क्या कृषि फसलों के मंडीकरण संबंधी कानून में संशोधन करना सही है ?

केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले दिनों संकेत देकर इशारा किया था कि केन्द्र सरकार एक कानून बनाना चाहती है जिस के द्वारा  राज्यों की किसानी फसलों के मंडीकरण संबंधी कानून एग्रीकल्चरल प्रड्यूस मार्किट कमेटी (ए.पी.एम.सी.) कानून में संशोधन ला कर मंडी सिस्टम में सुधार लाया जाए। इसके साथ ही केन्द्र द्वारा बड़ा पुराना एसैंशियल कमोडिटीज़ एक्ट (ई.सी.ए.) भी रद्द कर दिया जाए ताकि कृषि पदार्थों की बिक्री में कोई विघ्न न पड़े। वैसे तो कृषि राज्य सरकारों का विषय है परंतु इस से ज़ाहिर है कि केन्द्र सरकार भी मंडी प्रणाली में सुधार लाने बारे कानून बना कर राज्यों के मंडी सिस्टम में सुधार लाने की इच्छा रखती है। केन्द्र सरकार का ऐसा करने का उद्देश्य यही है कि किसान का शोषण न हो और वह किसी किस्म की लूट से बचा रहे। अपना उत्पादन जहां चाहे, जिस को चाहे, जिस तरह चाहे वह अपने मुफाद को मुख्य रखते हुए बेच सके। इस समय कई राज्यों में किसान अपना उत्पादन मंडियों में लाइसैंसधारक व्यापारियों को ही बेच सकते हैं। 
केन्द्र ने जो एग्रीकल्चरल प्रड्यूस मार्किट कमेटी संबंधी कानूनों में संशोधन करने हेतु राज्य सरकारों को दिशा-निर्देश दिए हैं, वे सभी राज्यों में लागू नहीं हुए। ऐसे हालात में वित्त मंत्री द्वारा दिए गए इशारे के अनुसार केन्द्र सरकार मंडी प्रबंध में सुधार लाने के लिए कानून बनाने की तैयारी कर रही है। बीटी कपास इतने बड़े क्षेत्र में न बोई जाती और कपास-नरमे की खेती एवं उत्पादन में इतनी वृद्धि न होती अगर केन्द्र सरकार इस संबंधी  कदम न उठाती। इसी तरह हरित इन्कलाब न आता यदि केन्द्र सरकार मैक्सिको से गेहूं का अधिक उत्पादन देने वालीं मधरियां किस्म का बीज मंगवा कर किसानों को उपलब्ध न करती और आई.सी.ए.आर.-भरतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के द्वारा इन किस्मों के बीजों को स्थानीय वातावरण के अनुकूल बनाने संबंधी कार्यवाई न करती। यह किसानों के मुफाद में होगा कि कृषि पदार्थों की प्रोसैसिंग करने वाले व्यापारी, परचून व थोक का कार्य करने वाले तथा निर्यातक  किसानों का उत्पादन सीधा उनसे खरीद सकें। यदि वे किसानों के उत्पादन को सीधा खरीदेंगे तो किसान को लाभदायक कीमत मिलनी सुनिश्चित हो सकती है। 
कन्सोटियम ऑफ इंडियन फार्मर्स एसोसिएशन के मुख्य सलाहकार पी. चैंगल रैडी ने मांग की है कि केन्द्र एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्किट कमेटी संबंधी सुधार हेतु कानून जल्द बना कर लागू करे और दक्यानूसी एसैंशियल कमोडिटीज़  एक्ट (ई.सी.ए.) को रद्द करे। रैडी ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को भी लिखा है कि केन्द्र द्वारा कानून में यह संशोधन लाकर जल्द लागू किया जाए। जिस तरह कि केन्द्र सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में फैसले लेने में आम तौर पर देरी की जाती रही है, ऐसा इस कानून संबंधी न किया जाए क्योंकि किसानों का शोषण दूर करने हेतु यह एक बड़ा दूरअंदेशी कदम है। चैंगल रैडी ने लिखा है कि डॉ. स्वामीनाथन कमिशन की रिपोर्ट जो सन् 2007 में दी गई थी, अभी तक लागू नहीं की गई। किसानों को उत्पादन के खर्चे का 150 प्रतिशत एम.एस.पी. के माध्यम से अभी भी नहीं दिया जा रहा जबकि प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू व कश्मीर का संविधान धारा-370 तहत विशेष दर्जा एकदम खत्म कर दिया, कृषि संबंधी फैसलों में देरी क्यों?
