हरियाणा के कुछ क्षेत्रों में धान की खेती पर लगी पाबंदी

हरियाणा में सरकार द्वारा शुरू की गई ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ योजना से सरकार व किसानों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हो गई है। मुख्यमंत्री ने कुछ दिन पहले यह योजना शुरू करते समय कहा था कि प्रदेश में काफी तेज़ी से ज़मीनी पानी का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है और आने वाली पीढ़ियों के लिए पानी बचाने के लिए सरकार ने यह योजना शुरू की है। इस योजना के तहत सरकार ने प्रदेश के 19 खंडों में धान की खेती पर पाबंदी लगा दी है। सरकार का कहना है कि इन ब्लॉक्स में कोई किसान अगर द्वारा 50 प्रतिशत से ज्यादा भूमि पर धान की खेती तो बिजली, खाद व बीज वगैरा पर मिलने वाली सबसिडी से न सिर्फ वंचित होना पड़ेगा बल्कि सरकार उसके धान को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर भी नहीं खरीदेगी। इसके साथ ही प्रदेश के 26 ब्लॉक्स में पट्टे वाली पंचायती भूमि पर धान की खेती पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया है। सरकार ने यह भी पेशकश की है कि 50 प्रतिशत से ज्यादा भूमि पर धान को छोड़कर मक्का जैसी अन्य फसलों की बिजाई करने वाले को सात हज़ार रुपए प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि दी जाएगी। यह भी कहा गया है कि पंचायती ज़मीन पर धान की खेती प्रतिबंधित होने से नुकसान की भरपाई सरकार प्रोत्साहन राशि देकर करेगी। 
किसानों के समर्थन में विपक्षी दल
सरकार के इन आदेशों का विपक्षी दलों ने डटकर विरोध किया है। इन आदेशों का असर कैथल व कुरुक्षेत्र जिलों समेत धान उत्पादन करने वाले इलाके पर सबसे ज्यादा पड़ेगा। विपक्षी नेताओं ने कहा कि अगर सरकार की मंशा इन इलाकों में पानी का स्तर नीचे जाने से रोकने को लेकर होती तो सरकार इस इलाके के लिए विशेष तौर पर ज़मीनी पानी रिचार्ज करने के लिए तैयार की गई दादूपुर नलवी नहर को 400 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद बंद करने का निर्णय न लेती। सरकार के इस फैसले का कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला, नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र हुड्डा, कांग्रेस की प्रदेशाध्यक्ष कुमारी शैलजा, कांग्रेस के राज्यसभा सांसद दीपेंद्र हुड्डा से लेकर इनेलो विधायक अभय सिंह चौटाला ने जमकर विरोध किया है। इस क्षेत्र के जजपा विधायकों शाहाबाद के रामकरण काला और गुहला के ईश्वर सिंह ने भी सरकार की इस योजना को सही न बताते हुए किसानों के हित में इस फैसले को वापस लेने की मांग की है। इस फैसले का भारतीय किसान यूनियन ने भी विरोध किया है। विपक्षी दलों का यह भी कहना है कि कोरोना महामारी के समय सरकार को कोई नया प्रयोग करने की बजाय किसानों को पहले की तरह धान की परम्परागत खेती करने की इजाजत देनी चाहिए और भूमि का जल स्तर बनाए रखने के लिए दादूपुर नलवी रिचार्ज नहर परियोजना को लागू करना चाहिए। 
गत वर्ष की योजना की दशा
