...अब आने वाली है परीक्षा की घड़ी

इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय जब देश के अधिकांश हिस्सों में लॉकडाउन-4 में दी गईं तमाम ढीलों के कारण बाज़ारों और सड़कों में रौनक लौटती दिख रही है, ठीक उसी समय इन्हीं रौनकों के बीच माहौल में कोरोना की बढ़ती जकड़बंदी की दहशत भी साफ  तौर पर हर तरफ  महसूस की जा रही है। 18 मई 2020 को सुबह 10:30 बजे तक देश में कोरोना से संक्रमितों की संख्या बढ़कर 96,169 हो गई थी और अब हर मिनट इसमें सैकड़ों की तादाद में इज़ाफा हो रहा था। पिछले एक दिन में ही 5242 कोरोना के नये मामले सामने आये हैं और इसी दौरान 197 लोगों की मौत भी हुई है। यह कोरोना के संक्रमण शुरु होने के बाद से अब तक का सबसे भयावह आंकड़ा है। हालांकि इसी दौरान यह भी महत्वपूर्ण खबर है कि कोरोना संक्रमितों के ठीक होने की संख्या बढ़कर 36,824 हो गई है यानी कोरोना के कुल संक्रमितों में से इतने लोग या तो सही होकर अपने घर चले गये हैं या सही होने के बाद घर जाने की प्रतीक्षा में हैं।निश्चित रूप से यह बहुत भयानक और डरावना मंजर है, खास तौर पर इसलिए क्योंकि लॉकडाउन की अवधि 54 दिन बीत चुकी है। आज यह लॉकडाउन के चौथे चरण का पहला और कुल 55वां दिन है। देश बंदी के इतने दिन गुजर जाने के बाद भी अगर कोरोना मरीजों की संख्या में किसी तरह की कमी आने की बजाय लगातार बढ़ोतरी हो रही है तो यह बात दो वजहों से चिंता बढ़ाने वाली है। पहली तो यह कि लॉकडाउन की अवधि में हम लोगों से कोई गंभीर चूक हुई है, जिससे कोरोना किसी तरह कमज़ोर होने की बजाय उल्टे लगता है, मजबूत हो गया है। अब तक के बंद का इसकी सेहत पर कोई फर्क नहीं दिख रहा। दूसरी जो बात चिंता बढ़ाने वाली है, वह यह है कि इन 55 दिनों के लॉकडाउन के चलते देश की समूची अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई है। तमाम अलग-अलग संस्थानों की तरफ  से जो आंकड़े बिगड़ती हुई अर्थव्यवस्था के आये हैं या आ रहे हैं, उनका साझा निष्कर्ष यही है कि देश में अब तक करीब 12 करोड़ से ज्यादा लोग या तो पूरी तरह से बेरोज़गारी या अर्धबेरोज़गारी के चक्रव्यूह में फंस गये हैं।यह भी लॉकडाउन के संबंध में बड़ी विफलता की तरह ही है क्योंकि लॉकडाउन से कोरोना के संक्रमण में तो अपेक्षित कमी आयी नहीं, लेकिन इसके चलते हुए देशव्यापी लॉकडाउन के कारण अर्थव्यवस्था तहस नहस हो गई है। अर्थव्यवस्था में इसका कितना बुरा असर पड़ा है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आशावान से आशावान अर्थशास्त्री भी यह दावा करते हुए हिचकिचाता है कि कोरोना ने अर्थव्यवस्था की जिस अंदाज़ में चूलें हिलायी हैं, उससे अगले एक साल में भी अर्थव्यवस्था को फिर से मज़बूती प्रदान नहीं की जा सकती है। कई अर्थशास्त्री तो मानते हैं कि हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था को कोरोना से पहले की स्थिति में पहुंचने में 5 साल से भी ज्यादा का समय लग जायेगा जबकि कुछ का मानना है कि कोरोना के चलते भारत आर्थिक दौर में 10 साल पिछड़ गया है।  हालांकि आंकड़े  हमेशा सच नहीं बोला करते, लेकिन अगर आंकड़ों को अपने अनुकूल माहौल मिल जाए तो वे सच से भी ज्यादा मारक हो जाते हैं। फिलहाल स्थिति यही है। कोरोना ने जितना असर डाला है, वह तो है ही, कोरोना की दहशत और भविष्य को लेकर निराशाजनक सोच और चारों तरफ  नज़र आ रही रूपरेखा ने अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क कर दिया है। देश में करीब 55 करोड़ लोगों की तादाद ऐसी है जो कामकाजी है यानी जो हिंदुस्तान की वर्कफोर्स का हिस्सा हैं। इनमें से करीब 44 करोड़ लोगों को छोटे-छोटे उद्योग धंधों, कुटीर उद्योगों और स्वरोजगार से काम मिला हुआ था। लेकिन यह पहला ऐसा मौका है जब एक साथ ये सभी क्षेत्र कोरोना के कहर से तहस नहस हो गये हैं। कोरोना के कहर में सबसे ज्यादा देखा जाए तो दिहाड़ी मजदूरों के बाद यही एक ऐसा वर्ग है जो प्रभावित हुआ है। भारत सरकार ने जो 20 लाख करोड़ रुपये की राहत योजनाओं की घोषणा की है, उन योजनाओं से भी इस स्वरोजगार करने वाले को कोई विशेष फायदा नहीं होगा क्योंकि सरकार की जितनी भी योजनाएं हैं, वे कर्ज लेने वाली योजनाएं हैं। नि:संदेह इनमें कुछ तात्कालिक छूटें हैं, लेकिन सब कुछ के बावजूद ये योजनाएं अंतत: कर्ज देने वाली योजनाएं ही हैं और जब बाज़ार में पहले से ही ज़बरदस्त मंदी छायी हुई हो, माल बिक न रहा हो और सेवाओं की पूछ न हो तो भला कोई स्वरोजगार करने वाला व्यक्ति किस भरोसे से ब्याज पर कर्ज उठा सकता है। इन तमाम बातों को गंभीरता से देखें तो सही मायनों में कोरोना के कहर का सबसे भयानक समय अब आया है। ऐसे में हम सब देशवासियों की चिंता ही नहीं, जिम्मेदारी भी अब तक में सबसे ज्यादा बढ़ जाती है। अब जो दो हफ्तों का लॉकडाउन का चौथा चरण लागू हुआ है, अगर इस दौरान हमने सजगता से सही मायनों में इसे सफल नहीं बनाया तो न सिर्फ  इसका हमें व्यक्तिगत रूप से खमियाजा भुगतना पड़ेगा बल्कि देश पर भी इसका बहुत बुरा असर होगा। चूंकि कोरोना लगता है, अब अपने पीक की तरफ  बढ़ चला है और दुनियाभर के विशेषज्ञ यही कह रहे हैं कि जब कोरोना का संक्रमण पीक पर हो तो उस समय इससे संक्रमित होने वाले लोगों की तादाद कुछ भी हो सकती है। ऐसे में अगर अगले दो हफ्तों को अब तक के इम्तिहान की सबसे कठिन घड़ियां माना जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हम सबको सजग रहकर अगले दो हफ्तों के लॉकडाउन को सफल  बनाना है और जो गलतियां पिछले तीन बार में हमने की हैं, उन्हें नहीं दोहराना है।