कोरोना संकट ने दिया देश को आत्मनिर्भर बनने का अवसर 

राष्ट्र के नाम संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ को नई गति देने के लिए 20 लाख करोड़ के आर्थिक पैकेज का ऐलान करते हुए कहा कि कोरोना संकट ने देश को आत्मनिर्भर बनने का एक बड़ा अवसर दिया है। देश में जब कोरोना संकट शुरू हुआ, तब भारत में एक भी पीपीई किट नहीं बनती थी। यही नहीं, एन-95 मास्क का भी नाममात्र उत्पादन होता था। आज भारत में हर दिन दो लाख पीपीई किट और दो लाख एन-95 मास्क बनाए जा रहे हैं। आपदा ने भारत को आगे बढ़ने का एक मौका दिया है। वास्तव में साल 1991 में आर्थिक सुधारों के बाद पहली बार देश के किसी पीएम ने ‘लोकल’ स्तर पर मैन्यूफैक्चरिंग की इतनी जोरदार तरीके से वकालत की है और इसे आम जनजीवन के मूल मंत्र के तौर पर स्थापित करने का नारा दिया है। पिछले दिनों भी पीएम मोदी ने देश के सरपंचों को भी वीडियो कान्फ्रैंसिंग के जरिये संबोधित करते हुए कहा था कि आत्मनिर्भरता मामूली नहीं बल्कि बहुत ही अर्थपूर्ण शब्द है। भारत में यह विचार सदियों से रहा है लेकिन आज बदलती परिस्थितियों ने हमें फिर से याद दिलाया है कि आत्मनिर्भर बनो। इसके अतिरिक्त अब और कोई रास्ता नहीं है। वास्तव में कोरोना संकट से बाद की दुनिया में सभी बड़े देश घरेलू उत्पादन को मज़बूत करने पर ध्यान देंगे और ग्लोबलाइजेशन की जगह अंदरूनी मार्केट को बढ़ावा देंगे। इसके अलावा बड़े देश अपनी कंपनियों को बाहर की कंपनियों के मुकाबले संरक्षण देंगे। विश्व अर्थव्यवस्था में एक चक्र चलता है। जब कुछ कठिनाई आती है तो विकास धीमा हो जाता है। तब इसे सुस्ती कहते हैं। इस सुस्ती से देश और दुनिया जल्दी ही बाहर निकल जाएगी लेकिन कोरोना संकट ने भारत को कई सबक तो दे ही दिये हैं। मसलन अब भारत के लिए शासन, प्रशासन और समाज के सहयोग से आत्मनिर्भरता और स्वदेशी ज़रूरी है। साथ ही अब हमें गुणवत्ता वाले स्वदेशी उत्पाद बनाने पर जोर देना होगा।प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत की भव्य इमारत पांच खम्भों पर खड़ी होगी। पहला खम्भा अर्थव्यवस्था, दूसरा इन्फ्रा-स्ट्रक्चर, तीसरा हमारा सिस्टम होगा जो 21वीं सदी के सपनों को साकार करने वाली तकनीकों पर आधारित होगा। चौथा खम्भा हमारी डिमोग्राफी होगी जो हमारी ताकत है। पांचवां खम्भा डिमांड होगी जो हमारी अर्थव्यवस्था में सप्लाई चेन को मजबूती देगा। हम आपूर्ति की उस व्यवस्था को मजबूत करेंगे जिसमें देश की मिट्टी की महक और मजदूरों के पसीने की खुशबू होगी। पूरी दुनिया में छाये कोरोना संकट के बीच अब यह बात हमें समझ जानी चाहिए कि स्वदेशी तकनीक और आत्मनिर्भरता का कोई विकल्प नहीं है। कोरोना संकट ने भारतीय अर्थव्यवस्था को भी नुकसान पहुंचाया है। ऐसे में अब समय आ गया है जब भारत हर क्षेत्र में स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करे क्योंकि अभी भी भारत अपनी रक्षा जरूरतों का लगभग 60 प्रतिशत सामान आयात करता है। साथ ही मैन्यूफैक्चरिंग, इलेक्ट्रॉनिक सहित कई क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर आयात होता है। देश में प्रौद्योगिकी के स्तर पर कोरोना संकट के बाद अब बदले हुए भारत की कल्पना करनी होगी जिसमें  हर क्षेत्र में स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकसित करते हुए देश को मैन्यूफैक्चरिंग का हब बनाना होगा। कोरोना संकट की वजह से दुनिया के अधिकांश देश चीन के खिलाफ  हो गये  और चीन से अपनी मैन्यूफैक्चरिंग हटाना चाहते हैं। ऐसे में भारत के लिए यह एक बड़ा अवसर है कि वो इन कंपनियों को भारत में काम करने का मौका दे और साथ में अपनी खुद की स्वदेशी तकनीक और प्रौद्योगिकी विकसित करे।पिछले कुछ समय में भारत ने अपनी उन्नत स्वदेशी प्रौद्योगिकी का परिचय देते हुए अंतरिक्ष के क्षेत्र में सफलता के झंडे गाड़ दिए हैं। देश को यही ज़रूरत दूसरे क्षेत्रों के लिए भी है जब हम स्वदेशी तकनीक पर काम कर सकें। हम स्वदेशी प्रौद्योगिकी का प्रयोग करके रक्षा और अंतरिक्ष के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं। लेकिन ये कामयाबियाँ अभी मंजिल तक पहुँचने का पड़ाव भर हैं और हमें काफी बड़ा रास्ता तय करते हुए विश्व को यह दिखाना है कि भारत में प्रतिभा और क्षमता की कोई कमी नहीं है । टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ने के बाद भी भारत दुनिया के कई देशों से पिछड़ा हुआ है और उसे  अभी बहुत से लक्ष्य तय करने होंगे। वर्तमान में हम अपनी जरूरतों का लगभग 60 फीसदी हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर आयात कर रहे हैं। दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सेना और लगभग तीन लाख करोड़ रुपये के सालाना रक्षा बजट के बावजूद यहां करीब 60 फीसदी सैन्य उपकरण आयातित होते हैं।भारत ने परमाणु शक्ति बनकर नि:संदेह दुनिया में आज अपनी धाक जमा ली है लेकिन देश अब भी कई देशों से कई मोर्चों पर पिछड़ा हुआ है । तकनीक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत को अभी बहुत काम करने हैं। अमरीका, चीन, जापान जैसे विकसित देशों की  व्यवस्था स्थापित करने के लिए बहुत मेहनत करनी होगी। मसलन चीन ने राडार की पकड़  में न आने वाला स्टेल्थ विमान विकसित कर लिया है जो अब तक केवल अमरीका के पास था। भारत को विश्व शक्ति बनने के लिये दूसरों से श्रेष्ठ हथियार प्रौद्योगिकी भी विकसित करनी पड़ेगी ।अंतरिक्ष के क्षेत्र में हालिया कई कामयाबियां देश के लिये काफी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इनमें स्वदेशी तकनीक और उपकरणों का प्रयोग किया गया है। ये कामयाबियाँ देश में स्वदेशी तकनीक  के साथ साथ आत्मनिर्भरता की तरफ  बढ़ते कदम की भी पुष्टि करतीं हैं। इससे पता चलता है कि अगर सकारात्मक सोच और ठोस रणनीति के साथ हम लगातार अपनी प्रौद्योगीकीय जरूरतों को पूरा करने की दिशा में आगे कदम बढ़ाते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब हम खुद अपने नीति नियंता बन जाएंगे और दूसरे देशों पर किसी तकनीक, हथियार और उपकरण  के लिए निर्भर नहीं रहना पड़ेगा ।