पिछले साल भी सरकार ने धान की फसल वाली जगह पर मक्का पैदा करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए ‘जल ही जीवन’ नाम से एक योजना शुरू की थी। उस समय सरकार ने किसानों को धान की जगह मक्का की खेती करने के लिए आकर्षित करने के लिए 2 हज़ार रुपए प्रति एकड़ नकद, 766 रुपए प्रति एकड़ बीमा प्रीमियम और हाई ब्रीड सीड देने का वायदा किया था। किसान संगठनों व विपक्षी नेताओं का आरोप है कि पिछले साल जिन किसानों ने इस योजना को चुना था, उन्हें न तो नकद प्रोत्साहन राशि दी गई और न ही सरकार ने अपना बाकी वायदा निभाया। विपक्ष ने सरकार द्वारा कृषि ट्यूबवैलों में 50 बीएचपी की मोटरों के कनैक्शन काटने के निर्णय का भी विरोध किया है। उनका कहना है कि एक तरफ हज़ारों किसान ट्यूबवैल कनैक्शन के इंतजार मेें सालों से बैठे हुए हैं, वहीं पहले से चल रहे कनैक्शन काटने के आदेश देकर सरकार किसानों को बर्बाद करने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने तो सरकार के इस फैसले के खिलाफ व्यापक स्तर पर न सिर्फ अभियान छेड़ रखा है बल्कि सरकार की निरंतर घेराबंदी भी कर रहे हैं। 
गेहूं व धान ही हैं नकदी फसलें
विपक्षी नेताओं व किसान संगठनों का आरोप है कि हरियाणा में गेहूं व धान दोनों ही नकदी फसलें मानी जाती हैं और इन फसलों की पैदावार को बेचने में किसान को कोई दिक्कत नहीं आती। उनका यह भी कहना है कि सरकार ने बाकी फसलों की खरीद के लिए अभी तक कोई ऐसा सिस्टम तैयार नहीं किया जिससे किसानों को उनकी फसलों का लाभकारी मूल्य मिल सके और उनकी फसलें बाजार में आते ही हाथों-हाथ बिक सकें। उनका कहना है कि किसान को धान की खेती पर प्रति एकड़ जो आमदन होती है, वह अन्य फसलों में नहीं होती इसलिए किसान मक्का जैसी अन्य फसलों के मुकाबले धान की बिजाई को प्राथमिकता देता है। इस मुद्दे को लेकर धीरे-धीरे सरकार बनाम विपक्षी नेताओं औैर किसान संगठनों में टकराव की स्थिति पैदा होती जा रही है। यह मामला आगे क्या रुख अपनाएगा, यह तो समय बताएगा लेकिन एक बात साफ है कि कोरोना महामारी के समय सरकार के इन आदेशों ने किसानों के सामने संकट की स्थिति पैदा कर दी है। 
विधायकों के सम्मान का मामला
हरियाणा विधानसभा के स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने प्रदेश के विधायकों से दो दिन में 4 अलग-अलग वीडियो कांफ्रैंसिंग के जरिए बैठक कर कोरोना महामारी के समय उनसे हालात का जायज़ा लिया और विधानसभा की विभिन्न कमेटियों के गठन को लेकर भी सुझाव मांगे। स्पीकर के साथ बैठक में ज्यादातर विधायकों ने इस बात पर अपनी पीड़ा व्यक्त की कि अधिकारी उनकी बात सुनना व जायज़ काम करना तो दूर, उनका फोन तक नहीं उठाते। उनका यह भी कहना था कि चाहे विधायकों का दर्जा प्रोटोकॉल में मुख्य सचिव से ऊपर है और सरकार द्वारा भी अधिकारियों को कई बार लिखित आदेश दिए जा चुके हैं, इसके बावजूद अधिकारी विधायकों को मान-सम्मान देना तो दूर, उनकी बात भी नहीं सुनते। स्पीकर ज्ञानचंद गुप्ता ने विधायकों से बातचीत करने के बाद पूरा मामला मुख्यमंत्री मनोहर लाल के नोटिस में लाने का न सिर्फ भरोसा दिलाया बल्कि उन्हाेंने मुख्यमंत्री को विधायकों की पीड़ा से अवगत भी करवाया।
 विधायकों का मामला मुख्यमंत्री के सामने आने के बाद मुख्यमंत्री ने अपने प्रधान सचिव राजेश खुल्लर की जिम्मेदारी लगाई कि वह मुख्य सचिव की ओर से फील्ड के संबंधित अधिकारियों को इस बारे जरूरी दिशा निर्देश जारी करवाएं ताकि निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों को पूरा मान-सम्मान मिल सके। अब इस मामले में आगामी कार्यवाही क्या होती है और उस कार्यवाही का फील्ड के अधिकारियों पर कितना असर पड़ता है, यह तो आने वाला समय ही बताएगा, लेकिन एक बात साफ है कि हरियाणा के ज्यादातर विधायक फील्ड के अधिकारियों के रवैये से नाखुश हैं।