ए.सी.ए. कानून कुछ विशेष चीज़ों के भंडार संबंधी सन् 1955 में बनाया गया था। केन्द्र द्वारा इस एक्ट के तहत नियमावली नहीं बनाई गई। नियमावली राज्य सरकारें अपने कंट्रोल आर्डरों के द्वारा बनाती हैं जैसे कि भंडारों की सीमा, डीलरों के लाइसैंस, कीमतें तय करना तथा उत्पादों की आवाजाई पर पाबंदियों आदि संबंधी। इन कंट्रोल आर्डरों के तहत राज्यों में भंडार करने वालों आदि पर छापे मारे जाते हैं, लाइसैंस रद्द किये जाते हैं और यहां तक कि दोषियों को कैद भी किया जाता है। इस कानून को रद्द करके इसमें तुरंत सुधार लाने की ज़रूरत है। एसैंशियल कमोडिटीज़ एक्ट (ई.सी.ए.) का तो मुख्य उद्देश्य कीमतों को कंट्रोल करना और उनमें स्थिरता लाना था। परंतु इस छापों का कारण बन कर सही व्यापारियों व डीलरों के लिए भी एक हौआ बन कर रहा गया है। कंट्रोल आर्डरों के तहत मुकद्दमें अदालतों में बड़े कम सफल होते हैं। इसमें सुधार लाने की ज़रूरत है।एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्किट कमेटी सिस्टम के तहत किसान अपने उत्पाद सिर्फ मंडियों में ही बेच सकते हैं। इससे मंडियों में लाइसैंसों, परमिटों व इंस्पैक्टरों की भरमार हो गई है और इन रूकावटों को खत्म करने की ज़रूरत है।
कृषि व किसान भलाई विभाग के सचिव स. काहन सिंह पन्नु कहते हैं कि केन्द्र के दिशा-निर्देशों के अनुसार पंजाब सरकार ने एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्किट कमेटी (ए.पी.एम.सी.) के कानूनों में सुधार कर लिए हैं। मंडियों का दायरा विशाल कर दिया गया है। शैलर तथा यार्डों को मंडी का रूप देकर किसानों को वहां उनकी फसल बेचने की छूट दे दी गई है और खरीददारों का दायरा भी विशाल कर दिया गया है। 
किसानों के उत्पाद के खरीददारों में मुकाबले बढ़ा कर उनकी लाभदायक कीमत दिलाना आवश्यक है परंतु मंडियों में आढ़तियों की प्रणाली को खत्म करना किसानों के पक्ष में नहीं। आढ़ती दशकों से किसानों को सेवाएं उपलब्ध करते आ रहे हैं। वे किसानों के दुख-सुख में खड़े होते हैं। जब किसानों को बैंकों से कर्ज नहीं मिलता तो आढ़तियों ने पेशगी व कर्जा देकर किसानों का व्यवसाय चालू रखा है। छोटे तथा सीमांत किसान तो विशेष करके आढ़तियों के रहम पर रहे हैं। आढ़तियों ने अपने अस्तित्व पर अब कोरोना वायरस के समय में भी मोहर लगा दी है। राज्य सरकार द्वारा इस प्रणाली को खत्म करने का फैसला लेने उपरान्त भी राज्य सरकार इस रबी की फसल में उनकी सेवाएं लेने को मजबूर हो गई। मज़दूरों की कमी तथा कोरोना वायरस के कारण आई अन्य मुश्किलों के मद्देनज़र गेहूं की खरीददारी व मंडीकरण समय पर इतनी आसानी से न कर सकती यदि आढ़ती अपनी सेवाएं उपलब्ध न करते। 
पटियाला ग्रेन डीलर्स एसोसिएशन के सचिव हरबंस लाल ने केन्द्र द्वारा लाए जा रहे सुधारों का स्वागत करते हुए कहा कि यह एम.एस.पी. व प्रोक्यूरमैंट खत्म करने का संकेत नहीं होना चाहिए।