आबादी के बढ़ते बोझ से जल अकाल की तरफ  बढ़ता देश

भले इन दिनों देश में छाये कोरोना संकट के चलते, जल संकट मीडिया की सुर्खियों में जगह न बना पा रहा हो, मगर सच्चाई यही है कि देश का पश्चिमी और दक्षिणी हिस्सा विशेषकर महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, ओडिशा और मध्यप्रदेश के बड़े हिस्से में जल संकट कोरोना की तरह ही दैनिक जीवन के लिए बड़ा संकट बना हुआ है। लेकिन यह कोई इस साल या पिछले किसी साल का अचानक आया संकट नहीं है बल्कि अब जल संकट, पिछले एक दशक से भारत का स्थायी संकट बन चुका है। यह कम और मझोले स्तर पर तो देश के करीब दो तिहाई भू-भाग में पूरे साल बना रहता है,लेकिन फरवरी खत्म होकर मार्च माह के मध्य तक पहुंचते-पहुंचते यह देश के काफी बड़े हिस्से में भयावह संकट बन जाता है।इसकी एक बड़ी वजह जल संसाधन पर आबादी का बढ़ता बोझ भी है। भारत के पास धरती की समस्त भूमि का सिर्फ  2.4 प्रतिशत ही है जबकि हमारे खाते में विश्व की 16.7 फीसदी जनसंख्या है। इससे साफ  है कि हमारे सभी तरह के संसाधनों पर जिस तरह आबादी का दबाव है,वही दबाव जल संसाधन पर भी है। जल संसाधन पर भारी दबाव के कारण ही हम भूमि जल का दोहन तय अनुपात से कई सौ प्रतिशत ज्यादा करते हैं। हम तय सीमा से भूमि जल का कितना ज्यादा दोहन करते हैं इसका अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि भयंकर भू-जल दोहन के कारण 2007-2017 के बीच भू-जल स्तर में 61 प्रतिशत तक की कमी आ चुकी है। अब देश के 40 प्रतिशत तक भू-भाग में  सूखे का संकट हर साल रहता है। एक अध्ययन के  मुताबिक साल 2030 तक बढ़ती आबादी के कारण देश में पानी की मांग अभी हो रही आपूर्ति के मुकाबले दोगुनी हो जाएगी।पेयजल को लेकर पूरी दुनिया में जो संकट मंडरा रहा है, भारत में वह लगातार बढ़ती आबादी के कारण ज्यादा गहरा हो रहा है। भारत में परिवारों की सुरक्षित पेयजल तक पहुंच,पानी की मांग एवं आपूर्ति में जो अंतर पैदा हो रहा है उसके कारण 2025 तक भारत विश्व के सर्वाधिक जल संकट वाला देश बन सकता है। साथ ही यह भी अनुमान है कि अगले कुछ सालों में विदेशी कंपनियां भारत में 13 अरब डॉलर  से ज्यादा का निवेश कर सकती हैं। जल क्षेत्र में एक प्रमुख परामर्श कंपनी ईए वाटर के एक अध्ययन के अनुसार, ‘भारत में पानी की मांग सभी मौजूदा स्रोतों से होने वाली आपूर्ति के मुकाबले ऊपर चले जाने की आशंका है और देश 2025 तक जल संकट वाला देश बन सकता है।’कम्पनी के अध्ययन के मुताबिक ‘परिवार की आय बढ़ने तथा सेवा तथा उद्योग क्षेत्र से योगदान बढ़ने के कारण घरेलू और औद्योगिक क्षेत्रों में पानी की मांग में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है।’ देश की सिंचाई का करीब 70 प्रतिशत तथा घरेलू जल खपत का 80 प्रतिशत हिस्सा भूमिगत जल से पूरा होता है, जिसका स्तर तेजी से घट रहा है। हालांकि एक तरफ  जहां यह आसन्न संकट है वहीं कारपोरेट क्षेत्र इसे बड़े अवसर के रूप में भी देख रहा है यही कारण है कि इस अध्ययन में यह भी कहा गया है कि इस संकट की आशंका के चलते कनाडा, इस्राइल, जर्मनी, इटली, अमेरिका, चीन और बैल्जियम की कई कंपनियां भारत के घरेलू जल क्षेत्र में 13 अरब डॉलर मूल्य के निवेश का अवसर देख रही हैं।