जलाने की जितनी कोशिश कर सकता है करेगा। इसलिए जम्मू कश्मीर विशेषकर कश्मीर घाटी में लगाई गई बंदिशों को जारी रखा जाना आवश्यक था।   मोबाइल, नेट आदि। सुविधाओं का लाभ आतंकवादी और सीमा पार उनके प्रायोजक उठाते हैं। भारत के पास इससे बड़ा अवसर जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापना का नहीं हो सकता। इस समय मोबाइल एवं इंटरनेट बंद करना पड़ा है, क्योंकि आतंकवादियों से मुठभेड़ के बाद भारत विरोधी शक्तियों ने पहले की तरह लोगों को भड़काना शुरू कर दिया था और नाइकू के समर्थन में लोगों ने सुरक्षा बलों के वाहनों पर हमले भी किये। इसलिए आतंकवाद का नाश करने के लिए बिना भावुकता में आए तथा दबावों से अप्रभावित रहते हुए सरकार को फिर से वे सारी आवश्यक बंदिशें लागू करनी चाहिएं जिनका लाभ आतंकवादी, उनके समर्थक और सीमा पार के उनके प्रायोजक उठाते हैं। इसके बाद आता है कूटनीति और सीमा पार कार्रवाई का। भारत गिलगित, बाल्तिस्तान सहित पाक अधिकृत कश्मीर को खाली करने की मांग सघन कूटनीति के रूप में जारी रखे। सर्जिकल स्ट्राइक और वायुयान स्ट्राइक जैसे इतिहास का अध्याय लिखने की दो बड़ी कार्रवाइयां हम कर चुके हैं। प्रधानमंत्री ने कहा है कि 8 जवानों के बलिदान को हम नहीं भूलेंगे। हो सकता है आने वाले समय में आतंकवाद लक्षित कुछ कार्रवाई हो। कोरोना संघर्ष  हमारी संलग्नता का इस तरह का दुष्टतापूर्ण लाभ उठाने की अनुमति नहीं दी जा सकती। किंतु इसके लिए आंतरिक स्थिति को संभालना भी बहुत ज़रूरी है। जिस तरह की त्रुटिविहीन सुरक्षा नीति अपनाकर पिछले वर्ष स्थिति को संभाला गया था, उसकी पुनरावृत्ति करनी होगी। मानवाधिकार के नाम पर अलगाववादियों तथा वहां के परम्परागत नेताओं के समर्थक तथाकथित लेफ्ट लिबरलों को छोड़ पूरा देश कश्मीर मामले में सरकार के साथ है। 

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