भारत को  दिशा-दर्शक बनाए जाने का संकल्प 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा राष्ट्र के लिए घोषित किये गये पूरे पैकेज को सरसरी तौर पर देखें तो यह स्वीकार करना होगा कि सरकार ने कोविड-19 आपदा से संघर्ष करते हुए इससे हो रही क्षति को रोकने, जो हो चुकी उसकी भरपाई करने, पूर्व से चली आ रही आर्थिक सुस्ती और कोविड की मार से उबारने, अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों को गति देकर पटरी पर सरपट दौड़ाने, जिस वर्ग पर सबसे अधिक मार पड़ी है, उसके कल्याण के लिए व्यावहारिक योजनाएं बनाने, उत्पन्न हो रही सामाजिक,आर्थिक समस्याओं का समाधान निकालने एवं बड़े और साहसिक आर्थिक सुधार के साथ अपनी वैश्विक भूमिका पर दिन-रात काम किया है। ऐसा नहीं होता तो हर क्षेत्र को समाहित करते हुए इतना लम्बा-चौड़ा पैकेज नहीं आता। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण एवं वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने इन दिनों में कुल 53 घोषणाएं कीं। इनमें अर्थ-व्यवस्था के हर क्षेत्र की कठिनाइयों का गहराई से अध्ययन कर जितना संभव है, उतना सहयोग करने की कोशिश की गई है ताकि सुस्ती या ठहराव से उठकर गतिमान हो सकें। लॉकडाउन में समाज के निचले तबके को सबसे ज्यादा मार पड़ी है। दूसरे राज्यों में रहने वाले बिना राशन कार्ड वाले  8 करोड़ मजदूरों को अगले दो महीने तक मुफ्त राशन के लिए 3500 करोड़ रुपए जारी करना, एक देश, एक राशन कार्ड की व्यवस्था, श्रमिकों को कम किराए के मकान के लिए सरकार और निजी संयुक्त उद्यम में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान की योजना आदि से पैकेज तात्कालिक एवं दूरगामी कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है।  मनरेगा का विस्तार कर राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से बाहर से आए श्रमिकों को इस योजना के तहत काम देने को कहा गया है। इनकी बेकारी मेें सरकार के पास यही विकल्प था। इसी तरह शहरों के रेहड़ी, पटरी ठेले वालों को 10 हजार के कर्ज के लिए 5000 करोड़ की व्यवस्था है। इनकी चर्चा इसलिए की गई, क्योंकि गांवों से शहरों तक गरीबों की आबादी के सामाजिक, आर्थिक विकास का पूरा ध्यान रखा गया है। इसके बगैर भारत आत्म-निर्भर सक्षम देश होने की कल्पना नहीं कर सकता। वैसे पैकेज में व्यापारी, उद्योयगपति, किसान, सेवा क्षेत्र, ऊर्जा, रियल्टी, पर्यटन सबके लिए प्रावधान और आवंटन है। वास्तव में केन्द्र सरकार के पैकेज में समग्रता है तथा सभी क्षेत्रों व समाज के सभी श्रेणी के लोगों को लाभ पहुंचाकर देश को गतिमान बनाने का लक्ष्य रखा गया है। प्रधानमंत्री के संबोधन और आर्थिक पैकेज को एक साथ मिलाकर विचार करें, तभी पूरी बात समझ में आ सकती है। प्रधानमंत्री ने भारत के वर्तमान और भविष्य की बदलती हुई दुनिया की तो संभावित तस्वीर पेश की ही, उसके साथ भारत की उसमें भूमिका और इसे विश्व का सिरमौर और प्रभावी देश बनाने में समाज की हर श्रेणी और हर व्यक्ति की भूमिका होगी यह भी साफ  किया है। आत्म-निर्भरता की जो अवधारणा चार दशक से पहले थी, वो आज भूमंडलीकृत विश्व में प्रासंगिक नहीं है। भूमंडलीकरण भी तीन दशक में बदला है। अर्थ-केन्द्रित की जगह मानव केन्द्रित की बात हो रही है। इसमें देश अपने को सिमटने में लगे हैं, संरक्षणवाद की ओर बढ़ रहे हैं। प्रधानमंत्री ने यहीं पर स्पष्ट किया कि हमारी संस्कृति का जो संस्कार है, उसमें आत्मनिर्भरता की आत्मा वसुधैव कुटुम्बकम है। हम आत्मकेन्द्रित नहीं हो सकते यानि हमारी आत्मनिर्भरता विश्व के सभी मानवों से जुड़ी होगी। हमारे यहां कोई संरक्षणवाद नहीं होगा। जो लोग अभी स्वदेशी की बात करते हुए इसे सीमाओं के तहत बांध रहे हैं यह सही नहीं है। प्रधानमंत्री स्वयं मेक इन इंडिया की अपील कर चुके हैं। इसका अर्थ यही है कि कंपनियां हमारे यहां आकर उत्पादन करें जिन्से यहां बेचें और विश्व बाजार में भी। यह वर्तमान दौर की आत्म-निर्भरता का फलक है। इसी तरह हमारे देश की कंपनियां भी अपना वैश्विक विस्तार कर सकतीं हैं, पर पहले वे देश के लिए वस्तुओं को निर्मित कर हमें आत्मनिर्भर बनाएं। वे ऐसी सामग्री बनाएं जो विश्वस्तरीय हों। उन्होंने साफ  कहा कि भारत की आत्मनिर्भरता में संसार के सुख, सहयोग और शांति की चिंता सामाहित है। दुनिया का कोई देश नहीं है जो अपने यहां हर प्रकार की पैदावार और उत्पादन की कोशिश नहीं करता। आवश्यकताओं के लिए जितना हम दुनिया पर निर्भर रहेंगे उतना ही हम अपनी राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय भूमिका निभाने में दुर्बल होंगे। इसलिए आत्मनिर्भरता मूल मंत्र है उस भारत को फिर से सामने लाने के लिए जो सोने की चिड़िया कहलाता था। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत का अर्थ व्यापक है। इसमें सभ्यतागत एवं सांस्कृतिक उत्थान व पहचान की व्यापकता है तो पुन:र्जागरण का जयघोष भी।  इसमें अपने ह्दय को भारतीय चिंतन के अनुरूप सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण का विस्तार देना है तो साहसी और संकल्पवान देश के रुप में सिर उठाकर खड़ा होने की प्रेरणा भी। आर्थिक सशक्तता तो है ही। ऐसा देश ही कोविड-19 उपरांत आकार लेती विश्व-व्यवस्था को दिशा देकर सर्व-स्वीकृत दिशा-दर्शक की भूमिका में आ सकता है। 

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