पाकिस्तान की टिड्डा दल साज़िश ? 

हाल ही में उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सहित कई राज्य सरकारों ने जिला स्तर पर चेतावनी भेजी है कि किसी बड़े टिड्डी दल हमले से बचाव की तैयारी हेतु इस मसले पर ग्रामीणों को जागरूक किया जाए। विदित हो कि राजस्थान के थार में पिछले साल बरसात के बाद पाकिस्तान की तरफ  से टिड्डी हमले शुरू हो गए थे। अभी गर्मी शुरू होते ही भारत-पाकिस्तान की सीमा पर हजारों किलोमीटर में फैले रेगिस्तान में अंधड़ चलने लगे हैं और इस रेतीले बवंडर के साथ बह कर आ रहे टिड्डों के गिरोह भारत के लिए बड़ा संकट खड़ा कर रहे हैं। अंधड़ के साथ उड़ने से टिड्डी दल एक रात में सत्तर किलोमीटर तक सफर तय कर लेते हैं और फसलों को  पलक झपकते ही चट करने वाले इन टिड्डों के गिरोह का फैलाव कोई चार वर्ग किलोमीटर तक है। यह जहां से गुजरता है, वहां आसमान नहीं दिखता और दिन में अंधेरा छा जाता है। यह बात सामने आ रही है कि पाकिस्तान जानबूझ कर ऐसी हरकतें कर रहा है जिससे टिड्डी दल भारत में नुकसान करें।
राजस्थान सरकार के दस्तावेज बताते हैं कि मई-2019 से फरवरी 2020 तक  पाकिस्तान से आए टिड्डी दल  ने सात जिलों में कोई एक हजार करोड़ का नुकसान किया है। बाडमेर में 22 हजार हैक्टर, जेसलमेर में 75 हजार , जोधपुर में 4500 हैक्टर खेतों सहित कुल 2.25 लाख हैक्टर की खड़ी फसल यह टिड्डी दल चबा चुके हैं। टिड्डी दल का इतना बड़ा हमला आखिरी बार 1993 में यानि 26 साल पहले हुआ था। इधर 19 मई को मध्य प्रदेश के उज्जैन, आगार आदि इलाकों में खेतों पर बड़े टिड्डी दल मंडराते दिखे जिन्हें किसान फिलहाल अपने तरीके से भगा रहे हैं।
विश्व स्वास्थ संगठन ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि ये कीट एक बार इलाके में घुस गए तो इनका प्रकोप कम से कम तीन साल जरूर रहेगा । हमारी फसल और जंगलों के दुश्मन टिड्डे, वास्तव में मध्यम या बड़े आकार के वे साधारण टिड्डे (ग्रास होपर) हैं, जो हमें यदा कदा दिखलाई देते हैं । जब ये छुटपुट संख्या में होते हैं तो सामान्य रहते हैं। इसे इनकी एकाकी अवस्था कहते हैं । प्रकृति का अनुकूल वातावरण पा कर इनकी संख्या में अप्रत्याशित बढ़ौतरी हो जाती है और तब ये बेहद हानिकारक होते हैं। रेगिस्तानी टिड्डे इनकी सबसे खतरनाक प्रजाति है। इनकी पहचान पीले रंग और विशाल झुंड के कारण होती है। मादा टिड्डी का आकार नर से कुछ बड़ा होता है और यह पीछे से भारी होती है। जहां नर टिड्डा एक सेकेंड में 18 बार पंख फड़फड़ाता है,वहीं मादा की रफ्तार 16 बार होती है। गिगेरियस जाति के इस कीट के मानसून और रेत के घोरों में पनपने के आसार अधिक होते हैं ।
एक मादा हल्की नमी वाली रेतीली जमीन पर 40 से 120 अंडे देती है और इसे एक तरह के तरल पदार्थ से ढंक देती है। कुछ देर में यह तरल सूख कर कड़ा हो जाता है और इस तरह यह अंडों के रक्षा कवच का काम करता है। सात से दस दिन में अंडे पक जाते हैं । बच्चा टिड्डा पांच बार रंग बदलता है। पहले इनका रंग काला होता है, इसके बाद हल्का पीला और लाल हो जाता है। पांचवी केंचुली छूटने पर इनका रंग गुलाबी हो जाता है। पूर्ण वयस्क होने पर इनका रंग पीला हो जाता है। इस तरह हर दो तीन हफ्ते में टिड्डी दल हजारों गुणा की गति से बढ़ता जाता है।
वैसे तो भारत-पाकिस्तान के बीच टिड्डों को रोकने के समझौते हैं और इनकी मीटिंगें भी होती हैं, लेकिन इस बार साफ  लगता है कि पाकिस्तान ने भारत में टिड्डी हमले को साजिशन अंजाम दिया है। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन(एफएओ ) ने पहले से ही चेता दिया था कि इस बार टिड्डी दल हमला हो सकता है। जनवरी-2020 में पाकिस्तान के रेगिस्तानी इलाकों में इनके गुलाबी पंख फड़फड़ाने लगे थे। 
समझौते के मुताबिक तो पाकिस्तान को उसी समय रासायनिक छिड़काव कर उन्हें मार डालना चाहिए था लेकिन वह नियमित मीटिंग में झूठे वायदे करता रहा। वैसे टिड्डों के व्यवहार से अंदाज लगाया जा सकता है कि उनका प्रकोप आने वाले साल में जुलाई-अगस्त तक चरम पर होगा । यदि राजस्थान और उससे सटे पाकिस्तान सीमा पर टिड्डी दलों के भीतर घुसते ही सघन हवाई छिड़काव किया जाए, साथ ही रेत के घोरों में अंडफली नष्ट करने का काम जनता के सहयोग से शुरू किया जाए तो अच्छे मानसून का पूरा मजा लिया जा सकता है।