देश में जल आपूर्ति और दूषित जल प्रबंधन के लिए बुनियादी ढांचे के विकास समेत विभिन्न संबंधित क्षेत्रों में काफी अवसर हैं। पारंपरिक रूप से भारत एक कृषि प्रधान अर्थ-व्यवस्था है और इसकी जनसंख्या का लगभग दो-तिहाई भाग कृषि पर निर्भर है। इसीलिए, पंचवर्षीय योजनाओं में, कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए सिंचाई के विकास को एक अति उच्च प्राथमिकता प्रदान की गई है और बहुद्देश्यीय नदी घाटी रियोजनाएं जैसे- भाखड़ा नांगल, हीराकुड, दामोदर घाटी, नागार्जुन सागर, इंदिरा गांधी नहर परियोजना आदि शुरू की गई हैं। वास्तव में, भारत की वर्तमान में जल की मांग, सिंचाई की आवश्यकताओं के लिए सबसे अधिक है। भारत में वह जल चाहे धरातलीय हो यानी धरती के ऊपर का या फिर भूमि जल यानी धरती के नीचे भूमि में मौजूद। इन दोनों ही किस्म के जलों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल कृषि के लिए ही होता है। धरातलीय जल का लगभग 89 प्रतिशत और भूमि जल का 92 प्रतिशत तक कृषि में इस्तेमाल होता है। औद्योगिक सैक्टर में, भूमि जल का केवल 2 प्रतिशत और धरातलीय जल का 5 प्रतिशत भाग ही उपयोग में लाया जाता है। घरेलू सैक्टर में धरातलीय जल का उपयोग भूमि जल की तुलना में अधिक है। भविष्य में विकास के साथ-साथ देश में औद्योगिक और घरेलू सैक्टरों में जल का उपयोग कई गुना ज्यादा बढ़ जाने की आशंका है। पानी की कीमत का अभी हम अंदाजा नहीं लगा पा रहे। अगर सब कुछ ऐसा ही रहा और भारत के लोगों ने पानी का मोल न समझा तो वर्ष 2025 तक देश में जल की समस्या बहुत विकराल रूप ले सकती है। देश में पानी की उपलब्धता की खराब होती स्थिति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस साल यानी 2020 के अंत तक पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति एक हजार क्यूबिक मीटर से भी कम रह जाएगी। तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए लड़े जाने की आशंकाओं के बीच वाकई आज भारत में जलस्रोतों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है नतीजतन कई राज्य पानी की गंभीर समस्या से जूझ रहे हैं। पानी के इस्तेमाल के प्रति लोगों की लापरवाही अगर बरकरार रही तो भविष्य में इसके गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। विश्व बैंक के एक ताजा अध्ययन में कहा गया है कि 10 लाख से ज्यादा आबादी वाले 27 एशियाई शहरों में चेन्नई और दिल्ली पानी की उपलब्धता के मामले में सबसे खराब स्थिति वाले महानगर हैं। इस फेहरिस्त में मुम्बई दूसरे स्थान पर जबकि कोलकाता चौथी पायदान पर है। साफ  पानी न मिलने के कारण हर साल भारत में दो लाख लोग जान गंवा रहे हैं। देश के करीब 60 करोड़ लोग पीने के पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे हैं। वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि बढ़ती आबादी के कारण 2030 तक भारत में पानी की मांग उपलब्धता से दोगुनी हो जाएगी। तब इसका असर भारत के जीडीपी पर पड़ेगा। माना जा रहा है कि पानी की किल्लत के कारण तब भारत की जीडीपी में 6 प्रतिशत तक की कमी आने की आशंका है।

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